- 3 ओबीसी, 2 दलित, एक सवर्ण और एक अनुसूचित जनजाति से आने वाले नेताओं को मंत्री बनाया गया है।
- UP में 50 फीसदी से ज्यादा ओबीसी हैं। इसमें से करीब 20 फीसदी यादव हैं और बाकी गैर यादव जातियां हैं।
- प्रदेश में करीब 20 फीसदी दलितों की आबादी हैं, इसमें 50 फीसदी जाटव आबादी है।
नई दिल्ली: आखिरकार लंबे इंतजार के बाद योगी सरकार के कैबिनेट का विस्तार हो गया है। विस्तार में 7 मंत्रियों को जगह मिली है। चुनाव के करीब 4-5 महीने पहले इस विस्तार का प्रशासनिक से ज्यादा चुनावी महत्व है। और विस्तार में इसकी पूरी झलक मिलती है। पार्टी की कोशिश है कि जब वह चुनावों में योगी आदित्यानाथ के नाम पर दोबारा मैदान में उतरे तो सभी को साध सके। बीते रविवार को हुए विस्तार में 3 ओबीसी, 2 दलित, एक सवर्ण और एक अनुसूचित जनजाति से आने वाले नेताओं को मंत्री बनाया गया है। इसके अलावा 3 नेताओं को विधान परिषद में जगह दी गई है। जिसमें भी जाति समीकरण पर ध्यान रखा गया है।
इन लोगों को मिली जगह
मंत्रिमंडल में शहाजहांपुर से ब्राह्मण नेता जितिन प्रसाद, गाजीपुर से ओबीसी श्रेणी से (मल्लाह) संगीता बलवंत बिंद, आगरा से कुम्हार जाति से धर्मवीर , बरेली से कुर्मी नेता छत्रपाल गंगवार, बलरामपुर से अनुसूचित जाति के पलटूराम, मेरठ से अनुसूचित जाति का प्रतिनिधत्व करने वाले दिनेश खटिक, सोनभद्र से अनुसूचित जनजाति के नेता संजय गौड़ को जगह मिली है। इसी तरह निषाद नेता और हाल ही में भाजपा से गठबंधन करने वाले निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद, शामली से चौधरी वीरेंद्र सिंह गुर्जर, मुरादाबाद से गोपाल अंजान भुर्जी को एमएलसी बनाया गया है। हाल ही में कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए जितिन प्रसाद को भी एमएलसी बनाकर, मंत्रिमंडल में जगह दी गई है।
गैर यादव और गैर जाटव पर दांव
उत्तर प्रदेश में 50 फीसदी से ज्यादा ओबीसी हैं। इसमें से करीब 20 फीसदी यादव हैं और बाकी गैर यादव जातियां हैं। यादव वोटों में समाजवादी पार्टी की पकड़ को देखते हुए भाजपा हमेशा से गैर यादव वोटों पर दांव लगाती रही है। इस मंत्रिमंडल में धर्मवीर प्रजापति, छत्रपाल गंगवार, संगीता बलवंत बिंद जैसे ओबीसी नेताओं को इसी रणनीति के तहत जगह मिली है। बहेड़ी के छत्रपाल सिंह गंगवार के जरिये रूहेलखंड में कुर्मी समाज को संदेश दिया गया है। यहां से केंद्रीय मंत्रिमंडल में संतोष गंगवार प्रतिनिधित्व करते रहे हैं। इसी तरह गैर जाटव वोट में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए दिनेश खटिक और पलटूराम को जगह दी गई है। प्रदेश में करीब 20 फीसदी दलितों की आबादी हैं, इसमें 50 फीसदी जाटव आबादी है।
मायावती, चंद्रशेखर ओम प्रकाश राजभर पर नजर
पिछले चुनावों में भाजपा की साथी रही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के बिंद वोटरों में सेंध लगाने के लिए संगीता बलवंद बिंद को गाजीपुर से जगह मिली है। राजभर, अपने पार्टी में बिंद (मल्लाह) को खास तरजीह देते रहे हैं। ऐसे में संगीता बलवंद बिंद को मंत्री बनाकर पार्टी ने बड़ा दांव चला है। इसी तरह बलरामपुर में दलित मतदाताओं को पलटूराम के जरिए लुभाने की कोशिश की गई है। वहीं मेरठ से दिनेश खटिक को मंत्री बनाकर, इस इलाके में बसपा और चंद्रशेखर के वोट बैंक में सेंध लगाने की दांव चला गया है।
पश्चिमी यूपी में गुर्जरों को साधने की कोशिश
शामली से चौधरी वीरेंद्र सिंह गुर्जर को मंत्री बनाकर गुर्जर नेताओं को साधने की कोशिश की गई है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शामली, संभल, सहारनपुर, गाजियाबाद, मुरादाबाद, नोएडा में गुर्जर जाति का दबदबा है। ऐसे में भाजपा उन्हें किसान आंदोलन की वजह से जाटों की नाराजगी की भरपाई गुर्जर और गैर जाटव मतदाता से करने की कोशिश में है। इसी कड़ी में हाल ही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इन इलाकों का दौरा भी किया और दादरी में राजा मिहिर भोज की मूर्ति का अनावरण भी किया है।
युवाओं को तरजीह
पार्टी ने जिन सात मंत्रियों को शामिल किया है। उसमें डा. संगीता बलवंत, संजय गौड़, पलटूराम और दिनेश खटीक पहली बार विधानसभा पहुंचे हैं। इन चारों की ही उम्र 43 से लेकर 49 वर्ष के बीच है। संजय सिंह गौड़ सोनभद्र जिले की ओबरा सीट से बीजेपी के विधायक हैं। वे अनुसूचित जनजाति समाज से आते हैं. और बीजेपी के युवा नेता हैं। इसके अलावा नए विस्तार में क्षेत्री संतुलन बनाने की भी कोशिश है।
जितिन प्रसाद कितने कारगर
भाजपा ने हाल ही में कांग्रेस से आए ब्राह्मण नेता जितिन प्रसाद को मंत्री बनाकर बड़ा दांव चला है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री और दो बार सांसद भी रह चुके हैं। वह 2004 में शाहजहांपुर लोकसभा सीट से पहली बार सांसद बने थे। 2009 में परिसीमन के बाद धौरहरा से लड़े और दूसरी बार सांसद बने। लेकिन 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में धौरहरा से चुनाव हार गए और 2017 के विधानसभा चुनाव में शाहजहांपुर की तिलहर विधानसभा सीट से चुनाव हारे। इनके पिता जितेन्द्र प्रसाद भी 4 बार शाहजहांपुर के सांसद रहे थे। ऐसे में देखना होगा कि भाजपा के लिए 2022 के चुनावों में कितने कारगर होंगे।