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SC on 2.77 acre land: सूट नंबर 4 और 5 का हवाला देकर इलाहाबाद HC के फैसले को 'सुप्रीम' नकार

Updated Nov 09, 2019 | 14:19 IST | टाइम्स नाउ ब्यूरो

supreme court differs with allahabad highcourt: अयोध्या में विवादित 2.77 एकड़ जमीन पर सुप्रीम कोर्ट ने रामलला विराजमान के दावे पर मुहर लगा दी है। इस तरह से इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को नकार दिया।

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नई दिल्ली। अयोध्या टाइटल सूट केस में अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा गया था। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच जजों की पीठ ने 2.77 एकड़ जमीन को रामलला विराजमान के हवाले कर दिया। इसके साथ ही अदालत ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वो सुन्नी वक्फ बोर्ड को उचित जगह पर पांच एकड़ जमीन उपलब्ध कराए। यहां जानना जरूरी है कि टाइटल सूट केस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को क्यों खारिज कर दिया। 

टाइटल सूट नंबर 4 और 5 का सुप्रीम कोर्ट ने किया जिक्र
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उस रास्ते को अख्तियार किया जो उसके दायरे में नहीं आती थी। हाईकोर्ट ने अपने फैसले के जरिए इस मामले में जिन पक्षों को राहत दी उसका जिक्र सूट में नहीं था। पांच जजों की पीठ ने कहा कि टाइटल सूट नंबर 4 यह सुन्नी वक्फ बोर्ड से संबंधित है और टाइटल सूट नंबर 5 यह रामलला विराजमान से संबंधित है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फैसला देते समय इन दोनों सूट में संतुलन बनाना होगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जो तीन पक्ष माने थे उसे दो पक्ष मानना होगा। हाईकोर्ट को विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटना तर्कसंगत नहीं है। इसके बाद साफ हो गया कि इस केस में सिर्फ दो पक्ष रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड ही अस्तित्व में रह गए। 

इलाहाबाद हाईकोर्ट का ये था फैसला
जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एस यू खान और जस्टिस डी वी शर्मा की बेंच ने 30 सितंबर 2010 को अयोध्या विवाद पर अपना फैसला सुनाया था। तीनों न्यायाधीशों ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि के तीन बराबर हिस्सा करने का आदेश दिया। राम मूर्ति वाला पहला हिस्सा राम लला विराजमान को दिया गया। राम चबूतरा और सीता रसोई वाला दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को दिया गया और बाकी बचा हुआ तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दिसंबर 2010 में हिन्दू महासभा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 9  सुप्रीम कोर्ट मई 2011 में पुरानी स्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया और तब से यथास्थिति बरकरार थी। हाईकोर्ट ने  वर्ष 2003 में विवादित जगह की खुदाई करायी थी। खुदाई करने का मकसद यह जानना था कि जो पक्ष मंदिर और मस्जिद का दावा कर रहे हैं उन दावों में कितनी सच्चाई है। एएसआई ने विवादित जगह की खुदाई कराई और यह पाया गया कि  मस्जिद वाली जगह पर कभी हिंदू मंदिर हुआ करता था। 

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