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Bihar Chunav: अब कहां हैं लालू यादव के साले साधु यादव, कभी दबंगई और रुआब से कांपते थे अफसर

श्वेता सिंह | सीनियर असिस्टेंट प्रोड्यूसर
Updated Oct 05, 2020 | 09:56 IST

Bihar Assemby Elections: राजद से मतभेद होने के बाद साधु यादव ने कांग्रेस के हाथ का सहारा लेते हुए बसपा के हाथी की सवारी भी की, लेकिन कोई नहीं आया काम। अब अलग-थलग पड़ गए हैं।

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तस्वीर साभार:&nbspTOI Archives
अब कहां हैं लालू यादव के साले साधु यादव, कभी दबंगई और रुआब से कांपते थे अफसर।
मुख्य बातें
  • 2009 में साधु यादव का उनकी बहन और बहनोई के साथ रिश्ता पूरी तरह से टूट गया
  • राजद छोड़, कभी कांग्रेस तो कभी बसपा के हाथी की सवारी की, हर बार हार ही गले लगी
  • बिहार विधानसभा चुनाव में 40 सीटों से अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी में हैं साधु यादव

‘सईयां भये कोतवाल तो अब डर काहे का’ जब दीदी और जीजा जी ही राज्य के मुख्यमंत्री हों, तो फिर किसका डर। अपनी दीदी राबड़ी देवी और जीजा लालू प्रसाद यादव का साया पाकर साधू यादव ने बिहार में खूब डंका बजाया। एक वक्त ऐसा था, जब अनिरुद्ध प्रसाद यादव को भूलकर लोग साधु यादव के नाम से साले साहब को जानने लगे। समय का चक्र थोड़ा पीछे ले जाएं तो साधु यादव की बिहार में तूती बोलती थी। अफसर हो या नेता सब इनके नीचे। ऐसा रुआब था साले साहब का कि पूरा बिहार कांपता था। आखिर अब कहां हैं साधु यादव और कैसा है इनका रुआब, चलिए देखते हैं।  

2009 में दीदी-जीजा से बिगड़ा रिश्ता  
साल 2009 में साधु यादव का उनकी बहन और बहनोई के साथ रिश्ता पूरी तरह से खटास में बदल गया। गोपालगंज की सीट को लेकर साले और बहनोई में ऐसी ठनी कि दोनों की राहें अलग हो गईं। उस वक्त वो सीट लोक जनशक्ति की पार्टी को लालू प्रसाद यादव ने दे दी। इसी से नाराज होकर साले साहब बहनोई से ऐसे नाराज हुए कि दोनों की राहें अलग हो गईं। एक-दूसरे से ऐसे जुदा हुए कि आजतक दोनों जुड़ नहीं पाए।  

जब भांजे ने कंस मामा बना दिया  
जिस भांजे को गोद में खिलाया, उसी भांजे ने अपने साधु मामा को कंस मामा तक कह डाला। लालू के बेटे तेज प्रताप यादव ने अपनी प्यारे मामा को कंस मामा कहकर बुलाया। कभी बिहार में मामा-भांजे के रिश्ते की दाद दी जाती थी, लेकिन समय ने ऐसा चक्र चलाया कि जब साधु यादव ने अपनी बेटी की शादी की तो भी लालू परिवार से कोई भी शख्स शादी में शरीक नहीं हुआ। वैसे कहना गलत नहीं होगा कि जबसे लालू ने साधु को ठुकराया है तब से साधु यादव राजनीति में मारे-मारे फिर रहे हैं। लगातार अपनी जमीन तलाशने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन अभी तक सफल नहीं हो पाए हैं।  

राजद छोड़ पंजे का सहारा ले हाथी की सवारी तक का सफर
कभी दीदी-जीजाजी के बल पर बिहार में दबंगई दिखाने वाले साधु यादव एक वक्त ऐसा आया जब अपनी बहन के खिलाफ ही चुनावी अखाड़े में उतर गए। राजद से मतभेद होने के बाद कांग्रेस के हाथ का सहारा लेते हुए बसपा के हाथी की सवारी भी की, लेकिन कोई काम नहीं आया। अपनों से नाराजगी का ऐसा हश्र हुआ कि साधु यादव राजनीति में आजतक संभल नहीं पाए।

अब खुद की पार्टी बना चुनाव लड़ने को तैयार  
दर-दर भटकने के बाद न तो दबंगई रह गई और न ही नेतागिरी। बिहार की जनता से साधु यादव नाम की चिड़िया का डर भी खत्म हो गया, इतना ही नहीं बिहार की जनता ने साधु यादव को किसी भी पार्टी से चुनाव लड़ने पर स्वीकार नहीं किया। शायद बिहार की जनता साधु यादव से बीते दिनों का बदला ले रही है और उन्हें दर-दर भटकने को मजबूर कर रही है। बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के भाई साधु यादव ने 2020 बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला करते हुए बैकुंठपुर से किस्मत आजमाने की घोषणा की है। राजद छोड़ने के बाद साधु यादव ने गरीब जनता दल सेक्युलर पार्टी बनाई और इस बार 40 विधानसभा सीटों से उम्मीदवारों को उतारने की तैयारी में हैं।  

राजद, निर्दलीय, कांग्रेस और बसपा का साथ पकड़ने और छोड़ने के बाद अब साधु यादव बकायदा अपनी पार्टी बनाकर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं, लेकिन उनके राजनीतिक इतिहास को देखकर भविष्य उज्जवल नहीं दिख रहा, फिर भी कुछ कह नहीं सकते, क्योंकि ये राजनीती है, कभी भी किसी का भी पलड़ा भारी हो सकता है।  

डिस्क्लेमर: टाइम्स नाउ डिजिटल अतिथि लेखक है और ये इनके निजी विचार हैं। टाइम्स नेटवर्क इन विचारों से इत्तेफाक नहीं रखता है।

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