- बिहार में साल के अंत में होने हैं विधानसभा चुनाव, भाजपा-जदयू हैं एक साथ
- राष्ट्रीय जनता दल चुनाव में प्रवासी मजदूरों को मुद्दा बनाने की कोशिश में है
- अगले सप्ताह पार्टी कार्यकर्ताओं को वर्चुअल रैली के जरिए संबोधित करेंगे शाह
पटना : कोविड-19 के असर से चुनाव भी अछूते नहीं रहेंगे। इस महामारी के प्रभाव के बीच चुनाव-प्रचार करने के लिए राजनीतिक दलों ने अभी से तरीका निकालना शुरू कर दिया है। बिहार में विधानसभा चुनाव इस साल के अंत में होने हैं। इसे देखते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपनी तैयारी अभी से शुरू कर दी है। समाचार एजेंसी एएनआई ने पार्टी पदाधिकारियों के हवाले से कहा है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह गत नौ जून को करीब एक लाख पार्टी कार्यकर्ताओं को 'वर्चुअल रैली' के जरिए संबोधित कर सकते हैं। बता दें कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) इसी दिन 'गरीब अधिकार दिवस' का भी आयोजन कर रहा है।
'गरीब अधिकार दिवस' का आयोजन कर रहा राजद
राजद विधानसभा चुनाव में प्रवासी मजदूरों को मुद्दा बनाने की कोशिश में है। इसलिए उसने जिला और ब्लॉक स्तर पर 'गरीब अधिकार दिवस' का आयोजन करने का फैसला किया है। इस दिन पार्टी के नेता अपने घरों पर थाली बजाकर प्रवासी मजदूरों के साथ एकजुटता जाहिर करेंगे। बिहार में भाजपा और जनता दल-यूनाइटेड की गठबंधन सरकार है। भाजपा का कहना है कि वह बिहार का चुनाव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में लड़ेगी।
जेपी नड्डा कर चुके हैं बैठक
पिछले महीने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए प्रदेश में पार्टी की कोर कमेटी के साथ बैठक की। बताया जाता है कि चुनाव के परिप्रेक्ष्य में कोविड-19, प्रवासी मजदूरों सहित अन्य मुद्दों पर चर्चा की गई। इस बैठक में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल, डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी, गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय और बिहार के प्रभारी भूपेंद्र यादव मौजूद रहे।
भारत में रैलियों में जुटती है लाखों की भीड़
महामारी के विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड-19 लंबे समय तक हमारे बीच रह सकता है। ऐसे में इससे दूर रहने के लिए सबसे कारगर तरीका सोशल डिस्टेंसिंग है। लेकिन भारत में चुनाव प्रचार का जो पारंपरिक तरीका है उसमें लाखों की संख्या में भीड़ जुटती है। यहां नेता जनता के साथ सीधा संवाद करते आए हैं। इसे देखते हुए कोरोना काल में चुनाव में भाग लेना राजनीतिक दलों एवं मतदाताओं के लिए दोनों के लिए एक चुनौती है। सोशल मीडिया एवं वर्चुअल रैली के जरिए राजनीतिक दल लोगों तक पहुंच सकती हैं लेकिन अभी यह तरीका भारत में कभी बड़े पैमाने पर आजमाया नहीं गया है।