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देशभक्ति कविताएं जिन्हें पढ़ने मात्र से ही आपके अंदर धधक उठेंगी देश भक्ति की ज्वालाएं

Updated Jan 24, 2021 | 19:47 IST

आज हम आपके लिए देशभक्ति कुछ कविताएं लेकर आए हैं, जिसे पढ़ने मात्र से ही आपके अंदर देशभक्ति ज्वालाएं धधक उठेंगी। तो आइए ऐसे में एक नजर इन कविताओं पर डालें।  

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आप भी ऐसी कविताओं को सुन अपने अंदर देशभक्ति की ज्वाला जला सकते हैं

देशभक्ति की भावना हर देशवासियों दिल में होनी चाहिए। देशभक्ति की जब बात आती है तो हमारे मन में हरिवंश राय बच्चन, माखनलाल चतुर्वेदी, राम प्रसाद बिस्मिल और सुभद्रा कुमारी चौहान की कविताएं गूंज उठती हैं। आपको बता दें ये वो कवि हैं जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपनी कविताओं के माध्यम से एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसे कतई विस्मृत नहीं किया जा सकता। 

जिनकी कविताओं को सुन आजादी के प्रति स्वतंत्रता सेनानियों के खून में उबाल आ जाता था। आप भी ऐसी कविताओं को सुन अपने अंदर देशभक्ति की ज्वाला जला सकते हैं। ऐसे में आज हम आपके लिए देशभक्ति की कुछ कविताएं लेकर आए हैं जिसे सुन आप देशभक्ति में लीन हो जाएंगे। 

देखें देशभक्ति की कुछ ऐसी ही कविताएं-

सरफरोशी की तमन्ना

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है

करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है

ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान,

हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है
खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,

आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर,
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर

खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हाथ जिन में हो जुनूँ कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से

और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न,
जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम

जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

यूँ खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है

दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज

दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है,
वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो खून-ए-जुनून

तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है 


ऐ मातृभूमि तेरी जय हो

ऐ मातृभूमि तेरी जय हो, सदा विजय हो 
प्रत्येक भक्त तेरा, सुख-शांति-कान्तिमय हो 

अज्ञान की निशा में, दुख से भरी दिशा में
संसार के हृदय में तेरी प्रभा उदय हो 

तेरा प्रकोप सारे जग का महाप्रलय हो 
तेरी प्रसन्नता ही आनन्द का विषय हो 

वह भक्ति दे कि 'बिस्मिल' सुख में तुझे न भूले
वह शक्ति दे कि दुःख में कायर न यह हृदय हो

हे मातृभूमि तेरे चरणों में

हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ ।
मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।

माथे पे तू हो चन्दन, छाती पे तू हो माला ;
जिह्वा पे गीत तू हो, तेरा ही नाम गाऊँ ।।

जिससे सपूत उपजें, श्रीराम-कृष्ण जैसे ;
उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ ।।

माई समुद्र जिसकी पदरज को नित्य धोकर ;
करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ ।।

सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर ;
वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ सुनाऊँ ।।

तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मन्त्र गाऊँ ।
मन और देह तुझ पर बलिदान मैं चढ़ाऊँ ।।


आ स्वतंत्रता प्यारे स्वदेश

आ, स्वतंत्र प्यारे स्वदेश आ,
स्वागत करती हूँ तेरा।
तुझे देखकर आज हो रहा,
दूना प्रमुदित मन मेरा॥

आ, उस बालक के समान
जो है गुरुता का अधिकारी।
आ, उस युवक-वीर सा जिसको
विपदाएं ही हैं प्यारी॥

आ, उस सेवक के समान तू
विनय-शील अनुगामी सा।
अथवा आ तू युद्ध-क्षेत्र में
कीर्ति-ध्वजा का स्वामी सा॥

आशा की सूखी लतिकाएं
तुझको पा, फिर लहराईं।
अत्याचारी की कृतियों को
निर्भयता से दरसाईं॥


यूं ही नहीं मिली आजादी

यूँ ही नहीं मिली आजादी
है दाम चुकाए वीरों ने,
कुछ हंस कर चढ़े हैं फांसी पर
कुछ ने जख्म सहे शमशीरों के,
यूँ ही नहीं मिली आजादी
है दाम चुकाए वीरों ने।

जो शुरू हुई सन सत्तावन में
सन सैंतालीस तक शुरू रही
मारे गए अंग्रेज कई
वीरों के रक्त की नदी बही,
मजबूत किया संकल्प था उनका
भारत माता के नीरों ने
यूँ ही नहीं मिली आजादी
है दाम चुकाए वीरों ने।

देश की रक्षा की खातिर
थी रानी ने तलवार उठायी
पीठ पर बांधा बालक को
पर जंग में न थी पीठ दिखाई,
कुछ ऐसे हुई शहीद की जैसे
त्यागे हैं प्राण रणधीरों ने
यूँ ही नहीं मिली आजादी
है दाम चुकाए वीरों ने।

ऊधम सिंह और मदन लाल
ने खूब ही नाम कमाया था
घुस कर लंदन में अंग्रेजों को
उनका अंजाम दिखाया था,
यूँ मातृभूमि से प्यार किया
जैसे खुदा से किया फकीरों ने
यूँ ही नहीं मिली आजादी
है दाम चुकाए वीरों ने।

जोश ही जोश भरा था लहू में
मजबूत शरीर बनाया था
हालात पतली कर दी थी
अंग्रेजों को खूब डराया था,
आजाद वो था आजाद रहा
न पकड़ा गया जंजीरों में
यूँ ही नहीं मिली आजादी
है दाम चुकाए वीरों ने।

राजगुरु, सुखदेव, भगत सिंह
हंस कर फांसी पर जब झूले
बजा बिगुल फिर आजादी का
हृदय में सबके उठे शोले,
लोगों के खौफ से डर कर ही
इन्हें जलाया सतलुज के तीरों पे
यूँ ही नहीं मिली आजादी
है दाम चुकाए वीरों ने।

है गर्व मुझे उन वीरों पर
भारत माँ के जो बेटे है
हो जान से प्यारा वतन हमें
शिक्षा इस बात की देते हैं,
इसी आजादी की खातिर ही
दी है जान देश के हीरों ने
यूँ ही नहीं मिली आजादी
है दाम चुकाए वीरों ने।

कुछ हंस कर चढ़े हैं फांसी पर
कुछ ने जख्म सहे शमशीरों के,
यूँ ही नहीं मिली आजादी
है दाम चुकाए वीरों ने।


प्यारे भारत देश

प्यारे भारत देश
गगन-गगन तेरा यश फहरा
पवन-पवन तेरा बल गहरा
क्षिति-जल-नभ पर डाल हिंडोले
चरण-चरण संचरण सुनहरा

ओ ऋषियों के त्वेष
प्यारे भारत देश।।

वेदों से बलिदानों तक जो होड़ लगी
प्रथम प्रभात किरण से हिम में जोत जागी
उतर पड़ी गंगा खेतों खलिहानों तक
मानो आँसू आये बलि-महमानों तक

सुख कर जग के क्लेश
प्यारे भारत देश।।

तेरे पर्वत शिखर कि नभ को भू के मौन इशारे
तेरे वन जग उठे पवन से हरित इरादे प्यारे!
राम-कृष्ण के लीलालय में उठे बुद्ध की वाणी
काबा से कैलाश तलक उमड़ी कविता कल्याणी
बातें करे दिनेश
प्यारे भारत देश।।

जपी-तपी, संन्यासी, कर्षक कृष्ण रंग में डूबे
हम सब एक, अनेक रूप में, क्या उभरे क्या ऊबे
सजग एशिया की सीमा में रहता केद नहीं
काले गोरे रंग-बिरंगे हममें भेद नहीं

श्रम के भाग्य निवेश
प्यारे भारत देश।।

वह बज उठी बासुँरी यमुना तट से धीरे-धीरे
उठ आई यह भरत-मेदिनी, शीतल मन्द समीरे
बोल रहा इतिहास, देश सोये रहस्य है खोल रहा
जय प्रयत्न, जिन पर आन्दोलित-जग हँस-हँस जय बोल रहा,

जय-जय अमित अशेष
प्यारे भारत देश।।