- 1999 में कारगिल में पाकिस्तान ने भारतीय पोस्ट पर कब्जा करने की कोशिश की थी
- थल और वायुसेना के प्रयासों से पाकिस्तान की हुई थी करारी हार
- कारगिल लड़ाई को केस स्टडी के तौर पर देखा जाता है।
कारगिल विजय दिवस की 22वीं वर्षगांठ देश बना रहा है। इस खास दिन पर पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि वो साहस की जीत थी। भारतीय फौज ने समय समय पर अपनी भूमिका का सटीक निर्वहन करते हुए यह साबित कर दिया कि हम किसी भी भूमिका में भी शत प्रतिशत कामयाब हो सकते हैं। लेकिन इन सबके बीच 1999 में कारगिल लड़ाई के समय फौज के मुखिया रहे जनरल वी पी मलिक ने कहा कि उस समय पाकिस्तान के कुछ हिस्सों पर कब्जा करने कि इजाजत मिलनी चाहिए थी।
ऑपरेशन विजय, राजनीतिक, सैन्य और कूटनीति का मिलाजुला नतीजा
टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि ऑपरेशन विजय, राजनीतिक, सैन्य और कूटनीति का मिलाजुला नतीजा था। हमने साबित कर दिखाया कि कठिन हालात में भी हम अपने मकसद को हासिल कर सकते हैं। भारतीय फौज को कमजो सूचना तंत्र और निगरानी की वजह से काउंटर ऐक्शन में कुछ समय अवश्य लगा। लेकिन जिस तरह से युद्ध के मैदान में हमने प्रदर्शन किया उसके बाद दुनिया की कई ताकतों को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर होना पड़ा।
जब तक सीमाई या जमीनी विवाद, कारगिल जैसी घटना से इनकार नहीं
कारगिल की लड़ाई से एक सीख यह मिली कि प्राक्सी वॉर कभी भी सीमित पारंपरिक युद्ध में बदल सकता है। हालांकि परमाणु हथियारों के होने से पूर्ण युद्ध की संभावना कम रहती है लेकिन जब तक हमारे सामने सीमाई या जमीन विवाद हैं तब तक करगिल जैसे युद्ध की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
पाकिस्तान के कुछ हिस्सों पर कब्जे का आदेश मिलना चाहिए था
वी पी मलिक कहते है कि जब कारगिल की लड़ाई शुरू हुई तो हम सभी लोग आश्चर्य चकित थे। सवाल यह था कि दुश्मन देश यानी पाकिस्तान की तरफ से कितने लोगों ने घुसपैठ की थी। हमारी अग्रिम पंक्ति से घुसपैठ को समझने में चूक हुई थी। खास तौर पर दुश्मन के बारे में सटीक जानकारी नहीं थी कि वो कहां छिपे बैठे हैं। यहां पर एक बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि जब कारगिल लड़ाई के बाद हम एलओसी के निर्धारण की तरफ बढ़ रहे थे तो हमें पाकिस्तान के कुछ इलाकों को कब्जा करने का आदेश दिया जाना चाहिए था।