- बिहार की राजनीति में नीतीश पहले नेता नहीं हैं जो चुनाव लड़े बिना ही मुख्यमंत्री रहे हैं
- बिहार की राजनीति में पहली बार ऐसा करने वाली राबड़ी देवी थीं
- 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद से नीतीश कुमार चुनावी अखाड़े में नहीं उतरे
नई दिल्ली: जनसभा संबोधन, बड़ी-बड़ी रैलियां और मंच पर चढ़कर हुंकार भरने मात्र से कोई नेता नहीं हो जाता। जनता के असली नेता के बारे में तो चुनावी अखाड़े में पता चलता है। छात्र संघ का अध्यक्ष बनने से लेकर यूनियन का लीडर बनने तक चुनाव का सामना करना पड़ता है। मुखिया होने के लिए जनता के बीच उतरना पड़ता है। अगर ये माद्दा नहीं है तो फिर जनता के बीच में नहीं बल्कि राज्यसभा का सदस्य होना उचित है। जनता का प्रतिनिधित्व करना है तो चुनावी अखाड़े में समय-समय पर अपनी ताकत का प्रदर्शन करना ही होगा, लेकिन बिहार की किस्मत में कहां। लगता है यहां संघर्ष कोई और करता है और मलाई कोई और खाता है। ये हम नहीं बल्कि बिहार का राजनीतिक इतिहास कहता है। पिछले कुछ सालों से बार-बार यही सवाल उठता है कि आखिर नीतीश कुमार चुनाव लड़ते क्यों नहीं हैं।
राबड़ी देवी भी कर चुकी हैं ये कारनामा
बिहार का राजनीतिक इतिहास चीख-चीखकर गवाही देता है कि यहां के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के लिए चुनाव लड़ने की कोई आवश्यकता नहीं। पिछले 16 साल से नीतीश बाबू चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन आपको जानकर हैरानी नहीं होनी चाहिए कि नीतीश कुमार पहले मुख्यमंत्री नहीं हैं, जो चुनाव लड़े बिना ही मुख्यमंत्री बनते रहते हैं। नीतीश के पहले भी बिहार में ऐसा हो चुका है। 1997 में जब बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में जेल जाने लगे तो अपनी पत्नी को अपने घर के किचन से निकाल वो बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा गए। उस समय राबड़ी देवी केवल लालू प्रसाद यादव की पत्नी थीं। न तो वो चुनाव लड़ी थीं और न ही हो किसी सदन की सदस्य थीं। बाद में राबड़ी विधान परिषद की सदस्य बनीं।
नीतीश के चुनाव न लड़ने के पीछे की ये है असली वजह
साल 2004 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने अपने गृह जिला नालंदा और बाढ़ से चुनाव लड़ा, लेकिन बाढ़ की उस सीट से उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। इसका उन्हें बहुत बड़ा सदमा लगा, क्योंकि इससे पहले वो वहीं से जीतते आ रहे थे। बाढ़ की जनता ने अपने इस नेता को राजद नेता विजय कृष्ण के सामने स्वीकार नहीं किया। बाढ़ की जनता से ठुकराए जाने के बाद जैसे नीतीश खुद को पहचान ही नहीं पा रहे थे। अपने सांसदी से इस्तीफा देकर वो विधान परिषद का सदस्य बने और बिहार की जनता के सेवक भी।
अब तो सुलगने लगी है चुनाव न लड़ने की आग
6 बार से बिहार के मुख्यमंत्री बन रहे नीतीश कुमार के लिए आगे का रास्ता अब इतना आसान नहीं रहने वाला है। पार्टी के भीतर से लेकर सहयोगी दलों में अब ये बात तूल पकड़ने लगी है कि आखिर क्यों नीतीश कुमार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं और मुख्यमंत्री बनते रहते हैं। इतना ही नहीं कई राजनीतिक विश्लेषक भी अब इसपर चर्चा करने लगे हैं।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक बार फिर से चुनाव लड़कर जनता के प्यार को भांपना चाहिए। चुनावी अखाड़े में अपनी ताकत दिखाकर उन्हें ये साबित करना चाहिए कि वो जब चाहें अपने प्रतिद्वंदी को चित्त कर जीत का ताज अपने सिर सजा सकते हैं।