- संसद के सेंट्रल हॉल में द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद की दिलाई गई शपथ
- प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण ने मुर्मू को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई
- शपथ ग्रहण करने के बाद राष्ट्रबपति मर्मू ने हिंदी में दिया अपना पहला भाषण
Draupadi Murmu's first speech : प्रधान न्यायाधाश (सीजेआई) एनवी रमण ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति के पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। शपथ ग्रहण करने के साथ ही मुर्मू देश की 15वीं राष्ट्रपति बन गईं। वह इस पद पर पहुंचने वाली देश की पहली आदिवासी एवं दूसरी महिला राष्ट्रपति हैं। संसद के सेंट्रल हॉल में संपन्न हुए शपथ ग्रहण समारोह में सत्ता पक्ष एवं विपक्ष के सभी बड़े नेता, केंद्रीय मंत्री एवं सांसद मौजूद थे। शपथ ग्रहण करने के बाद मूर्मू ने राष्ट्रपति के रूप में अपना हिंदी में भाषण दिया। उन्होंने कहा कि इस पद पर पहुंचना उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है लेकिन यह भी सही है कि भारत में गरीब सपने देख सकता है और अपने सपने को पूरा कर सकता है।
'दुनिया को भारत से बहुत उम्मीदें हैं'
उन्होंने कहा कि भारत विविधताओं वाला देश है और दुनिया को भारत से बहुत उम्मीदें हैं। महामहिम ने आगे कहा कि दुनिया में भारत की छवि एक ताकतवर देश के रूप में उभरी है और देश की साख बढ़ी है। उनका राष्ट्रपति बनना लोकतंत्र की महानता है। उन्होंने कहा, मैं अपने देश के युवाओं से कहना चाहती हूं कि आप न केवल अपने भविष्य का निर्माण कर रहे हैं बल्कि भविष्य के भारत की नींव भी रख रहे हैं। देश के राष्ट्रपति के तौर पर मेरा हमेशा आपको पूरा सहयोग रहेगा। मैं चाहती हूं कि हमारी सभी बहनें व बेटियां अधिक से अधिक सशक्त हों तथा वे देश के हर क्षेत्र में अपना योगदान बढ़ाती रहें।
राष्ट्रपति ने कहा, 'मेरा जन्म तो उस जनजातीय परंपरा में हुआ है जिसने हजारों वर्षों से प्रकृति के साथ ताल-मेल बनाकर जीवन को आगे बढ़ाया है। मैंने जंगल और जलाशयों के महत्व को अपने जीवन में महसूस किया है। हम प्रकृति से जरूरी संसाधन लेते हैं और उतनी ही श्रद्धा से प्रकृति की सेवा भी करते हैं।मैंने अपने अब तक के जीवन में जन-सेवा में ही जीवन की सार्थकता को अनुभव किया है। जगन्नाथ क्षेत्र के एक प्रख्यात कवि भीम भोई जी की कविता की एक पंक्ति है: “मो जीवन पछे नर्के पड़ी थाउ, जगत उद्धार हेउ”। अर्थात, अपने जीवन के हित-अहित से बड़ा जगत कल्याण के लिए कार्य करना होता है। जगत कल्याण की भावना के साथ, मैं आप सब के विश्वास पर खरा उतरने के लिए पूरी निष्ठा व लगन से काम करने के लिए सदैव तत्पर रहूंगी।'
राष्ट्रपति ने अपने भाषण की शुरुआत जोहार ! (नमस्कार) के साथ की। उन्होंने कहा, 'जोहार! नमस्कार! मैं भारत के समस्त नागरिकों की आशा-आकांक्षा और अधिकारों की प्रतीक इस पवित्र संसद से सभी देशवासियों का पूरी विनम्रता से अभिनंदन करती हूं। आपकी आत्मीयता, आपका विश्वास और आपका सहयोग, मेरे लिए इस नए दायित्व को निभाने में मेरी बहुत बड़ी ताकत होंगे। भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर निर्वाचित करने के लिए मैं सभी सांसदों और सभी विधानसभा सदस्यों का हार्दिक आभार व्यक्त करती हूं। आपका मत देश के करोड़ों नागरिकों के विश्वास की अभिव्यक्ति है। मुझे राष्ट्रपति के रूप में देश ने एक ऐसे महत्वपूर्ण कालखंड में चुना है जब हम अपनी आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। आज से कुछ दिन बाद ही देश अपनी स्वाधीनता के 75 वर्ष पूरे करेगा।'
उन्होंने कहा, 'ये भी एक संयोग है कि जब देश अपनी आजादी के 50वें वर्ष का पर्व मना रहा था तभी मेरे राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई थी। और आज आजादी के 75वें वर्ष में मुझे ये नया दायित्व मिला है। ऐसे ऐतिहासिक समय में जब भारत अगले 25 वर्षों के विजन को हासिल करने के लिए पूरी ऊर्जा से जुटा हुआ है, मुझे ये जिम्मेदारी मिलना मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य है। मैं देश की ऐसी पहली राष्ट्रपति भी हूँ जिसका जन्म आज़ाद भारत में हुआ है। हमारे स्वाधीनता सेनानियों ने आजाद हिंदुस्तान के हम नागरिकों से जो अपेक्षाएं की थीं, उनकी पूर्ति के लिए इस अमृतकाल में हमें तेज गति से काम करना है।'