चेन्नई : मद्रास उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि यदि दिवंगत पति ने (जिंदा रहने के दौरान) कोई प्रीमियम नहीं जमा किया है तो उसकी पत्नी उस बीमित राशि के किसी कानूनी हिस्से की हकदार नहीं होगी। न्यायमूर्ति एस वैद्यनाथन ने हाल ही में जी आशा नामक एक महिला की याचिका पर अंतरिम आदेश जारी करते हुए यह व्यवस्था दी। आशा तिरुवल्लूर जिले के वेप्पमट्टू के गणेश राजा की विधवा है।
न्यायमूर्ति वैद्यनाथन ने कहा कि वह जानना चाहते हैं कि गणेश राजा की मौत तक पूरे प्रीमियम का भुगतान किसने किया, महिला के ससुर ने या उसके पति ने स्वयं। न्यायालय ने कहा कि जब तक यह तथ्य सामने नहीं आ जाता कि बीमा कंपनी को प्रीमियम का भुगतान किसने किया और यह कि गणेश राजा ने एक भी पैसे का भुगतान किया या नहीं, तब तक यह अदालत मैच्योरिटी राशि में हिस्से संबंधी याचिकाकर्ता के हक से जुड़े मुद्दे पर निर्णय नहीं कर सकती है।
प्रीमियम भुगतान में योगदान है अहम
न्यायमूर्ति वैद्यनाथन ने कहा कि यदि दिवंगत पति ने प्रीमियम भुगतान में कोई योगदान नहीं किया हो तब उसकी पत्नी द्वारा हिस्से की मांग करना सही नहीं है। अदालत ने कहा, 'इसमें कोई संदेह नहीं है कि पत्नी, मां और बच्चे किसी मृतक व्यक्ति के प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी हैं, न कि उसके पिता। लेकिन उत्तराधिकार को ही इस प्रकार की आकस्मिक स्थिति में संज्ञान में नहीं लिया जाएगा, यदि मृतक व्यक्ति ने जिंदा रहने के दौरान पूरा भुगतान नहीं किया और वह भुगतान तब उसके पिता ने किया हो।'
उसने कहा, 'ऐसी स्थिति में यह फैसला मृतक के पिता को करना है कि वह पूरी रकम या उसका कोई हिस्सा किस व्यक्ति को देना चाहते हैं, जिसमें प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी भी हो सकते हैं।'