- बंगाल हिंसा मामले में कलकत्ता हाई कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला
- हिंसा की जांच सीबीआई-एसआईटी से कराने का दिया आदेश
- कोर्ट के फैसले पर भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय ने जताई खुशी
नई दिल्ली : पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा पर कलकत्ता हाई कोर्ट ने गुरुवार को अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने हिंसा से जुड़े सभी मामलों की जांच सीबीआई-एसआईटी से कराने का आदेश दिया है। साथ ही राज्य सरकार को सभी पीड़ितों को मुआवजा देने का आदेश दिया है। हाई कोर्ट का यह फैसला ममता सरकार के लिए एक झटके की तरह है क्योंकि कोर्ट को लगा है कि हिंसा मामले में राज्य सरकार अपनी भूमिका सही तरीके से नहीं निभाई है। हाई कोर्ट के फैसले पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने खुशी जाहिर की।
टीएमसी को शर्मिंदा होना चाहिए-विजयवर्गीय
पश्चिम बंगाल के भाजपा प्रभारी एवं पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने 'टाइम्स नाउ नवभारत' के साथ बातचीत में कहा कि 'बंगाल में चुनाव बाद राज्य द्वारा प्रायोजित हिंसा हुई। न्यायपालिका का आज का निर्णय आम आदमी को न्याय दिलाने के लिए है। उन्होंने कहा कि कोर्ट के इस फैसले के बाद ममता सरकार और टीएमसी को शर्मिंदा होना चाहिए। भाजपा नेता ने दावा किया कि चुनाव बाद की हिंसा में हत्याए हुईं और महिलाओं के साथ रेप हुए। इसके साक्ष्य हैं। सीबीआई जांच के बाद राज्य सरकार का वास्तविक चेहरा सबके सामने आ जाएगा।
सभी पीड़ितों को मुआवजा देने का आदेश
कोर्ट ने अपने फैसले में हिंसा से जुड़े सभी मामलों की जांच सीबीआई और एसआईटी से कराने का आदेश दिया है। जांच के लिए बनने वाली एसआईटी में बंगाल कैडर के वरिष्ठ अधिकारियों को शामिल किया जाएगा। साथ ही कोर्ट ने सीबीआई और एसआईटी को छह सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट उसे सौंपने के लिए कहा है। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को सभी पीड़ितों को मुआवजा देने का आदेश भी दिया है। कोर्ट मामले की अगली सुनवाई 4 अक्टूबर को करेगा।
'मानवता की रक्षा के लिए कोर्ट का फैसला'
कोर्ट का फैसला आने के बाद बंगाल के नेता प्रतिपक्ष और नंदीग्राम से भाजपा विधायक सुवेंदु अधिकारी और राज्यसभा में भाजपा सांसद रूपा गांगुली ने 'टाइम्स नाउ नवभारत' से बातचीत की। अधिकारी ने कहा कि ये राजनीति का मुद्दा नहीं बल्कि मानवता का सवाल है। बंगाल में जो कुछ हुआ, वैसी राजनीतिक हिंसा स्वतंत्रता के बाद नहीं हुई। कोर्ट का आज का फैसला मानवता की रक्षा के लिए है। गांगुली ने कहा कि हिंसा की घटनाओं को राज्य सरकार स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थी। कोर्ट के इस आदेश के बाद उन्हें हिंसा की बात माननी पड़ेगी।