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कौन थे बाबू वीर कुंवर सिंह? जिनके विजयोत्सव में पहुंचकर अमित शाह ने कहा- इतिहासकारों ने उनके साथ अन्याय किया

Updated Apr 23, 2022 | 15:58 IST

केंद्रीय गृह मंत्री  और बीजेपी के सीनियर नेता अमित शाह ने एक दिवसीय बिहार दौरे पर हैं। बाबू वीर कुंवर सिंह विजयोत्सव कार्यक्रमों में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि उनकी वीरता और क्षमता के अनुसार इतिहासकारों ने उन्हें इतिहास में स्थान नहीं दिया।

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बाबू वीर कुंवर सिंह विजयोत्सव में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह
मुख्य बातें
  • अमित शाह एक दिन के बिहार दौरे पर हैं।
  • एयरपोर्ट पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनका स्वागत किया।
  • अमित शाह बाबू वीर कुंवर सिंह विजयोत्सव कार्यक्रम में शामिल हुए।

नई दिल्ली/पटना: मध्य प्रदेश में विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल होने के एक दिन बाद, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह आज (23 अप्रैल 2022) बिहार दौरे पर हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बिहार के जगदीशपुर में बाबू वीर कुंवर सिंह विजय उत्सव में शामिल हुए। इससे पहले बिहार के एक दिवसीय दौरे पर पटना पहुंचे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का एयरपोर्ट पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनकी अगवानी की। सूत्रों के मुताबकि अमित शाह से मुलाकात के दौरान नीतीश कुमार ने कहा कि कुंवर सिंह जयंती राष्ट्रीय स्तर पर मनाई जाए।

कार्यक्रम में शामिल होकर अमित शाह ने कहा कि जगदीशपुर की ऐतिहासिक भूमि में स्वतंत्रता के महानायक बाबू वीर कुंवर सिंह जी के विजयोत्सव पर उनके चरणों में नमन करता हूं। उन्होंने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव के वर्ष में 75 साल में देश ने जो कुछ भी प्राप्त किया है इसको चीरस्थाई बनाने का प्रयत्न कर आजादी शताब्दी वर्ष तक में भारत दुनिया के सर्वोच्च स्थान पर बैठा हो। यही सच्ची श्रद्धांजलि बाबू वीर कुंवर सिंह को हो सकती है। उन्होंने कहा कि इतिहास में बाबू वीर कुंवर सिंह के साथ अन्याय हुआ और उनकी वीरता और क्षमता के अनुसार इतिहासकारों ने उन्हें इतिहास में स्थान नहीं दिया। लेकिन आज बिहार की जनता ने वीर कुंवर सिंह को अमर करने का काम किया है।

इसके बाद अमित शाह रोहतास जिले में बिहार के सासाराम के जमुहार इलाके का दौरा करेंगे, जहां उनका गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह में दोपहर करीब 3.38 बजे भाग लेने का कार्यक्रम है।

कौन थे बाबू वीर कुंवर सिंह

बाबू वीर कुंवर सिंह 1857 में भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक सैन्य कमांडर थे। वह जगदीशपुर के परमार राजपूतों के उज्जैनिया वंश के एक परिवार से थे। 1826 में अपने पिता की मृत्यु के बाद, वह जगदीशपुर के तालुकदार बन गए। 80 साल की उम्र में उन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ सशस्त्र सैनिकों के एक समूह का नेतृत्व किया।  बिहार में अंग्रेजों के खिलाफ इस लड़ाई में मुख्य आयोजकों में से एक थे उनके भाइयों बाबू अमर सिंह और हरे कृष्ण सिंह ने उनकी मदद की। गुरिल्ला युद्ध की कला में एक विशेषज्ञ, कुंवर सिंह की सैन्य रणनीति ने ब्रिटिश अधिकारियों को चकित कर दिया और उनकी सेना उनके नेतृत्व वाली सभी लड़ाइयों में विजयी रही।

 बाबू कुंवर सिंह ने 23 अप्रैल 1858 को कैप्टन ले ग्रैंड के नेतृत्व में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों को हराकर जगदीशपुर के पास अपनी आखिरी लड़ाई लड़ी। 26 अप्रैल 1858 को उनके गांव जगदीशपुर में उनका निधन हो गया। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान को लेकर भारत सरकार ने 23 अप्रैल 1966 को एक स्मारक डाक टिकट जारी किया और 1992 में बिहार सरकार ने आरा में वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय की स्थापना की। 2017 में उत्तर और दक्षिण बिहार को जोड़ने के लिए वीर कुंवर सिंह सेतु बनाया गया।

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