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1962 में हुए भारत-चीन युद्ध की इन खास बातों को जानते हैं आप, क्या हार के लिए नेहरू थे जिम्मेदार!

Updated Mar 03, 2021 | 06:00 IST

चीन में 1959 के तिब्बती विद्रोह के बाद जब भारत ने दलाई लामा को शरण दी तो भारत चीन सीमा पर हिंसक घटनाओं की एक श्रृंखला शुरू हो गयी।

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1962 के भारत-चीन युद्ध की इन खास बातों को जानते हैं आप
मुख्य बातें
  • चीन और भारत के बीच 1962 में एक युद्ध हुआ था
  • उस समय हिंदी चीनी भाई-भाई नारा छाया रहता था
  • चीन ने 20 नवम्बर 1962 को युद्ध विराम की घोषणा कर दी

चीन और भारत के बीच 1962 में  युद्ध हुआ था, इस युद्ध की तमाम ऐसी बातें हैं जो ज्यादातर लोग नहीं जानते हैं वहीं लोग भारत की हार के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को भी जिम्मेदार मानते हैं।सन् 1962 की भारत-चीन की लड़ाई को भला कौन भूल सकता है,उस समय हिंदी चीनी भाई-भाई नारा छाया रहता था, लेकिन बॉर्डर पर चीन की इस करतूत से हर कोई हैरान था भारत को कभी यह शक नहीं हुआ कि चीन हमला भी कर सकता है।

गौरतलब है कि चीन और भारत के बीच 1962 में एक युद्ध हुआ था। विवादित हिमालय सीमा युद्ध के लिए एक मुख्य बहाना था, लेकिन अन्य मुद्दों ने भी भूमिका निभाई।

भारत ने फॉरवर्ड नीति के तहत मैकमोहन रेखा से लगी सीमा पर अपनी सैनिक चौकियाँ रखी जो 1959 में चीनी प्रीमियर झोउ एनलाई के द्वारा घोषित वास्तविक नियंत्रण रेखा के पूर्वी भाग के उत्तर में थी।चीनी सेना ने 20 अक्टूबर 1962 को लद्दाख में और मैकमोहन रेखा के पार एक साथ हमले शुरू किये।

चीनी सेना दोनों मोर्चे में भारतीय बलों पर उन्नत साबित हुई और पश्चिमी क्षेत्र में चुशूल में रेजांग-ला एवं पूर्व में तवांग पर अवैध कब्ज़ा कर लिया। 

चीन ने 20 नवम्बर 1962 को युद्ध विराम की घोषणा कर दी और साथ ही विवादित दो क्षेत्रों में से एक से अपनी वापसी की घोषणा भी की, हलाकिं अक्साई चिन से भारतीय पोस्ट और गश्ती दल हटा दिए गए थे, जो संघर्ष के अंत के बाद प्रत्यक्ष रूप से चीनी नियंत्रण में चला गया। 

1962 के भारत-चीन युद्ध की अहम बातों पर एक नजर-

  1. इस युद्ध में चीनी और भारतीय दोनों पक्ष द्वारा नौसेना या वायु सेना का उपयोग नहीं किया गया था
  2. इस युद्ध में ज्यादातर लड़ाई 4250 मीटर (14,000 फीट) से अधिक ऊंचाई पर लड़ी गयी
  3. भारत-चीन युद्ध कठोर परिस्थितियों में हुई लड़ाई के लिए उल्लेखनीय है
  4. चीन इलाके का लाभ उठाने में सक्षम था और चीनी सेना का उच्चतम चोटी क्षेत्रों पर कब्जा था
  5. दोनों पक्षों को ऊंचाई और ठंड की स्थिति से सैन्य और अन्य लोजिस्टिक कार्यों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा
  6. भारत और चीन दोनों के कई सैनिक जमा देने वाली ठण्ड से मर गए
  7. युद्ध क्षेत्र में भारत ने सैनिकों की सिर्फ दो टुकड़ियों को तैनात किया जबकि चीन की वहां तीन रेजिमेंट्स तैनात थीं
  8. चीनी सैनिकों ने भारत के टेलिफोन लाइन को भी काट दिए थे इससे भारतीय सैनिकों के लिए अपने मुख्यालय से संपर्क करना मुश्किल हो गया था।
  9. बताते हैं कि चीन के 80 हजार जवानों का मुकाबला करने के लिए भारत की ओर से मैदान में थे 10-20 हजार सैनिक
  10. युद्ध पूरा एक महीना चला जब तक कि 21 नवंबर 1962 को चीन ने युद्ध विराम की घोषणा नहीं कर दी
  11. 1962 का युद्ध भारतीयों द्वारा एक सैन्य पराजय और एक राजनीतिक आपदा के संयोजन के रूप में देखा गया

सेना के पूर्ण रूप से तैयार नहीं होने का सारा दोष रक्षा मंत्री मेनन पर आ गया, जिन्होंने अपने सरकारी पद से इस्तीफा दे दिया ताकि नए मंत्री भारत के सैन्य आधुनिकीकरण को बढ़ावा दे सके। स्वदेशी स्रोतों और आत्मनिर्भरता के माध्यम से हथियारों की आपूर्ति की भारत की नीति को इस युद्ध ने पुख्ता किया। 

हार के लिए क्या जवाहर लाल नेहरू थे जिम्मेदार!

हार के कारणों को जानने के लिए भारत सरकार ने युद्ध के तत्काल बाद ले. जनरल हेंडरसन ब्रुक्स और इंडियन मिलिट्री एकेडमी के तत्कालीन कमानडेंट ब्रिगेडियर पी एस भगत के नेतृत्व में एक समिति बनाई थी। दोनों सैन्य अधिकारियो द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट को भारत सरकार अभी भी इसे गुप्त रिपोर्ट मानती है। दोनों अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट में हार के लिए प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराया था। इतिहास के हवाले से कई दावे ऐसे भी हैं कि जवाहर लाल नेहरू की गलती की वजह से भारत ने संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता ठुकरा दी और अपनी जगह ये स्थान चीन को दे दिया बताते हैं कि वो चीन को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता दिलवाने के लिए पूरी दुनिया में लाबिंग करने लगे।
 

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