नई दिल्ली: महिला अतिथि शिक्षकों के मुंडन कराने की घटना के बाद मध्यप्रदेश में सियासत एक बार फिर गरमा गई है। घटना के बाद सियासतदानों ने सुविधानुसार टिप्पणी करनी शुरु कर दी। सीएम कमलनाथ बोले- 'केश नारी के सम्मान का प्रतीक हैं और उनका मुंडन करवाना दिल को झकझोर देने वाला कदम है।' वहीं पूर्व सीएम और बीजेपी नेता शिवराज सिंह चौहान ने भी राज्य सरकार पर निशाना साधने और सरकार को दोषी ठहराने में देर नहीं की और कमलनाथ के ट्विटर पर ही जवाब दिया- 'मुख्यमंत्री जी, आज भी केश नारी के सम्मान का प्रतीक हैं। अतिथि विद्वान बहनों ने आपकी सोती सरकार को नींद से जगाने के लिए अपने केश त्यागे।' इस बीच आपके दिमाग में सवाल आ सकता कि आखिर ये माजरा क्या है तो यहां समझिए।
पुरुष और महिला अतिथि शिक्षकों ने अपनी मांगों को पूरा नहीं किए जाने के विरोध में सार्वजनिक तौर पर विरोध प्रदर्शन करते हुए अपना मुंडन करवा लिया। शिक्षा विभाग के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए उन्होंने यह कदम उठाया। यह प्रदर्शनकारी 'समान काम के लिए समान भुगतान' जैसी कई मागों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। अतिथि शिक्षकों की ओर से पहले ही घोषणा कर दी गई थी कि अगर उनकी ओर से घोषित तारीख तक मांगें पूरी नहीं हुईं तो वह अपने बालों का त्याग कर देंगे।
मामले पर सियासत शुरु होते देर नहीं लगी और घटना पर टिप्पणियां आनी शुरु हो गईं। कमलनाथ अपने एक ट्वीट को लेकर निशाने पर आए। उन्होंने लिखा था, 'केश नारी के लिये श्रृंगार व सम्मान का प्रतीक होते है और नारी यदि अपने हक़ की लड़ाई के लिये उसका ही त्याग कर दे तो उसके दुःख व पीड़ा का अन्दाज़ लगाया जा सकता है.... अतिथि विद्वान बहनो द्वारा कराया गया मुंडन,दिल को झकझोरने वाला क़दम है... पूरा प्रदेश इस घटना से शर्मशार हुआ है..।'
शिवराज सिंह चौहान ने निशाना साधते देर नहीं की और कमलनाथ के ट्वीट का जवाब देते हुए लिखा, 'मुख्यमंत्री जी, आज भी केश नारी के सम्मान का प्रतीक हैं। अतिथि विद्वान बहनों ने आपकी सोती हुई सरकार को नींद से जगाने के लिए अपने केश त्यागे, क्या आज आपको उनकी पीड़ा का अंदाज़ा है? क्या आपकी नज़र में आज प्रदेश शर्मसार हुआ? क्या उनकी भलाई के लिए आप कोई कदम उठाएंगे?'
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा ने भी सरकार पर वार करते हुए कहा, 'म.प्र. के शासकीय महाविद्यालयों में कार्यरत अतिथि विद्वानों के साथ हो रहे अन्याय के जिम्मेदार आप और आपकी सरकार है कमलनाथ जी। अतिथि विद्वानों का नियमितीकरण करें और अपने वचन पत्र के वादों को पूरा करें, और अगर नहीं होता तो कुर्सी छोड़ें। वादाखिलाफी वर्दास्त नहीं की जायेगी।'