- केंद्र सरकार ने किसानों के लिए तीन अध्यादेशों को लोकसभा से कराया पारित, लेकिन किसानों में नाराजगी
- बिहार में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्र सरकार का बड़ा कदम
- विपक्षी दल किसानों से जुड़े पारित बिल का विरोध कर रहे हैं।
पटना। राजनीति का मिजाज भी मौसम की तरह बदलता रहता है। कोई एक फैसला किसी भी राजनीतिक दल को अर्श या फर्श पर पहुंचा देता है। मतदाताओं का मूड भी स्विंग करता रहता है। दरअसल यह सब बताने के पीछे मकसद केंद्र सरकार द्वारा किसानों के संबंध में अध्यादेश से है। केंद्र सरकार लगातार कह रही है कि लोकसभा ने किसानों के संबंध में तीन अध्यादेश को पारित कर दिया। खास बात यह है कि पंजाब के किसान इसका पहले से विरोध कर रहे थे। इस विषय पर एनडीए की सहयोगी अकाली दल की हरसिमरत कौर ने मोदी मंत्रिमंडल से इस्तीफा भी दे दिया है। लेकिन पीएम मोदी ने बिहार को सौगात देते हुए दो बड़ी बातें कहीं।
किसानों का हित या अहित, कई सवाल, एक जवाब
पीएम मोदी ने कहा कि पहली बात तो यह है कि सरकार एमएसपी नहीं खत्म करने जा रही है, पहले की तरह सरकारी खरीद होती रहेगी। इसके साथ ही विपक्ष पर तंज कसा कि कैसे नेता अपने वादे को भूल जाते हैं, आज जब हम एक नए युग में प्रवेश कर रहे हैं तो भ्रम की राजनीति के जरिए किसानों के साथ विपक्षी दल धोखा कर रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या बीजेपी के लिए बिहार विधानसभा चुनाव से पहले यह फैसला ठीक कहा जाएगा। दरअसल 2015 को संग प्रमुख मोहन भागवत का वो बयान आज भी गूंजता है जब उन्होंने आरक्षण के संबंध में सिर्फ एक बयान दिया था और उस बयान की काट बीजेपी नहीं खोज पाई थी जिसका असर उस समय विधानसभा चुनाव के नतीजों में दिखाई भी दिया था।
कहीं 2015 फिर नजर ना आए
2015 में बीजेपी का रिश्ता जेडीयू से खराब हो चुका था। बिहार में एक नए समीकरण ने जन्म दिया जिसके किरदार यानि लालू और नीतीश कुमार में पहले राजनीतिक नाता था यह बात अलग थी विचारों के आधार पर वो एक दूसरे से अलग अलग रास्ते पर चल रहे थे। लेकिन राजनीतिक मजबूरियों ने एक दूसरे को करीब ला दिया। यह वो समय था जो बीजेपी के लिए किसी तरह से सही नहीं था। उसमें जब मोहन भागवत ने कहा आरक्षण पर पुनर्विचार की जरूरत है तो विपक्षी दलों ने जनमानस के नजरिए को बदल दिया और बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ गया।
किसानों का मुद्दा बीजेपी पर न पड़ जाए भारी
आज 2020 में मुद्दा अलग है और वो किसान अध्यादेश का है, सवाल यह है कि क्या इसका नकारात्मक असर बीजेपी के चुनावी अभियान पर तो नहीं पड़ेगा। जानकार कहते हैं कि चुनावी अभियान एक तरह से लोगों को मानसिक सोच से भी प्रभावित होता है। अगर विरोधी दल इस मुद्दे को भुनाने में आगे निकले तो बीजेपी के लिए मुश्किल आ सकती है, हालांकि बिहार के चुनाव में एकलौत इसके मुद्दा बनने की संभावना कम है।