- कोरोना से ठीक हुए मरीजों के स्वास्थ्य सुधार और ऐसे लक्षणों से निजात दिलाने में फिजियोथेरेपी महत्वपूर्ण रोल निभा सकती है
- इस संक्रमण के बाद शरीर में सांस लेने वाला सिस्टम बुरी तरह प्रभावित होता है
- कंट्रोल ब्रीदिंग एक्सरसाइज, पेस्ड ब्रीदिंग, शुरुआत में फंक्शनलिटी केपिसिटी को बढ़ाने पर जोर होता है
नई दिल्ली: पूरे देश में लोगों को एक बार फिर कोविड-19 की दूसरी लहर का सामना करना पड़ रहा है। एक्वासेंट्रिक थेरेपी प्रायवेट लिमिटेड की कार्डियो-रेस्पिरेटरी फिजियोथेरेपिस्ट डॉ. दीपा फार्तोडे ने बताया कि अब यह केवल बुजुर्गों या वयस्कों को ही प्रभावित नहीं कर रहा है बल्कि युवा भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। सांस लेने में परेशानी, मसल्स में कमजोरी और थकान, यह वो सामान्य लक्षण हैं, जो कोविड से ठीक होने के बाद लोगों में देखने को मिले हैं।
यह लक्षण कुछ हफ्ते तक रह सकते हैं या कुछ महीने तक भी रह सकते हैं। यह निर्भर करता है कि किस हद तक कोविड-19 ने मरीज को अपनी जकड़ में लिया है। उपरोक्त लक्षणों का यदि सही ढंग से इलाज न किया जाए तो शरीर की फंक्शनलिटी में समस्याएं हो सकती हैं।
कोरोना की रिकवरी में फिजियोथेरेपी का रोल
जीवन की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। दैनिक दिनचर्या के कार्यों में देरी भी हो सकती है। डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन के मुताबिक, कोरोना से ठीक हुए मरीजों के स्वास्थ्य सुधार और ऐसे लक्षणों से निजात दिलाने में फिजियोथेरेपी महत्वपूर्ण रोल निभा सकती है।
इस संक्रमण के बाद शरीर में सांस लेने वाला सिस्टम बुरी तरह प्रभावित होता है। ऐसे में यह अनिवार्य हो जाता है कि सबसे पहले फेफड़ों से संबंधित स्वास्थ्य सुधार शुरू किए जाए। स्वास्थ्य सुधार के लिए कई विषयों के विशेषज्ञों की जरूरत होती है। पल्मोनोलॉजिस्ट, कार्डियोलॉजिस्ट, न्यूरोलॉजिस्ट, फिजियोथेरेपिस्ट, ऑक्युपेशनल थेरेपिस्ट, डायटिशियन और सायकोलॉजिस्ट की जरूरत होती है। जिन लोगों को सामान्य लक्षण होते हैं, वे केवल सांस लेने का अभ्यास कर सकते हैं जैसे कंट्रोल ब्रीदिंग एक्सरसाइज, पेस्ड ब्रीदिंग, शुरुआत में फंक्शनलिटी केपिसिटी को बढ़ाने पर जोर होता है।
कई तरह की हॉबिज में अपना दिमाग लगाना चाहिए
इसके बाद धीरे-धीरे इसमें बढ़ोतरी करके दैनिक दिनचर्या की गतिविधियों को बढ़ाया जा सकता है। लोगों को कई तरह की हॉबिज में अपना दिमाग लगाना चाहिए। साथ ही अच्छी नींद लेना चाहिए। अच्छे न्यूट्रीशियन लेना चाहिए। हालांकि, जिन लोगों में ज्यादा लक्षण हैं उन्हें तो यही सलाह दी जाती है कि वे किसी फिजियोथेरेपिस्ट या टेली रिहैब के मार्गदर्शन में अपना स्वास्थ्य सुधार प्रक्रिया को शुरू करें। यह न सिर्फ सुरक्षित होगा बल्कि प्रभावी भी होगा। इससे संक्रमण के बढ़ने की आशंका भी कम होगी और बेहतर इलाज भी मिल पाएगा। इस महामारी के दौर में भी आपका निरंतर इलाज जारी रहेगा।
कोविड-19 से उबर चुके मरीजों के लिए टेली-रिहैब का सफरः
टेली-रिहैब का सफर टेली कंसल्टेशन (फोन पर परामर्श) से शुरू होता है। इसमें थेरेपिस्ट परामर्श के समय तक मरीज के लक्षणों का पूरा इतिहास पता करते हैं। क्या दवाएं ली गईं, क्या गतिविधियां की गईं, क्या रोकी गईं आदि। इसके बाद सीमित निरीक्षण किया जाता है। ऑक्सीजन का सैचुरेशन, पल्स रेट, सांस लेने की दर और शरीर का तापमान।
कुछ बातें, जिनका ध्यान रखा जाना चाहिएः
अस्पताल में लंबा समय बिताने के बाद मरीज के मानसिक स्वास्थ्य को समझना, सूजन से संबंधित मामले, संतुलन, बातचीत करने की स्थिति को समझना खासतौर पर जरूरी है। स्वास्थ्य सुधार प्रक्रिया के तहत मरीज को सांस नियंत्रित करने की तकनीक भी बताई जाती है जैसे एब्डोमिनल ब्रीदिंग, पर्स्ड लिप ब्रीदिंग। ऊर्जा बचाने की तकनीक जैसे गतिविधियों की तेजी, फेफड़े की साफ-सफाई, हफिंग एंड कफिंग टेक्नीक, शारीरिक गतिविधियां करने की क्षमता बढ़ाने के प्रयास आदि। फेफड़ों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए बाद में फंक्शनल केपिसिटी को भी बढ़ाया जाता है। ताकत बढ़ाने के लिए फ्लेक्सिबिलिटी एक्सरसाइज और रसिस्टेड एक्सरसाइज की मदद ली जाती है। धीरे-धीरे इसे बढ़ाया जाता है। सप्ताह में 2 सेशन रखना पड़ते हैं। यहां महत्वपूर्ण है कि पैरामीटर्स को लगातार देखा जाए। सांस लेने में परेशानी, थकान बढ़ना, कफ, चक्कर आना जैसे लक्षणों का ध्यान रखना पड़ता है।
(इस लेख की लेखिका- डॉ. दीपा फार्तोडे, कार्डियो-रेस्पिरेटरी फिजियोथेरेपिस्ट हैं।)
(डिस्क्लेमर-लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। टाइम्स नेटवर्क इन विचारों से इत्तेफाक नहीं रखता। )