आपको कुदरत का प्रकोप और उसकी वो वजह दिखाते हैं, जिसके चलते कई देश में आसमान से आग बरस रही है, तो तमाम देशों में पानी वाली आफत खड़ी हो गई है। ये वो उफान है, जो हर साल देश को बर्बाद करता है। बहती बर्बादी देश को हर साल ऐसा दर्द देकर जाती है, जिससे उबरने में साल लग जाते हैं, पर अफसोस कि साल भर बाद वो फिर लौट आती है।
देश में हर साल करीब 40 मिलियन हेक्टेयर इलाके में सैलाब आता है। पानी का प्रहार हर साल करीब 3 करोड़ जिंदगी पर पड़ता है। बारिश, बाढ़ और लैंडस्लाइड से हर साल औसतन 1700 लोगों की बेवक्त जान जाती है। ये आंकड़ा दुनिया में बाढ़ और बारिश से होने वाली मौतों में सबसे बड़ा है। भारत में सैलाब से हर साल जितनी मौतें होती हैं, वो दुनिया में होने वाली मौतों का 20% है। सिर्फ इंसान ही नहीं हर साल करीब सवा लाख पशुओं की जान चली जाती है। 12 लाख से ज्यादा घर तबाह हो जाते हैं। बाढ़ से हर साल देश का करीब 21.2 हजार करोड़ रुपए का नुकसान होता है।
आपको ये जानकर बहुत हैरानी होगी कि इतनी रकम में 106 किलोमीटर मेट्रो लाइन बन सकती है। तीन हजार सत्ताइस किलोमीटर टू लेन हाईवे बन सकता है। 21.2 हजार करोड़ रुपए में एक हजार तीन सौ चौबीस किलोमीटर फोर लेन हाईवे बन सकता है। बाढ़ से जितना हम हर साल गंवा देते हैं, उतने में 16 एम्स जैसे हॉस्पिटल बन सकते हैं। अगर इतने पैसे बच जाएं तो हम 914 केंद्रीय विद्यालय बना सकते हैं। 21.2 हजार करोड़ रुपए अगर बच जाएं तो हम IIT जैसे 18 इंस्टीट्यूट बना सकते हैं।
बारिश और बाढ़ से होने वाली बर्बादी बहुत बड़ी है। इतनी बड़ी कि अगर सरकारी आंकड़ों पर ध्यान दिया जाए, तो दिमाग सुन्न हो जाए। पर अफसोस इस बर्बादी को कम करने की कोशिश नहीं दिखती। आजादी को 70 साल से ज्यादा वक्त हो चुका है। पर इस तरफ सरकारें और सरकारी तंत्र ध्यान नहीं देती।
1952 से 2018 तक यानि 76 सालों में देश में बाढ़ वाली बर्बादी से करीब 1 लाख 10 हजार जान जा चुकी हैं। 26 करोड़ हेक्टेयर की फसल बर्बाद हो चुकी है। 8 करोड़ से ज्यादा घर बह या ढह जाते हैं। 1952 से 2018 तक देश को बाढ़ वाली तबाही की वजह से करीब 5 लाख करोड़ रुपए नुकसान हो चुका है। पर अफसोस कि नुकसान का ये आंकड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। हर साल। हर मॉनसून में।