प्रणय विक्रम सिंह/महेंद्र कुमार सिंह। घर वापसी का हर अवसर खुशनुमा होता है और जब वापसी कोरोना कहर के दरम्यान हो, सुरक्षित हो, सरलतापूर्वक हो, तो खुशी का अहसास, पुनः ज़िंदगी मिलने के बराबर हो जाता है। शायद तभी उ.प्र. के प्रवासी श्रमिकों/कामगारों को लेकर गुजरात से एक रेलगाड़ी जब उन्नाव के रेलवे स्टेशन पहुंची तो उससे उतरने वाले हर इंसान के चेहरे पर कयामत को फतह करने वाला गुरूर और मां की गोद में मिलने वाला सुकून दिखाई पड़ा। खुशी का आलम कुछ यूं था मानों बरसों की साधना के बाद मनचाहा वरदान मिल गया हो। सारे गिले-शिकवे, दर्द-तकलीफ, भर्राई आवाज में “योगी जी जिंदाबाद” के भावुक स्वर में गुम हो गए।
दीगर है कि मार्च के आखिरी हफ्ते से प्रवासी श्रमिकों को दिल्ली से वापस लाने का जो सिलसिला यूपी सरकार की निगेहबानी में शुरू हुआ था वह लगातार जारी है। अब तक कई सूबों से रेलगाड़ियों और बसों के जरिए करीब आठ लाख श्रमिक उ.प्र. वापस लौट चुके हैं। उम्मीद है कि लगभग 20 लाख प्रवासी कामगार इस दौरान अपने घरों को लौटेंगे। ऐसे अभूतपूर्व कार्य को अंजाम दे कर योगी आदित्यनाथ की सरकार ने देश के अन्य सूबों की सरकारों के सम्मुख एक नजीर स्थापित कर दी है।
खैर, अपने सूबे के बाशिंदों को मुसीबत से निकाल कर योगी ने एक जिम्मेदार अभिभावक होने का फर्ज तो निभाया है लेकिन अगला सवाल प्रवासी श्रमिकों के रोजगार का है। गौरतलब है कि कोरोना के कारण तेजी से बदल रही सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियां, संभावित महामारी “बेरोजगारी” के विकराल स्वरूप में आने की मुनादी कर रही हैं।
प्रधानमंत्री मोदी जी ने 'जान और जहान' दोनों को सुरक्षित रखने की अपील की थी। 'जहान' स्वयं में विस्तृत अर्थों को समेटे हुए है। जहान की सुरक्षा का समेकित अर्थ 'सामाजिक जीवन' की गतिविधियों का सहज संपादन भी है। लिहाज़ा प्रश्न उदित होता है कि लाखों की संख्या में जो श्रमिक अन्य प्रांतों से अपने गांव और कस्बों में वापस आए हैं, वह रोजगार के अभाव में अपनी व अपने कुटुंब की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति कैसे करेंगे? कैसे सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन संभव होगा?
आखिर 23 करोड़ की आबादी वाले उ.प्र. में कोरोना जनित बेरोजगारी की मनहूस काली रात में रोजगार का खुशनुमा उजाला कैसे फैलेगा? क्या अनुद्योग के भंवर में रोजगार की कश्ती डूब जायेगी? ऐसा कतई नहीं है। समस्या में भी संभावना खोजने में विशेषज्ञ मुख्यमंत्री योगी के पास रोजगार के लिए असीम संभावनाओं के अनेक पिटारे हैं। आगामी 03 से 06 महीनों के भीतर कम से कम 20 लाख लोगों के लिए रोजगार सृजन की ठोस कार्ययोजना विभिन्न विभागों द्वारा तैयार कर ली गई है।
MSME, ODOP, NRLM, मनरेगा, उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण, कौशल विकास मिशन, विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना और खादी ग्रामोद्योग आदि के माध्यम से लाखों रोजगारों के सृजन की रूपरेखा को टीम-11 के द्वारा धरातल पर उतारने की पूरी तैयारी कर ली गई है। इसी क्रम में प्रवासी श्रमिक/कामगार, जो उत्तर प्रदेश वापस लाए जा रहे हैं, बाकायदा उन सभी की स्क्रीनिंग कर उनके हुनर, स्किल का भी लेखा-जोखा जनपदवार-ग्रामवार तैयार किया जा रहा है ताकि इसी के अनुसार उन्हें रोजगार मुहैया कराया जा सके।
“जीवन और जीविका” का यह समर, पूरी व्यवस्था को “स्वदेशी” दिशा की तरफ मोड़ते हुए कुटीर उद्योगों के क्षेत्र को बड़ी उम्मीद से देख रहा है। यही नहीं गोवंश के जरिए गो आधारित जैविक खेती, गो मूत्र और गोबर से बनने वाले उत्पादों और फूलों से बनने वाले इत्र, अगरबत्ती और उसके बचे हिस्से से कंपोस्ट की संभावनाएं, रोजगार के नए आयाम विकसित करने का माध्यम बनने जा रही हैं। स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से प्रदेश को रेडिमेड गारमेंट का हब बनाने की कार्य योजना पूरी तरह से तैयार हो चुकी है।
योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि, "रोजगार के अधिक से अधिक अवसर सृजित करने के उद्देश्य से केंद्र की मोदी सरकार ने रिवल्विंग फंड में जो बढ़ोतरी की है, उससे महिला स्वयंसेवी समूहों की विभिन्न गतिविधियों को बढ़ावा देते हुए रोजगार सृजित किया जाएंगे। उससे महिला स्वयंसेवी समूहों को विभिन्न गतिविधियों जैसे सिलाई, अचार, मसाला बनाना इत्यादि के तहत रोजगार उपलब्ध कराए जाएंगे।" यही नहीं महिलाएं जिन सामग्रियों का निर्माण करेंगी, उन्हें राष्ट्रीय बाजार उपलब्ध कराने में सरकार पूरा सहयोग करेगी। देखा जाए तो, कोविड-19 कालखण्ड में 'स्थानीय से राष्ट्रीय' की यात्रा का परिवहन पथ बनी ODOP योजना बहुत बड़ी संख्या में रोजगार सृजन का माध्यम बनने जा रही है। वहीं, दुग्ध समितियां तथा पौध नर्सरी भी प्रवासी कामगारों/श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध कराने का बड़ा माध्यम बनेंगी।
ध्यातव्य है कि, उत्तर प्रदेश में नए कृषि सुधारों ने, “कृषक उत्थान” की बहुआयामी संभावनाओं की रूपरेखा तैयार कर दी है। यह नए संशोधन, उप्र कृषि उपज विपणन अधिनियम के दायरे से 46 कृषि वस्तुओं को मुक्ति प्रदान करते हुए, इन वस्तुओं को किसानों से सीधे खरीद की अनुमति प्रदान करते हैं। उ.प्र. किसानों से सीधी खरीद, मौजूदा वेयरहाउस और कोल्ड स्टोरेज को नई निजी मंडी के रूप में निर्दिष्ट करने और निजी मंडियां स्थापित करने की भी सुविधा प्रदान करने वाला राज्य बन गया है। सुधारों की यह श्रंखला अब किसानों को स्थानीय एपीएमसी (मंडियों) की दया पर आश्रित रहने से मुक्ति प्रदान करती है क्योंकि उनके पास राज्य के किसी भी बाजार में अपने उत्पाद बेचने के लिए एकल लाइसेंस है।
यह निर्णय असमय काल-कवलित होती ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और बिचौलियों के हाथों निर्धन कृषकों की प्रणालीगत लूट को समाप्त करने हेतु पूर्णतः सक्षम है। यह, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग स्थापित करने में भी मदद करेगा जो अधिक रोजगार उत्पन्न करेगा। सुधारों की इस श्रंखला में श्रम कानूनों को शिथिल कर योगी ने स्पष्ट संदेश दिया है कि उत्तर प्रदेश व्यापार के लिए खुला है। श्रम कानूनों के निलंबन से उद्योग और विशेष रूप से विनिर्माण क्षेत्र को पुनर्जीवित करने में मदद मिलेगी। अब नए लघु एवं मझोले उद्योगों के विकसित होने की प्रबलता बढ़ गई है।
यहां एक बात और काबिल-ए-गौर है कि कोराना संक्रमण के मध्य, हजारों औद्योगिक कम्पनियों का चीन से मोह भंग हो गया है। उसमें चीन की हठधर्मी नीतियों का भी बड़ा योगदान है साथ ही वैश्विक औद्योगिक जगत, अब किसी एक स्थान के बजाए अनेक स्थानों पर निवेश कर कोरोना जैसे किसी भी अप्रत्याशित जोखिम के प्रभाव को कम करना चाहता है। इस “संक्रमण और संभावना” के संधिकाल पर योगी सरकार का बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करने हेतु “विशेष पैकेज” तैयार करना, उ.प्र. को “औद्योगिक निवेश” का बड़ा हब बनाने जा रहा है। जो असीमित और गुणवत्तापरक राजगार का बड़ा जरिया बनेगा।
ऐसे में यही नहीं मुख्यमंत्री शिक्षुता (अप्रेन्टिसशिप) प्रोत्साहन योजना के तहत युवाओं को उद्योगों में प्रशिक्षण के साथ-साथ ₹2500 का मासिक प्रशिक्षण भत्ता प्रदान की जाने की व्यवस्था की गई है। विदित हो कि एक वर्ष में एक लाख युवाओं को यह सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। इस योजना के तहत 02 लाख युवाओं को जोड़े जाने की संभावनाओं को तलाशा गया है। रोजगार अथवा स्वरोजगार के माध्यम से आर्थिक स्वावलंबन के लिए युवाओं को ‘युवा हब’ के माध्यम से भी ज्यादा से ज्यादा रोजगार उपलब्ध कराए जाने के निर्देश मुख्यमंत्री योगी द्वारा दिए गए हैं। उ.प्र. सरकार का नियोजन और उसके सापेक्ष सक्रियता, यह बता रही है कि द्वापर युग के बाद फिर एक “राजयोगी” का परिश्रम, बेरोजगारी के “लाक्षागृह” की आग से पाण्डव रूपी जनता को “रोजगार रूपी पथ” के माध्यम से अवश्य बचा लेगा।
(लेखक प्रणय विक्रम सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं, वहीं महेंद्र कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार रहे हैं और वर्तमान में गोरखपुर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।)
डिस्क्लेमर: टाइम्स नाउ डिजिटल अतिथि लेखक है और ये इनके निजी विचार हैं। टाइम्स नेटवर्क इन विचारों से इत्तेफाक नहीं रखता है।