- केले के बेकार तनों से फाइबर बनाकर आत्मनिर्भर हो रहीं महिलाएं
- स्थानीय प्रशासन ने किए ट्रेनिंग से मार्केटिंग तक के प्रबंध
- "मन की बात" में पीएम ने कहा, कोविड काल में हुई अनोखी पहल
लखनऊ: लखीमपुर जिले में केले के बेकार तनों से फाइबर बनाने के महिलाओं के प्रयास को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सराहा है। रविवार को प्रसारित "मन की बात" कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने लखीमपुर की महिलाओं की आत्मनिर्भरता की कोशिशों की चर्चा की। उन्होंने कहा "मुझे उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किए गए एक प्रयास के बारे में भी पता चला है। कोविड के दौरान ही लखीमपुर खीरी में एक अनोखी पहल हुई है। वहां महिलाओं को केले के बेकार तनों से फाइबर बनाने का प्रशिक्षण देने का काम शुरू किया गया।
केले के तने को काटकर मशीन की मदद से बनाना फाइबर तैयार किया जाता है, जो जूट या सन की तरह होता है। इस फाइबर से हैंडबैग, चटाई, दरी कितनी ही चीजें बनाई जाती हैं। इससे एक तो फसल के कचरे का इस्तेमाल शुरू हो गया, वहीं दूसरी तरफ गांव में रहने वाली हमारी बहनों-बेटियों को आय का एक और साधन मिल गया। मन की बात में पीएम से प्रशंसा पाने के बाद महिलाओं के हौसले बुलंद हैं।
जिले के मुख्य विकास अधिकारी अरविंद सिंह बताते हैं कि बनाना फाइबर बनाने का प्रयास “एक जिला एक उत्पाद” से प्रेरणा लेते हुए “एक ब्लाक एक उत्पाद” की दिशा में एक कदम है। दरअसल, विकास खंड ईसानगर में केले की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। ऐसे में केले से सम्बन्धित उत्पाद से यदि स्वयं सहायता समूह को जोड़ा जाए तो बेहतर परिणाम प्राप्त हो सकता है। केले का तना किसान काट कर फेंक देता था, जिससे दोहरा नुकसान हो रहा था, पहला, तने में दीमक लगना तथा दूसरे तने को कटवाने का आर्थिक बोझ। अतः किसानों से जब सम्पर्क किया गया तो वह सहर्ष केले का तना देने को तैयार हो गए। इस सोच के साथ स्वयं सहायता समूह की महिला के साथ कई चरणों (माह सितम्बर-अक्टूबर 2020) में चर्चा हुई। स्वयं सहायता समूह की 25-30 महिलाओं का चयन करते हुए उनको ट्रेनिंग दी गई। यह सभी महिलाए मॉं सरस्वती ग्राम संगठन, ग्राम पंचायत समैसा, विकास खण्ड ईसानगर, लखीमपुर-खीरी के अन्तर्गत संगठित थी।
उत्पादन से बाजार तक सबके हैं इंतज़ाम
बकौल सीडीओ अरविन्द सिंह, समूह की महिलाओं को बनाना फाइबर के उत्पादन के लिए प्रेरित तो कर दिया गया लेकिन अब उनके सम्मुख मुख्य चुनौती थी उत्पादन हेतु मशीनरी एवं अन्य सुविधाओ को जुटाने की। अतः स्वयं सहायता समूह/ग्राम संगठन को सीएलएफ से ऋण दिलाया गया तथा विभिन्न विक्रेताओं से बात करने के बाद रिद्धि इंटरप्राइजेज सूरत, गुजरात से नवम्बर, 2020 में मशीनों को मंगवाया गया। मशीन आने से दिसम्बर, 2020 में उत्पादन तो शुरू हो गया, लेकिन अब चुनौती थी बाजार ढूंढने की। चूंकि बनाना फाइबर का उपयोग अधिकतर कागज व कपड़ा उद्योग में हो रहा है। अतः इसी क्रम में सूरत, अहमदाबाद, कानपुर इत्यादि क्षेत्रो में विक्रय हेतु सम्पर्क किया गया। इससे सार्थक परिणाम मिले तथा सर्वप्रथम अहमदाबाद, गुजरात की कम्पनी एल्टमट प्रा.लि. द्वारा ग्राम संगठन को टेस्टिंग हेतु 20 किग्रा बनाना फाइबर का आर्डर दिया गया। कम्पनी द्वारा टेस्टिंग में इसे उच्च गुणवत्ता का बताया गया तथा कम्पनी द्वारा ग्राम संगठन से प्रति माह 400 किग्रा बनाना फाइबर लेने की तैयारी की जा रही है, जिसकी शुरूआत अगस्त, 2021 में की जाएगी। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य कम्पनियों द्वारा बनाना फाइबर का क्रय करते हुए ₹21,000 टोकन मनी के रूप में दिया जा चुका है। यही नहीं, उत्पाद को बेचने के लिए इंडिया मार्ट पर भी पंजीकरण किया गया है। इंडिया मार्ट की विभिन्न कम्पनियों ने ग्राम संगठन को बडे पैमाने पर (लगभग 10 टन) मांग की है। बड़ी मात्रा में व्यवसायिक रूप से बनाना फाइबर की मांग की जा रही है। अतः उसके लिए ग्राम संगठन का जीएसटी पंजीकरण भी कराया जा रहा है।
मिल रहा 50 फीसदी से अधिक का मुनाफा
बनाना फाइबर की बिक्री लगभग ₹150 से ₹200 पर किग्रा की दर से की जा रही है तथा इस मूल्य पर उसे लगभग 50 प्रतिशत मुनाफा प्राप्त हो रहा है। मांग बढ़ने से मुनाफा में भी वृद्धि की सम्भावना है। मां सरस्वती ग्राम संगठन/स्वयं सहायता समूह से जुड़ी कई महिलाएं पूनम देवी, राधा, सुनीता, रामवती इत्यादि के पास बनाना फाइवर उत्पदन से पूर्व न तो कोई संगठित डगर थी और न ही स्पष्ट मंजिल, लेकिन बनाना फाइवर उत्पादन से जुड़ने के बाद यह महिलाऐं प्रतिदिन औसतन 400 रुपये जुटा पाने में सक्षम हुयीं हैं। इससे इनका हौसला बढ़ा है, जिससे इस उत्पादन को और तीव्र करने के लिए तत्पर हैं। इस उत्पाद की सततता भी देखी जा सकती है।क्षेत्र की अन्य गरीब स्वयं समूह की महिलाओं को इस नवाचार अभियान से जोड़ा जा रहा है तथा गुजरात से अतिरिक्त मशीनरी मंगाने की तैयारी की जा रही है।
जानें बनाना फाइबर
बनाना फाइबर केले के पौधे से छील कर निकाला गया रेशा है जो जूट या सन की तरह होता है। इसका उपयोग पर्यावरण अनुकूल उत्पाद जैसे हैण्डबैग, चटाई, बेल्ट, कपडे़, साड़ी, सोफा-कवर, दरी, फैन्सी कोटी इत्यादि बनाने हेतु कच्चे माल की तरह होता है इस तरह बनाना फाइबर हेतु केले का तना कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त होता है। यह तना फसल प्राप्त करने के बाद बचा हुआ अवशेष होता है जो पहले उपयोग में नही आता था और खेतो के किनारे सड़ता रहता था। अब इसका उपयोग कर केले के तने को मशीन द्वारा चार भागो में काट कर अलग-अलग कर लिया जाता है। इसके बाद मशीन में डालकर बनाना फाइबर तैयार किया जाता है तथा इसे धुल कर एवं सुखाकर संरक्षित कर लिया जाता है।