- वरिष्ठ नेताओं के ग्रुप-23 ने कांग्रेस पार्टी में बदलाव के लिए कई बार सार्वजनिक रूप से मौजूदा कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं।
- सचिन पायलट, मिलिंद देवड़ा जैसे नेताओं की नाराजगी कई बार खुलकर सामने आ चुकी है
- ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुष्मिता देव, जितिन प्रसाद, प्रियंका चतुर्वेदी जैसे नेताओं ने पार्टी का साथ छोड़ा
नई दिल्ली: एक तरफ कांग्रेस नेता राहुल गांधी विपक्ष को एकजुट करने में जुटे हुए हैं। वहीं उनकी पार्टी के वे लोग उन्हें छोड़कर जा रहे हैं, जिन्हें कभी उनका सबसे भरोसेमंद माना जाता था। हालात यह है कि अब पार्टी में यह सवाल उठने लगे हैं कि राहुल जिस युवा ब्रिग्रेड के भरोसे पार्टी के रिवाइवल का प्लान बना रहे थे। उसी ने उन्हें छोड़ दिया है। इसी वजह से पार्टी के अंदर ही बदलाव की मांग के लिए बने ग्रुप-23 गुट के नेता कपिल सिब्बल ने सवाल पूछ लिया "युवा नेता छोड़कर जा रहे हैं, जबकि हम बुजुर्ग जब पार्टी को मजबूत करने की कोशिश करते हैं तो इसके लिए हमें दोषी ठहराया जाता है।" साफ है कि पार्टी में हर स्तर पर असंतोष है।
लिस्ट में सुष्मिता देव ताजा नाम
असम से कांग्रेस की युवा नेता सुष्मिता देव ने सोमवार को तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया है। सुष्मिता को राहुल और सोनिया गांधी का करीबी नेता मानाा जाता रहा है। वह असम कांग्रेस के कद्दावर नेता संतोष मोहन देव की बेटी है। वह करीब 30 साल से कांग्रेस से जुड़ी हुई थी। पार्टी सूत्रों के अनुसार सुष्मिता देव असम विधान सभा चुनावों से ही नाराज चल रही थी। वह पार्टी द्वारा एआईडीयूएफ के साथ गठबंधन से नाराज थी। इसके अलावा चुनावों में टिकट वितरण को लेकर भी नाराजगी चल रही थी। एक सूत्र के अनुसार वह चुनावों के समय ही लगभग पार्टी छोड़ चुकी थी लेकिन सोनिया गांधी के दखल के बाद उन्होंने फैसला टाल दिया था। लेकिन अब उन्होंने पार्टी छोड़ने का फैसला कर लिया। वह कहते हैं कि जिस तरह से लोग छोड़कर जा रहे हैं, उससे अब लगता है कि अगला कौन होगा ?
ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, प्रियंका चतुर्वेदी जैसे नेता भी पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं। जिन्हें एक समय राहुल गांधी की युवा ब्रिगेड का प्रमुख साथी माना जाता था। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार अगर देखा जाय तो अभी भी पार्टी के साथ वहीं लोग जुड़े हुए हैं, जिन्हें शायद अब काम का नहीं माना जा रहा है। जिनसे राहुल गांधी को काफी उम्मीदें थी,उन्होंने ही उनका साथ छोड़ दिया।
क्या भविष्य सुरक्षित नहीं
एक युवा नेता का कहना है कि जब राहुल गांधी 2017 में पार्टी के अध्यक्ष बनाए गए तो एक नया उत्साह बना था। उन्होंने यूथ स्तर पर कई सारे बदलाव भी किए। और युवा नेताओं को मौके भी दिए। चाहे ज्योतिरादित्य सिंधिया हो, सचिन पायलट या मिलिंद देवड़ा लेकिन उम्मीद के अनुसार परिणाम नहीं आए। साथ ही 2019 की हार ने कई नेताओं के भरोसे को डगमगा दिया। उसके बाद से यह सिलसिला चल रहा है। असल में युवा नेताओं को ऐसा लगता है कि पार्टी में उनका भविष्य नहीं है। इसे देखते हुए वह दूसरी पार्टी का हाथ थाम रहे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में गए तो आज केंद्रीय मंत्री हैं। इसी तरह असम में हेमंत बिस्वा शर्मा ने पार्टी छोड़ी तो वह भाजपा का दामन थामकर राज्य के मुख्य मंत्री बन चुके हैं। ऐसे में दूसरे नेताओं को भी ऐसा लगता है। इसी तरह जितिन प्रसाद जिन्हें बंगाल चुनाव का पार्टी ने प्रभारी बनाया था। वह भी जून 2021 में पार्टी का साथ छोड़कर भाजपा का दामन थाम चुके हैं। सूत्रों के अनुसार वह अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश में अपनी अनदेखी परेशान थे। उनका यह मानना था कि पार्टी ने जानबूझ कर उन्हें बंगाल का प्रभारी बनाया था। क्योंकि यह सबको पता था कि बंगाल विधान सभा चुनावों में पार्टी कुछ नहीं करने वाली है और हार का ठीकरा उन पर फोड़ना था।
असंतुष्टों की लिस्ट लंबी
ऐसा नहीं है कि असंतुष्टों की लिस्ट खत्म हो गई है। अभी जून में महाराष्ट्र से कांग्रेस नेता मिलिंद देवड़ा ने गुजरात में भाजपा सरकार की तारीफ की थी। उन्होंने सरकार के उस फैसले का स्वागत किया था जिसमें एक साल के लिए प्रॉपर्टी टैक्स और बिजली बिल कई इंडस्ट्री के लिए माफ कर दिया था। इसके अलावा मिलिंद देवड़ा और संजय निरूपम की आपसी खींचतान भी जगजाहिर है। इसी तरह सचिन पायलट भी राजस्थान में अपनी ही सरकार के खिलाफ आवाज उठाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। पिछले साल कांग्रेस का राजस्थान संकट किसी से छुपा हुआ नहीं है। बड़ी मुश्किल से प्रियंका गांधी के हस्तक्षेप और अशोक गहलोत के राजनीतिक दांव से मामला संभल पाया था। जाहिर है पार्टी में कई स्तर पर समस्याएं हैं। अब देखना है कि आने वाले समय में राहुल गांधी इन चुनौतियों से कैसे पार पाते हैं।