- राहुल गांधी को ममता बनर्जी से लेकर शरद पवार से मिलेगी चुनौती
- भाजपा का अभी भी 225 लोक सभा सीटों पर सीधा कांग्रेस मुकाबला
- कांग्रेस के मुकाबले राज्यों के क्षत्रप भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती
नई दिल्ली। पंजाब से लेकर राजस्थान तक पार्टी में कलह का सामना कर रहे, राहुल गांधी ने विपक्ष को गोलबंद करने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। मंगलवार को इसी कवायद में उन्होंने मोदी सरकार को घेरने के लिए 15 विपक्ष दलों को नाश्ते की टेबल पर लाकर आगे की राजनीति की संकेत दे दिए हैं। दिल्ली के कॉस्टीट्यूशन क्लब में हुई इस बैठक में एनसीपी, शिवसेना,सीपीआई, सीपीआई-एम, राजद, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, जेएमएम, आरएसपी , नेशनल कांफ्रेंस सहित विपक्ष के प्रमुख दलों ने बैठक में शिरकत की। इस दौरान कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा "इस बैठक का एक मात्र एजेंडा यह है कि हम सब को एक होना है। जितनी हमारी आवाज एक होगी उतना ही भाजपा और आरएसएस के लिए हमारी आवाज को दबाना मुश्किल होगा।"
राहुल गांधी की कवायद से साफ है कि वह मोदी सरकार के सामने कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष को एक-जुट करने की कोशिश में हैं। इसीलिए उन्हें क्लब से संसद तक विपक्ष के नेताओं के साथ साइकिल यात्रा निकाल कर यह दिखाने की कोशिश की है कि अब समय आ गया है कि वे कांग्रेस की छत के नीचे इकट्ठा हो जाए, क्योंकि अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो साल 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की चुनौती से पार पाना मुश्किल होगा। इस पहल पर कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से बात करते हुए कहते है "यह बात विपक्षी दल भी कहते हैं कि कांग्रेस के बिना कोई मजबूत मोर्चा नहीं बन सकता है, राहुल गांधी उसका नेतृत्व कर रहे हैं। और केवल आज की बैठक को क्यों देख रहे हैं, पिछले ढाई साल में चाहे चीन के अतिक्रमण का मामला हो, महंगाई का मुद्दा हो, किसानों के खिलाफ लाए गए तीन कृषि कानूनों की बात हो या वैक्सीन संकट की बात हो, राहुल गांधी आगे आकर सरकार से सवाल पूछ रहे हैं। इसी तरह पेगासस का मामला भी राहुल मजबूती से उठा रहे हैं। " हालांकि सीएसडीएस (सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपमिंग सोसाइटीज) के प्रोफेसर संजय कुमार कहते हैं "देखिए यह बात जितनी आसान दिख रही है, उतनी आसान नहीं है। क्योंकि इस तरह की बैठके विपक्ष करता रहता है। ऐसे में कांग्रेस को अपनी अंदरुनी चुनौतियों से उबर कर एक मजबूत नेतृत्व देना होगा। तभी ऐसा हो सकता है।"
बार-बार टल रहा है अध्यक्ष पद का चुनाव
हालांकि राहुल के लिए इस समय सबसे बड़ी चुनौती, उन्हें अपनी पार्टी से ही मिल रही है। पंजाब में जिस तरह कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्दधू और राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट का कलह खुल कर सामने आया है। और खुद पार्टी के कई नेता कांग्रेस का दामन छोड़ रहे हैं। जिसमें खुद राहुल के करीबी ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद जैसे नेता शामिल हैं। उससे साफ है कि पार्टी में एक बेचैनी है। यह बेचैनी बार-बार अध्यक्ष पद टलने से और बढ़ रही है। सोनिया गांधी कार्यकारी अध्यक्ष बनी हुई हैं और 2019 के लोकसभा चुनावों में हार के बाद पार्टी अभी तक अध्यक्ष चुनने को लेकर कन्फ्यूज है। ऐसे में भाजपा यह कहती रहती है कि राहुल गांधी का नेतृत्व उनके लिए अच्छा है। क्योंकि उन्हें हराने के लिए हमें ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है। भाजपा के इस रूख पर संजय भी इत्तेफाक रखते हैं। वह कहते हैं "पिछले कुछ चुनावों को देखिए तो राहुल की तुलना में राज्यों के क्षत्रप भाजपा के लिए ज्यादा परेशानी बने हैं। पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तेलंगाना, तमिलनाडु, दिल्ली, यहां तक कि बिहार के चुनाव इसके प्रमाण हैं। लेकिन यह बात भी नहीं भूलना चाहिए देश में अभी भी 225 लोक सभा सीटें ऐसी हैं, जहां पर भाजपा की सीधे कांग्रेस से टक्कर है। ऐसे में विपक्षी दल किसी भी हालत में कांग्रेस को अलग-थलग कर दिल्ली की कुर्सी नहीं हासिल कर सकते हैं। यही नहीं ज्यादातर क्षत्रप अपने राज्य में ही मजबूत है। उनकी ऐसी हालत नहीं है कि वह अपने पड़ोसी राज्यों में कोई असर डाल सके। "
ममता नरम, लेकिन मानेंगी नेतृत्व
मंगलवार की बैठक की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि इस बार राहुल गांधी के आह्ववाहन पर विपक्षी की बैठक में तृणमूल कांग्रेस ने भी भागीदारी की है। क्योंकि इसके पहले की कांग्रेस द्वारा बुलाई गई बैठक में तृणमूल ने दूरी बनाई थी। इस बैठक में ममता के करीबी नेता और सांसद सौगत रॉय, महुआ मित्रा और
क्लायण बनर्जी ने शिरकत की। हालांकि इस रवैये से इस बात के कहीं संकेत नही है कि ममता 2024 के लिए अपने को विपक्ष के नेता के रूप में पेश नहीं करेगी। क्योंकि वह बीते सोमवार को कह चुकी है कि वह हर 2 महीने पर दिल्ली आएगी। साथ ही पश्चिम बंगाल चुनावों के हिट चुनावी अभियान खेला होबे को पूरे देश में असरकारी करने का ऐलान कर दिया है। साफ है कि वह भी दिल्ली की कुर्सी पर नजर गड़ाई हुईं है। इस बीच तृणमूल कांग्रेस के नेता ममता को प्रधान मंत्री पद के लिए फिट बताते रहते हैं।
शरद पवार भी फ्रंट रनर
ममता बनर्जी की तरह एनसीपी प्रमुख शरद पवार भी विपक्ष के नेता की रेस में हैं। कई बार एनसीपी की तरफ से इस बात के संकेत दिए गए हैं कि सोनिया गांधी की अस्वस्थता को देखते हुए शरद पवार को यूपीए का प्रमुख बनाया जाना चाहिए। ऐसे में साफ है कि शरद पवार इतनी आसानी से राहुल या ममता के लिए रास्ता साफ नहीं करने वाले हैं। उनकी चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से लगातार हो रही बैठके भी कई सारे संदेश देती हैं।
अखिलेश का मिला साथ
राहुल गांधी के लिए अच्छी बात यह है कि उन्हें अखिलेश यादव से सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं। हाल ही उन्होंने कहा है कि कांग्रेस को यह तय करना है कि उसका दुश्मन नंबर वन भाजपा है या कोई और है। जाहिर है अखिलेश का यह बयान उनके उस रुख से अलग है, जिसमें वह बड़ी पार्टियों से गठबंधन नहीं करने की बात 2022 में उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनावों को देखते हुए कह रहे थे। उनके बदले रुख से लगता है कि वह 2017 के विधान सभा चुनावों की तरह कांग्रेस के साथ आने का रास्ता खुला रखना चाह रहे हैं। हालांकि बैठक से आम आदमी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने दूरी बनाई । साफ है कि ये दोनों दल अभी कांग्रेस के साथ आते हुए नहीं दिखना चाहते हैं। उसकी एक बड़ी वजह 2022 में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधान सभा चुनाव हैं। क्योंकि जहां बसपा फिर से खोई ही जमीन तलाश रही है, वहीं आम आदमी पार्टी पांव जमाने की कोशिश में है।