- बीजेपी आसानी से 9 सीटें जीत सकती थी लेकिन आठ उम्मीदवार ही उतारे
- एक सीट के लिए बीएसपी और एसपी में घमासान
- बीएसपी के अधिकृत उम्मीदवार से उसके पांच प्रस्तावकों ने प्रस्ताव वापस लिया था।
लखनऊ। कहते है कि सियासत में हमेशा तुरंत फायदे के इतर दूर तक का सोचा जाता है। दरअसल यह प्रसंग इसलिए सामने आ रहा है क्योंकि यूपी में राज्यसभा की 9 सीटों के लिए चुनाव हो रहा है। बीजेपी की बात करें तो संख्या बल के हिसाब से वो आठ सीट आसानी से जीत सकती है, इसके साथ सहयोगियों के समर्थन से वो 9वीं सीट भी जीत जाती। लेकिन बीजेपी ने अपने 8 उम्मीदवार ही खड़े किए जबकि राज्य ईकाई की तरफ से कुल 15 नाम भेजे गए थे। अब सवाल यह है कि आखिर बीजेपी ने एक सीट का बलिदान क्यों कर दिया। क्या इसके पीछे कोई सोची समझी रणनीति है।
बीएसपी को असहज हालात का सामना करना पड़ा
अगर आप बीएसपी की स्थिति को देखें तो जिस तरह से 10 प्रस्तावकों में से पांच ने ऐन मौके पर अपना प्रस्ताव वापस लिया उसके बाद बीएसपी के लिए असहज हालात पैदा हो गए। बताया गया कि जिन प्रस्तावकों ने नाम वापस लिए वो एसपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से मिले थे। इतने बड़े राजनीतिक घटनाक्रम के बाद मायावती मैदान में उतरीं। बीएसपी ने सात विधायकों को निलंबित कर दिया। इसके साथ ही समाजवादी पार्टी पर खरीदफरोख्त का आरोप लगाया।
मायावती ने विधानपरिषद में बीजेपी को समर्थन का किया ऐलान
मायावती ने साफ कहा कि आने वाले समय में विधानपरिषद चुनाव में उनकी पार्टी बीजेपी का समर्थन करेगी।इसके बाद सियासत और गरमा गई। समाजवादा पार्टी ने कहा कि वो तो पहले से ही कहा करते हैं कि बीएसपी सिर्फ दिखावे के लिए बीजेपी का विरोध करती है, जिस तरह से विधानपरिषद चुनाव में समर्थन की बात कही गई है उससे साफ है किसका किसके साथ गठजोड़ है।
जानकारों की राय
जानकार बताते हैं कि उपचुनाव से पहले और उसके बाद भी बीजेपी, यूपी की जनता को दिखाना चाहती थी कि एसपी और बीएसपी दोनों सिर्फ अवसरवाद की राजनीति करते हैं। एक सीट पर उम्मीदवार ना उतारने के फैसले से जिस तरह की तस्वीर उभरी जिससे साफ है कि आने वाले समय में दोनों दलों के बीच किसी तरह के संभावित गठबंधन पर विराम लगाता है। अगर ऐसा होता है कि तो 2022 विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सामने मुश्किल कम आएगी।