- राजस्थान के डिप्टी सीएम और कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाए गए सचिन पायलट
- अशोक गहलोत ने 102 विधायकों के समर्थन का किया दावा
- कार्रवाई के बाद सचिन पायलट बोले, सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं
जयपुर: राजस्थान में सियासी उठापठक का अंतिम नतीजा अभी आना बाकी है। लेकिन वर्चस्व की लड़ाई में सीएम अशोक गहलोत ने बाजी मार ली है। संख्याबल के आधार पर वो बहुमत का दावा कर रहे हैं। लेकिन बीजेपी की तरफ से अब फ्लोर टेस्ट कराए जाने की बात कही जा रही है। इस पूरी कवायद में सचिन पायलट के हाथ में न तो अब डिप्टी सीएम का पद है और न ही वो राजस्थान कांग्रेस के मुखिया हैं। हालांकि वो पार्टी में कब तर बने रहेंगे इसका फैसला या तो उनके खुद के हाथ में है या कांग्रेस का नेतृत्व तय करेगा।
सचिन पायलट के समर्थन में जितिन प्रसाद
डिप्टी सीएम और कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद सचिन पायलट ने कहा कि सत्य पराजित नहीं हो सकता है। उनके इस बयान का अर्थ क्या है उसे समझने से पहले एक और ट्वीट पर ध्यान देना जरूरी है। उनके सहयोगी जितिन प्रसाद कहते हैं कि सचिन पायलट न केवल उनके सहयोगी बल्कि उनके दोस्त भी हैं। इस सच से कोई बच नहीं सकता कि हाल के दिनों में उन्होंने पार्टी की मजबूती के लिए कितनी शिद्दत से काम किया है उन्हें उम्मीद है कि अभी भी रास्ता निकाला जा सकता है, बड़े दुख की बात है कि यह दिन सामने आया है।
बीजेपी के हाथों खेल रहे हैं सचिन पायलट
सचिन पायलट के खिलाफ कार्रवाई के बाद सीएम अशोक गहलोत ने कहा कि वो तो पूरी तरह से बीजेपी के हाथों खेल रहे हैं। यह कुछ वैसे ही जैसे आ बैल मुझे मार। गहलोत कहते हैं कि कांग्रेस की सरकार को अस्थिर करने की साजिश बहुत लंबे समय से हो रही थी। राज्यसभा चुनाव के दौरान क्या कुछ हुआ है उसे दुनिया ने देखा। कांग्रेस ने जिस शख्स को इतना कुछ दिया हो वो अगर बीजेपी के इशारे पर काम करे तो उसे किस हद तक और कितना बर्दाश्त किया जा सकता है।
क्या कहते हैं जानकार
राजस्थान कांग्रेस की तस्वीर साफ हो चुकी है। गहलोत ने बाजी पूरी तरह पलट दी है। वो शुरू से ही नहीं चाहते थे कि सचिन पायलट को सरकार में बड़ी जिम्मेदारी दी जाए। लेकिन कांग्रेस आलाकमान के साथ मजबूरी थी कि वो कैसे पायलट की मेहनत को नजरंदाज कर देता। अनुभव और युवा की जोड़ी को राजस्थान भेजा गया। ये बात अलग थी कि गहलोत और पायलट एक दूसरे को मन से स्वीकार नहीं कर सके। ऐसे में मनमुटाव होना स्वाभाविक था।
जब 124 ए के तहत राज्य के डिप्टी सीएम को नोटिस भेजा गया तो सचिन पायलट ने नागवार माना और बगावत का रास्ता चुना। जानकार बताते हैं कि या तो वो अलग पार्टी बनाएं या ज्योतिरादित्य सिंधिया की राह पर चलें। एक बात साफ है कि अनिश्चितता के हालात में राज्यपाल अशोक गहलोत को विश्वास मत हासिल करने के लिए कह सकते हैं।