- बिहार में तीन चरणों में होंगे चुनाव, 10 नवंबर को आएंगे नतीजे
- राज्य में इस बार मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच
- इस बार लालू प्रसाद की गैर मौजूदगी में लड़ा जा रहा चुनाव
पटना : बिहार विधानसभा चुनाव के लिए चुनावी बिगुल बज गया है। राज्य में मुख्य मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच है। इस चुनाव की सबसे बड़ी बात है कि पहली बार राज्य में चुनाव लालू प्रसाद यादव की गैर मौजूदगी में लड़ा जा रहा है। ऐसे में राजद की सियासी विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी तेजस्वी यादव के कंधों पर है। वहीं, एनडीए के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जैसे कद्दावर नेता एवं प्रभावी चेहरा हैं। जाहिर है कि महागठबंधन पर एनडीए बढ़त लेता दिख रहा है। फिर भी दोनों गठबंधनों की अपनी ताकत और कमजोरियां हैं। महागठबंधन और एनडीए दोनों एक दूसरे की कमजोरियों को फायदा उठाने की कोशिश करेंगे।
बिहार की राजनीति जाति के दबाव से ऊपर नहीं उठ पाती है। यहां का चुनाव मोटे तौर पर जातियों के ईद-गिर्द सिमटकर रह जाता है। इसलिए सभी दल जातियों को अपने पक्ष में गोलबंद करने की कोशिश करते हैं। एनडीए की अगर बात करें तो उसके साथ अगड़ी, पिछड़ी और दलित बिरादरी में पकड़ कही जा जा रही है। जबकि महागठबंधन यादव, मुस्लिम समीकरण के साथ अगड़ी और दलित समुदाय को आकर्षित करने में जुटा है। उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा यदि महागठबंधन के साथ बनी रहती है तो दलित समुदाय तक उसकी पहुंच बनी रहेगी। एनडीए के पास पासवान और जीतन राम माझी के रूप में बड़े दलित चेहरा हैं। आइए एक नजर डालते हैं एनडीए एवं महागठबंधन की ताकत एवं कमजोरियों के बारे में-
एनडीए की मजबूती
- एनडीए के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जैसा कद्दावर नेता और चेहरा है।
- वहीं, महागठबंधन के पास इन दोनों नेताओं के कद का कोई नेता नहीं है।
- एनडीए के प्रमुख दलों भाजपा और जद-यू के बीच बेहतर तालमेल है।
- एनडीए में नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने में आम सहमति।
- मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में नीतीश कुमार एनडीए में मान्य।
- एनडीए की राज्य की अगड़ी, पिछड़ी और दलित बिरादरी में अच्छी पकड़।
कमजोरी
- कोरोना, बेरोजगारी और कानून व्यवस्था पर विपक्ष के निशाने पर।
- 15 सालों का सत्ता विरोधी लहर से हो सकता है नुकसान।
- प्रवासियों की बड़ी संख्या में राज्य में वापसी।
- इस बार नीतीश कुमार के चेहरा विकल्प नहीं मजबूरी है।
महागठबंधन की मजबूती
- सत्ता विरोधी लहर का लाभ महागठबंधन को मिल सकता है।
- नए चेहर के रूप में तेजस्वी युवाओं को आकर्षित कर सकते हैं।
- यादव-मुस्लिम समीकरण के साथ अगड़ी और दलित जातियां आईं तो मिल सकता है लाभ।
- लालू यादव के जेल में रहने से राजद को सहानुभूति मिल सकता है।
- उपेंद्र कुशवाहा महागठबंधन को मजबूती दे सकते हैं।
कमजोरी
- इस बार का चुनाव राजद लालू यादव की अनुपस्थिति में लड़ेगा।
- महागठबंधन के दलों में एकजुटता एवं नीति का अभाव।
- कद्दावर नेता रघुवंश प्रसाद सिंह के निधन से अगड़ों में पकड़ ढीली पड़ी।
- लालू परिवार में भी उभरते रहे हैं मतभेद। नेताओं में तालमेल का अभाव।
बिहार में विधानसभा की 243 सीटों के लिए तीन चरणों 28 अक्टूबर, 3 और सात नवंबर को चुनाव होंगे। कोरोना संकट को देखते हुए चुनाव आयोग ने इस बार विशेष सुरक्षा उपाय किए हैं। इस बार मतदान केंद्रों पर 1000 से ज्यादा वोटरों के आने की अनुमति नहीं होगी। मतदान का समय सुबह सात बजे से शाम छह बजे तक रखा गया है। चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को वर्चुअल रैलियां करने की इजाजत दी है।