- जन्माष्टमी में अपने रिश्ते को बेहतर बनाएं
- भगवान कृष्ण के बताए रास्ते पर चलें
- दूसरों को स्वतंत्र रहने की अनुमति दें
श्रीमद भगवत गीता में भगवान कृष्ण ने केवल अर्जुन को ज्ञान नहीं दिया था, बल्कि समूचे संसार को वो बहुत कुछ सिखा गए। आज भी भगवान द्वारा सिखाया वो पाठ आपके लिए बहुत आवश्यक है। रिश्ते की डोर अचानक से कमजोर क्यों पड़ जाती है, आखिर क्यों आप अपनों को देखना तक पसंद नहीं करते।
जब सीमाएं टूटती हैं तो दूरियां बढ़ती हैं
किसी को आत्मसात करने जैसा शब्द ही अब केवल बचा है। इसकी आत्मीयता तो न जाने कब की मर चुकी है। कलयुग में बस बना-बनाया रिश्ता चल रहा है। अब रिश्ता इतना कमजोर हो गया है कि हल्की-सी चोट उसे तोड़कर रख देती है। भगवान कृष्ण ने कहा है कि किसी भी रिश्ते में खटास तब उत्पन्न होता है जब दोनों के बीच की सीमाएं टूटती हैं। दो रिश्तों में अक्सर एक सीमा तय की होती है। जैसे ही कोई एक उस सीमा को लांघता है, तो दूरियां अपने आप बढ़ जाती हैं।
दूसरों को निर्णय की अनुमति नहीं
रिश्ते कोई धर्म-कर्म नहीं है कि किसी एक को प्रचारक होना चाहिए और बाकी सबको उसका समर्थक या अनुयायी। रिश्ते में तो प्रेम का रस दोनों तरफ से बराबर प्रवाहित होता है, किंतु आज रिश्ते में ये नहीं रह गया। जब भी रिश्ते में कोई एक स्वयं को आवश्यकता से अधिक महत्व देता है और दूसरे पर अपना निर्णय थोपता है, तो बहुत दिनों तक उनका रिश्ता नहीं चलता। यही कारण है कि रिश्ता टूट जाता है।
स्वतंत्र रहने की अनुमति नहीं
भले ही देश को स्वतंत्र हुए सालों हो गए, किन्तु आज भी मनुष्यों के दिमाग से दूसरों पर राज करने की सोच हटी नहीं है। रिश्ते में बिखराव तभी आता है जब कोई एक दूसरे पर अपना प्रभुत्व जमाने के साथ-साथ उसे स्वतंत्र रहने की अनुमति नहीं देता। अपने अनुसार उसे रखने का प्रयत्न करता है। बस इसी कारण रिश्ते में दरार शुरू हो जाती है।
युग कोई भी हो रिश्ते की आत्मीयता उतनी ही आवश्यक है। आप अपने रिश्ते से आत्मीयता खत्म न होने दें। उसे संभालकर रखें।