- लखनऊ रेलवे स्टेशन पर मिसाल पेश कर रहे हैं कुली रहमान
- मुफ्त में प्रवासी श्रमिकों का सामान उठाकर कर रहे मदद
- बोले- 'अल्लाह ने हमें मदद करना सिखाया, हम उनसे पैसे कैसे लें जिनको खुद जरूरत है'
लखनऊ: देश में कोरोना वायरस लॉकडाउन से पैदा हुए प्रवासी संकट ने आम लोगों को नायकों और योद्धाओं में बदल दिया है, जो किसी भी परेशानी से दो दो हाथ करने के लिए तैयार हैं। ये ऐसे नायक हैं जिन्होंने देश भर में भोजन, रहने की जगह और अन्य जरूरतों के साथ निस्वार्थ भाव से फंसे हुए प्रवासी श्रमिकों की सहायता की है। कई लोगों ने लॉकडाउन के बीच उन्हें अपने मूल स्थान पर भेजने के लिए परिवहन की भी व्यवस्था की है।
इसी कड़ी में मिलिए चारबाग रेलवे स्टेशन में 80 साल के कुली मुजीबुल्लाह रहमान से। स्टेशन पर उनके सहकर्मी उन्हें 'सूफी संत' कहते हैं। अब रहमान का नाम कोरोना योद्धा के नाम से भी जाना पहचाना जाता है।
जब से सरकार ने श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का संचालन शुरू किया है, तब से रहमान रेलवे प्लेटफॉर्मो पर प्रवासी श्रमिकों की मदद कर रहे हैं। वह सभी की मदद करते हैं लेकिन उनसे कोई भी पैसा लेने से इनकार कर देते हैं।
मार्च में कोरोना वायरस लॉकडाउन लागू होने पर कई कुली चारबाग रेलवे स्टेशन से चले गए। लेकिन रहमान ने अपनी सेवा जारी रखी और प्रतिदिन वह स्टेशन पर ट्रेनों के आने का धैर्य पूर्वक इंतजार करते देखे जाते हैं। अपने सामान्य पोशाक के अलावा, वह अपने चेहरे पर एक मास्क पहनते हैं और प्रवासियों का सामान ले जाते हैं।
'उनसे पैसे कैसे मांगे जिनको खुद जरूरत है': रहमान ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, 'हम इनसे पैसे कैसे मांग सकते हैं जिनको खुद पैसों की जरूरत है। अल्लाह ने हमें मदद करना सिखाया है। हम वही कह रहे हैं, जो हम कर सकते हैं।'
रहमान स्टेशन तक पहुंचने के लिए हर दिन 6 किलोमीटर का सफर तय करते है और स्टेशन को अपना दूसरा घर मानते हैं। वह प्रवासी श्रमिकों को मदद की पेशकश करने में गर्व महसूस करते हैं और अपने काम के दौरान वह अन्य लोगों से भी मिलना पसंद करते हैं। उन्होंने कहा, 'मैं ट्रेनों के आने और स्टेशन पर समय पर पहुंचने के बारे में पूछताछ करता हूं। इस तरह, मैं लोगों से भी मिल पाता हूं।'