- पूर्वांचल के कुछ जिलों में मल्लाह समाज बड़ी संख्या में
- फूलन देवी के नाम पर राजनीतिक फसल काटने की लगी होड़
- वाराणसी और मिर्जापुर में फूलन देवी की मूर्ति पर लगाए जाने पर रोक
यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में होने हैं, लेकिन उससे पहले राजनीतिक समीकरणों को बनाने की तैयारी शुरू हो चुकी है। बीजेपी का कहना है कि राज्य में हर एक दल को अपनी रणनीति बनाने का हक है यह बात अलग है कि लड़ाई तो दूसरी और तीसरी पोजीशन के लिए है। इन सबके बीच फूलन देवी एक बार फिर चर्चा में हैं, फूलन देवी अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके नाम पर सियासी फसल काटने की कोशिश की जा रही है।
फूलन देवी की प्रतिमा लगाने पर रोक
हाल ही में बिहार की वीआईपी पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी ने वाराणसी, मिर्जापुर में फूलन देवी की प्रतिमा स्थापित करने का फैसला किया था। लेकिन प्रशासन की तरफ से रोक लगा दी गई है, और अब इस विषय पर सियासत शुरू हो चुकी है। अब सवाल यह है कि आखिर सियासी केंद्र में उस शख्सियत की चर्चा हो रही है जो बेदाग नहीं थीं। क्या उनके नाम पर कुछ राजनीतिक दलों को लगता है कि वो यूपी में अपनी मौजूदगी को दर्ज करा सकते हैं।
पूर्वांचल के इन इलाकों में मल्लाह समाज अधिक
दरअसल पूर्वांचल के वाराणसी, मिर्जापुर, भदोही, गाजीपुर और बलिया में मल्लाह समाज की संख्या अधिक है और यह समाज राजनीतिक तौर पर किसी भी पार्टी की जीत या हार में अहम भूमिका निभाता है, औम तौर पर यह समाज बीएसपी या समाजवादी पार्टी को मत देता रहा है। लेकिन 2017 के चुनाव में यह तबका बीजेपी की तरफ शिफ्ट हो गया। यूपी में कुछ क्षेत्रीय दलों को लगता है कि मल्लाह समाज अगर उनके साथ खड़ा हुआ तो राजनीतिक तौर पर वो प्रभावी भूमिका में होंगे और उस कारण से अगर राष्ट्रीय दल गठबंधन के लिए आए तो उन्हें अच्छी खासी संख्या में सीटें हासिल हो सकती हैं ।
कौन हैं फूलन देवी
फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त 1963 में यूपी के जालौन जनपद के गांव गोरहा में हुआ था। उनकी शादी 11 साल की उम्र में कर दी गई थी हालांकि कुछ समय बाद उनके पति ने उन्हें छोड़ दिया था। फूलन देवी 14 फरवरी 1981 को देश के सबसे चर्चित हत्याकांडों में से एक बेहमई कांड के बाद चर्चा में आईं। बेहमई कांड के दो साल बाद भी पुलिस फूलन देवी को नहीं पकड़ पाई थी। 1983 में फूलन देवी ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। हालांकि उनकी शर्त थी कि सरेंडर वो पुलिस के सामने नहीं करेंगी। उनकी शर्त थी कि अपने हथियार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और दुर्गा माता के सामने ही समर्पण करेगी। 1996 में भदोही सीट से वो लोकसभा के लिए चुनी गईं और 2001 में शेर सिंह राणा ने उनकी हत्या कर दी थी।