- भारतीय फुटबॉल टीम के पूर्व कप्तान कार्लटन चैपमैन का बेंगलुरु में निधन
- मिडफील्डर चैपमैन 1995 से 2001 तक भारत की तरफ से खेले थे
- चैपमैन ने पंजाब स्थित क्लब की तरफ से 14 ट्राफियां जीती थी
नयी दिल्ली: भारतीय फुटबॉल टीम के पूर्व कप्तान कार्लटन चैपमैन का सोमवार को बेंगलुरू में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वह 49 वर्ष के थे। चैपमैन को रविवार की रात को बेंगलुरू में अस्पताल में भर्ती कराया गया था और सोमवार तड़के उन्होंने अंतिम सांस ली। एक समय चैपमैन के साथी रहे ब्रूनो कुटिन्हो ने गोवा से पीटीआई भाषा से कहा, 'मुझे बेंगलुरू से उनके एक दोस्त में फोन पर बताया कि चैपमैन अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका आज तड़के निधन हो गया। वह हमेशा खुश रहने वाला इंसान था और दूसरों की मदद के लिये तैयार रहता था।'
मिडफील्डर चैपमैन 1995 से 2001 तक भारत की तरफ से खेले थे। उनकी कप्तानी में भारतीय टीम ने 1997 में सैफ कप जीता था। क्लब स्तर पर उन्होंने ईस्ट बंगाल और जेसीटी मिल्स जैसी टीमों का प्रतिनिधित्व किया। टाटा फुटबॉल अकादमी से निकले चैपमैन 1993 में ईस्ट बंगाल से जुड़े थे और उन्होंने उस साल एशियाई कप विनर्स कप के पहले दौर के मैच में इराकी क्लब अल जावरा के खिलाफ टीम की 6-2 से जीत में हैट्रिक बनायी थी। लेकिन उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन जेसीटी के साथ किया, जिससे वह 1995 में जुड़े थे।
चैपमैन ने पंजाब स्थित क्लब की तरफ से 14 ट्राफियां जीती थी। इनमें 1996-97 में पहली राष्ट्रीय फुटबॉल लीग (एनएफएल) भी शामिल है। उन्होंने आईएम विजयन और बाईचुंग भूटिया के साथ मजबूत संयोजन तैयार किया था। विजयन ने अखिल भारतीय फुटबाल महासंघ (एआईएफएफ) की वेबसाइट से कहा, 'वह मेरे लिये छोटे भाई जैसा था। हम एक परिवार की तरह थे। यह मेरे लिये बहुत बड़ी क्षति है। मैदान के अंदर और बाहर उसका व्यवहार बहुत अच्छा था। मैदान पर फुटबॉलर कई बार आपा खो देते हैं, लेकिन मुझे याद नहीं कि कभी उसे गुस्सा आया होगा।'
चैपमैन बाद में एफसी कोच्चि से जुड़े, लेकिन एक सत्र बाद ही 1998 में ईस्ट बंगाल से जुड़ गये थे। ईस्ट बंगाल ने उनकी अगुवाई में 2001 में एनएफएल जीता था। उन्होंने 2001 में पेशेवर फुटबॉल से संन्यास ले लिया था। इसके बाद वह विभिन्न क्लबों के कोच भी रहे। पूर्व भारतीय स्ट्राइकर और टाटा फुटबॉल अकादमी में चैपमैन के साथ रहे दीपेंदु बिस्वास ने कहा, 'कार्लटन दा बहुत भले इंसान थे। वह हमसे एक या दो साल सीनियर थे, लेकिन उन्होंने हमेशा हमारे लिये मार्गदर्शक का काम किया। मुझे याद है जब हम अकादमी में थे तो वह हमें रात्रि भोजन के लिये ले जाते थे।'