- आतंकी प्रोपेगैंडा फैलाने के लिए वर्चुअल मैसेज, प्रजेंटेशन, ऑडियो-वीडियो फाइल का इस्तेमाल करते हैं।
- रॉकेट चैट (rocket chat app)और हूप (Hoop App)जैसे मोबाइल ऐप को आसानी से ट्रेस नहीं किया जा सकता है।
- एक्सपर्ट के अनुसार इस समय मोबाइल ऐप को लेकर एक राष्ट्रीय नीति की जरूरत है।
नई दिल्ली: अफगानिस्तान पर अब तालिबान का कब्जा हो चुका है। जीत के बाद आतंकी संगठन अलकायदा से उसे बधाई भी मिल चुकी है। तालिबान भले ही यह बार-बार दावा कर रहा है कि वह 1996 वाला तालिबान नहीं है। लेकिन उसके पुरानी हरकतें इतनी भयावह हैं कि पूरी दुनिया को इस बात की आशंका है कि तालिबान अफगानिस्तान से आतंकवादी संगठनों को सपोर्ट कर सकता है। और यह डर भारत को भी सता रहा है। इसमें सबसे बड़ा खतरा इंटरनेट का है। क्योंकि इसके जरिए आतंकी बड़े आसानी से युवाओं को गुमराह कर सकते हैं, उनकी भर्तियां और ट्रेनिंग तक दे सकते हैं। इसके लिए वह ऐसे ऐप का इस्तेमाल करते हैं, जो सुरक्षा एजेंसियों की निगरानी में आसानी से नहीं आ पते हैं।
हाल ही में राष्ट्रीय जांच एजेंसी एनआईए ने केरल में आईएस मॉड्यूल का खुलासा किया है। जिसमें शामिल आतंकी अपने आकाओं से बात करने के लिए रॉकेट चैट (rocket chat app)और हूप (Hoop App)जैसे मोबाइल ऐप का इस्तेमाल कर रहे थे।। इन ऐप की खासियत होती है कि उन्हें आसानी से ट्रेस नहीं किया जा सकता है। जिसका फायदा आतंकवादी संगठन उठाते हैं।
कैसे उठाते हैं फायदा
यूनाइटेड नेशन ऑफिस ऑफ ड्रग्स एंड क्राइम की रिपोर्ट के अनुसार आतंकी इंटरनेट का इस्तेमाल सबसे ज्यादा प्रोपेगैंडा फैलाने के लिए करते हैं। इसके तहत वह वर्चुअलर मैसेज, प्रजेंटेशन, ऑडियो-वीडियो फाइल का इस्तेमाल करते हैं। और अपने लिए सहानुभूति जुटाने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा युवाओं को बरगलाकर भर्तियां करने में भी इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही रेडिकलाइजेशन के लिए भी इनका इस्तेमाल किया जाता है। इन गतिविधियों के अलावा आतंकवादियों द्वारा फंड जुटाने के लिए भी इंटरनेट का इस्तेमाल किया जाता है। यही नहीं ट्रेनिंग में भी इसका इस्तेमाल करते हैं।
क्यों मुफीद है रॉकेट ऐप
साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल टाइम्स नाउ नवभारत से कहते हैं "देखिए रॉकेट चैट एक मैसेंजर ऐप है। जो कि इनक्रिप्शन पर आधारित है। जिसका इस्तेमाल आंतकवादी कर रहे हैं। इसके कई फीचर्स ऐसे हैं, जो आतंकवादियों को मुफीद लगते हैं। इसके तहत यूजर को ट्रैक नहीं किया जा सकता है, जांच एजेंसियों को जानकारी साझा नहीं हो सकती है। इसके अलावा लोकेशन भी पता नहीं किया जा सकता है। यह भारत में स्थित नहीं हैं। इसलिए इसको भारतीय जांच एजेंसियों के लिए ट्रैक करना काफी मुश्किल हो जाता है। इसका इस्तेमाल रेडिकलाइजेशन के साथ सुराग को न छोड़ने के उद्देश्य के लिए होता है। हमें यह बात समझनी होगी कि यह चूहे-बिल्ली का खेल है। आज रॉकेट ऐप है कल कोई और ऐप आ जाएगा। जरूरत यह है कि जांच एजेंसियां बदलती तकनीकी के साथ अपने आपको मजबूत करें। ये ऐप भारत में ऑपरेट नहीं होते हैं, ऐसे में इनको भारत में प्रचलित दूसरे ऐप की तरह मैनेज नहीं किया जा कता है। "
ऐप का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों के लिए होने की बात रॉकेट.चैट (Rocket.chat)ने भी स्वीकारी है। उसने 26 मार्च 2021 को लिखे एक ब्लॉग में लिखा है कि हम चरमपंथियों द्वारा ऐप के इस्तेमाल की घोर निंदा करते हैं। हमारे नियम और दिशानिर्देश आतंकी गतिविधियों के लिए प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करने के लिए प्रतिबंधित करते हैं। यह ऐप एक ओपेन सोर्स प्लेटफॉर्म है। इसे कोई अभी बिना हमारे सहयोग के अपने सर्वर पर इंस्टाल कर सकता है। शुरूआत में इसे एक-दूसरे से जुड़ने के लिए डिजाइन किया गया था, जिसके लिए किसी सेंट्रलाइज्ड कम्युनिकेशन प्लेटफॉर्म की जरूरत नही पड़ती है। अब कंपनी ने एक इंटरनल टॉस्क फोर्स का गठन किया है। जो कि भविष्य के किसी खतरे के लिए अथॉरिटी को आगाह करेगी।
क्या करना चाहिए
इस तरह की गतिविधियों पर लगाम कसने के लिए क्या करना चाहिए इस पर दुग्गल कहते हैं "देखिए आईटी एक्ट के तहत धारा-75 मौजूद है। इसके तहत सेक्शन-1 है, जो दूसरे देशों में कानूनी कार्रवाई का अधिकार देता है। जिसके तहत भारतीय प्रावधान का दायरा हर उस पर होगा, जो कानून का उल्लंघन करता है, भले ही वह किसी भी देश में मौजूद हो। ऐसा उस स्थिति में हो सकता है कि जब इन ऐप का असर भारत में स्थित कंप्यूटर , मोबाइल फोन पर लगातार हो रहा है। लेकिन व्यवहारिक रुप से हम पिछले 21 साल में बाहर के देशों के संबंध में इसे प्रभावी रूप से इस्तेमाल नहीं कर पाए हैं। केवल कागजी कानून से कुछ नहीं होगा, उसे बेहतर तरीके से अमल में लाना जरूरी है। इस समय देश में मोबाइल ऐप को लेकर कोई राष्ट्रीय नीति नहीं है। सबसे पहले इसकी जरूरत है। जब तक आप इस तरह के ऐप्स को गैर कानूनी घोषित नहीं करेंगे, तब तक लगातार चुनौतियां बनी रहेंगी। "