सियासत का मौजूदा स्याह सच यही है कि अब विचारधारा किसी भी सियासदां के लिए मायने नहीं रखती। एक वक्त था जब विचारधारा राजनीति की धुरी थी। लेकिन अब ऐसा नहीं है। कन्हैया हों, सिद्धू हों, बाबुलु सुप्रियो या फिर कोई और देश के राजनेता जिस तरह से पाला बदल रहे हैं, उससे विचारधारा और सिद्धांत मानो रो रहे हैं। ये वो नेता हैं, जो हर वक्त विचारधारा और सिद्धांतों की दुहाई देते नहीं थकते थे। पर सच्चाई वो है जो आए दिन हमारे और आपके सामने आती रहती है। जो आज फिर सामने आई।
कन्हैया का सीपीआई से मोहभंग हो गया था। इसके पीछे कई वजह है। एक वजह तो ये है कि CPI ने फरवरी में कन्हैया के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया था। आरोप है कि पार्टी के पटना ऑफिस में कन्हैया ने 1 दिसंबर 2020 को कार्यालय सचिव के साथ मारपीट की थी। उस वक्त हैदराबाद में सीपीआई नेशनल काउंसिल की बैठक चल रही थी। इसी मीटिंग में कन्हैया के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित हुआ था। यहीं से कन्हैया का सीपीआई से मोहभंग हो गया। लेकिन मोहभंग की सबसे बड़ी वजह है देश से लगातार होता लेफ्ट का सफाया। इसीलिए कन्हैया को सीपीआई में अपना फ्यूचर नहीं दिख रहा था। आपको ग्राफिक्स के जरिए समझाते हैं कि देश की राजनीति में 20 सालों में लेफ्ट किस तरह से सिमट चुकी है।
जिस लेफ्ट के पास 1999 में 33 सांसद थे, वो 2019 में घटकर सिर्फ 3 पर आ गए। अब लेफ्ट सिर्फ केरल में सिमट कर रही गई है। उसका जनाधार बहुत तेजी से सिकुड़ चुका है।