- कोरोना महामारी के चलते मजदूरी करने को मजबूर हुए टीचर, 235 रुपये मिल रही है दिहाड़ी
- शिक्ष रामावतार सिंह ने बताया कि उन्हें कोविड़-19 महामारी के चलते मनरेगा में काम करना पड़ रहा है
- कई राज्यों में सरकार ने स्कूलों से फीस माफ करने को कहा है
जयपुर: कोरोना महामारी का असर हर क्षेत्र में देखने को मिल रहा है। इस संकट की वजह से लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है। पहले लाखों मजदूर शहरों से गांव की तरफ पलायन करते हुए दिखे अब गांवों में भी रोजगार नहीं होने की वजह से पढ़े लिखे लोग भी मजदूरी करने को मजबूर हैं। लॉकडाउन की वजह से स्कूल बंद हैं और इस कारण निजी स्कूलों के शिक्षकों के हालात लगातार बिगड़ रहे हैं। उन्हें कोरोना संकट की वजह से आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है।
जयपुर में मजदूरी कर रहे हैं शिक्षक
ताजा मामला राजस्थान के जयपुर से आया है जहां एम.ए और बीएड करे शिक्षक अब मनरेगा में मजदूरी कर अपने भरण-पोषण के इंतजाम में लगे हैं। शहरी क्षेत्रों में जहां स्कूल और शिक्षक ऑनलाइन पढ़ाई के जरिए छात्रों को पढ़ा रहे हैं वहीं राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में शिक्षक मजदूरी कर रहे हैं।
20 हजार मिलती थी सैलरी अब मिलती है दिहाड़ी
कोरोना वायरस महामारी के चलते देश में स्कूल बंद हैं, ऐसे में जयपुर के पास आसलपुर जोबनेर गांव में एमए. बीएड. किए हुए कुछ शिक्षक मनरेगा में मज़दूरी करने को मजबूर हैं। अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए ये लोग 220 और 235 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी कर रहे हैं। हिंदी के शिक्षक रामअवतार सिंह ने कहा, 'ल में मुझे 20,000 वेतन मिलता था, यहां मुझे 235 रुपये प्रतिदिन मिलते हैं।'
दरअसल कई राज्यों ने निजी स्कूलों को आदेश दिया है कि वो छात्रों की फीस माफ कर दे और इसका असर शिक्षकों पर पड़ रहा है। वेतन नहीं मिलने की वजह से शिक्षक अब अन्य छोटे मोटे काम या मजदूरी करने को मजबूर हैं।
2020 के अंत तक और बढ़ेगी गरीबी
आपको बता दें कि देश में कोरोना के मामले डेढ़ लाख के आंकड़े को पार कर चुके हैं जिस वजह से लाखों लोगों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। आज ही जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट सामने आई है जिसमें कहा गया है कि कोरोना वायरस महामारी से पैदा हुए आर्थिक संकट के कारण 2020 के अंत तक कम और मध्यम आय वाले देशों में गरीब घरों में रहने वाले बच्चों की संख्या 8.6 करोड़ तक बढ़ सकती है।