आर्मी भर्ती की नई स्कीम अग्निपथ के खिलाफ शहर-शहर विरोध की आग सुलगने के बीच इस आंदोलन को क्यों किसान आंदोलन से जोड़ा जा रहा है? आखिर क्या वजह है कि कांग्रेस ने अग्निपथ स्कीम का हश्र भी कृषि कानूनों की तरह होने की भविष्यवाणी की है और किसान नेताओं ने छात्रों के विरोध-प्रदर्शन को लेकर क्या कहा है? अग्निपथ पर प्रदर्शनकारियों की आगजनी और सरकार की अग्निपरीक्षा जारी है। देश के 10 से ज्यादा राज्यों में शहर-शहर नौजवानों के आक्रोश की आग धधक रही है। इस प्रदर्शन में शामिल लोग कौन हैं? तो आप कहेंगे वो छात्र..जो आर्मी के नए रिक्रूटमेंट प्लान से नाराज हैं। मांग जायज हो सकती है..लेकिन विरोध के लिए इस तरह के नाजायज तरीके हरगिज जायज नहीं ठहराए जा सकते हैं।
ऐसे में सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या विरोध की इस आग को हवा कहीं और से भी दी जा रही है? क्या इस आंदोलन में साजिश का भी कोई एंगल है? फिलहाल, इसे लेकर कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी..लेकिन छात्रों के आंदोलन वाले दंगल में कैसे वो किसान नेता भी कूद गए हैं? जो कृषि कानूनों की वापसी के लिए करीब साल भर दिल्ली के बॉर्डर्स पर डटे रहे और उठे तभी जब सरकार ने कानून वापसी का ऐलान किया। ऐसे में बड़ा सवाल ये कि क्या 'अग्निपथ' स्कीम का हश्र भी कृषि कानूनों जैसा होगा?
किसान आंदोलन और किसानों के नाम पर राजनीति के बाद अब टिकैत जैसे नेता आर्मी भर्ती की अग्निपथ स्कीम को लेकर भी दिल्ली कूच का दम भर रहे हैं। आर्मी, एयरफोर्स और नेवी तीनों सेना प्रमुखों ने प्रदर्शनकारियों के भ्रम को दूर करने की कोशिश की। एक तरफ आक्रोशित नौजवानों की भीड़ अग्निपथ स्कीम को हर हाल में वापस लेने की मांग पर अड़ी है, तो दूसरी तरफ कुछ स्टूडेंट्स ऐसे भी हैं..जो इसे बड़े मौके की तरह देख रहे हैं।
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कृषि कानूनों को लेकर भी देश के लोगों और किसानों की अलग-अलग राय थी। एक बड़े तबके का मानना था कि तीनों कृषि कानून किसानों के लिए फायदेमंद थे लेकिन पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी के किसानों के आंदोलन के आगे सरकार को झुकना पड़ा। यही वजह है कि अब आर्मी भर्ती की नई स्कीम अग्निपथ को लेकर भी सरकार पर दबाव बहुत बड़ा है। ऐसे में सवाल ये कि क्या इसकी वापसी भी कृषि कानूनों की तरह होगी? फिलहाल कहना मुश्किल है लेकिन आगे जो भी हो, अभी की तस्वीरें कतई शुभ नहीं हैं।
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