10 अगस्त: आईआईटी मंडी के शोधकतार्ओं ने दूषित जल प्रबंधन की सटीक विधियों के चयन में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग किया। यह विधि विभिन्न स्थानों और पर्यावरण के अनुकूल सामाजिक-आर्थिक जरूरतों को पूरा करेंगी।
आईआईटी की इस महत्वपूर्ण रिसर्च के निष्कर्ष जर्नल ऑफ क्लीनर प्रोडक्शन में प्रकाशित किए गए हैं।
यह, शोधकर्ता ब्रिटिश अर्थशास्त्री ई.एफ. शूमाकर की अवधारण 'उपयुक्त प्रौद्योगिकी से प्रेरित हैं। इसका मानना है कि किसी विकल्प का चयन समाज के सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संस्थानों के अनुरूप होना चाहिए। दूषित जल प्रबंधन के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकी के चुनाव में शोधकर्ताओं ने जो टूल्स इस्तेमाल किए उनमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और ऑपरेशंस रिसर्च (ओआर) की अवधारणाओं का तालमेल है।
सबसे पहले शोधकर्ताओं ने उपलब्धता और प्राथमिक अध्ययनों के आधार पर उपलब्ध प्रौद्योगिकियों को चुना। ये पारंपरिक और नवीन दोनों औद्योगिक प्रौद्योगिकियां हैं जैसे एक्टिवेटेड स्लज प्रॉसेस (एएसपी), मेम्ब्रेन बायोरिएक्टर (एमबीआर), मूविंग बेड बायोफिल्म रिएक्टर (एमबीबीआर), फ्लूइडाइज्ड एरोबिक बेड (एफएबी) रिएक्टर, सीक्वेंशियल बैच रिएक्टर (एसबीआर) और बायोपाइप आदि।
इसके बाद शोधकतार्ओं ने सतत्त आवर्तनशीलता के मानकों और उनके संकेतकों की पहचान की। पर्यावरण की स्थिरता, आर्थिक सुलभता, सामाजिक स्वीकार्यता और कार्यात्मक पहलुओं आदि क्षेत्रों से सत्रह मानक चुने गए। तदुपरांत क्षेत्र के विशेषज्ञों ने मानकों का महत्व निर्धारित किया। इसके बाद एक डिसीजन मैट्रिक्स बनाया गया और फिर एफ-एसडब्ल्यूएआरए, एएमओओआरए और एफ-टीओपीएसआईएस जैसे फजी-लॉजिक एमसीडीएम एल्गोरिदम का प्रयोग किया गया ताकि सस्टेनेबलिटी के मानक पर विभिन्न तकनीकों की रैंकिंग प्राप्त हो। इन विधियों के आधार पर लिए गए निर्णयों का विश्लेषण कर उनका वैलिडेशन किया गया।
शोध के बारे में आईआईटी मंडी के डॉ. अतुल धर ने बताया , आवर्तनशीलता के विशेष मानकों के एक समूह और उन मानकों के महत्व को देखते हुए बायोपाइप, एमबीआर और एसबीआर को मूरा और टोप्सिस ने सबसे सस्टेनेबल विकल्प का दर्जा दिया, जिसका वैलिडेशन डेटा विश्लेषण के आधार पर किया गया। हमारे शोध से सामने आया है कि स्वरा-मूरा पद्धति विश्वसनीय और सरल है और इसके फजीफिकेशन से परिणामों की स्थिरता में और सुधार आता है।
यह अध्ययन दूषित जल उपचार की सबसे पर्यावरण अनुकूल प्रौद्योगिकी चुनने के लिए किया गया था। इसका उपयोग किसी भी बहु-मानक चयन समस्या के लिए किया जा सकता है जो बहुत छोटे निर्णय जैसे कि उपभोक्ता उत्पाद के बारे में निर्णय लेने से लेकर निवेश और सामाजिक-सांस्कृतिक नीतियों जैसे बड़े निर्णयों में उपयोग हो सकता है। विभिन्न प्रौद्योगिकियों के तालमेल नीति के ²ष्टिकोण से भी उपयोगी है क्योंकि इसमें प्रौद्योगिकी और कार्मिक को ध्यान में रख कर निर्णय लेते समय भावनात्मक पक्ष पर भी विचार किया जाता है।
यह शोध पत्र आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के डॉ. अतुल धर और डॉ सत्वशील पोवार ने युवा वैज्ञानिक शुभम दत्त अत्री और श्वेता सिंह के साथ लिखा है।
शोध के बारे में डॉ. सत्वशील पोवार ने बताया पहले किसी समाज के दूषित जल उपचार की विधियों का चुनाव मनुष्य की सूझबूझ पर आधारित था। आज यह ²ष्टिकोण मान्य नहीं है क्योंकि यह काम बहुत व्यापक स्तर पर होता है, इसकी विभिन्न प्रौद्योगिकयां उपलब्ध हैं और आज सामाजिक-आर्थिक ताना-बाना अधिक जटिल है और फिर कई परस्पर विरोधी मानक हैं जिन पर विचार करना जरूरी है।
इस सिलसिले में डॉ. सत्वशील पोवार ने कहा, हम ने मल्टी-क्राइटेरिया डिसिजन-मेकिंग (एमसीडीएम) का उपयोग किया है, जिसमें कम्पैक्ट सॉल्यूशंस के अंदर वैकल्पिक निर्णयों के साथ मात्रात्मक और गुणात्मक परिणामों को जोड़ा जाता है। निर्णय प्रक्रिया की अनिश्चितताओं और अनिश्चितताओं को संभालने के लिए टीम ने फजी लॉजिक के एआई फीचर युक्त एमएसडीएम विधियों का उपयोग किया है।