- राष्ट्रमंडल खेल में विजय यादव ने कांस्य पदक अपने नाम किया
- वाराणसी में अब तक राष्ट्रमंडल खेलों में पदक जीतने वाले विजय यादव तीसरे खिलाड़ी हैं
- विजय यादव 2008 में कुश्ती खेला करते थे
Commonwealth Games 2022: वाराणसी के लाल विजय यादव ने हार के बाद भी रेपचेज राउंड के जरिए कॉमन वेल्थ गेम्स में जूडो के 60 किग्रा वर्ग में कांस्य पदक अपने नाम किया है। इसके साथ ही वाराणसी में अब तक राष्ट्रमंडल खेलों में पदक जीतने वाले विजय यादव तीसरे खिलाड़ी बन गए हैं। विजय यादव के बड़े भाई गुड्डू ने कहा कि मुझे विजय की मेहनत और भगवान पर भरोसा था कि मेरा भाई पदक अवश्य जीत कर आएगा।
बर्मिंघम में हो रहे राष्ट्रमंडल खेल में विजय यादव ने जैसे ही कांस्य पदक अपने नाम किया तो इसकी खबर वाराणसी तक पहुंच गई। पिता के मोबाइल की घंटी रात के 10 बजे बजने लग गई। जिससे पिता की नींद टूटी, विजय की जीत की खबर सुनने के बाद तो आंखें छलक रही थीं और सीना गर्व से चौड़ा हो गया। उनके मुंह से यही निकला मेरे लाल का कांस्य देश के माथे पर सोने से भी तेज चमक रहा है।
मां ने कहा, बेटे की तपस्या सफल हुई
वाराणसी के सुलेमापुर गांव में रहने वाले विजय का कांस्य जीतना किसी त्योहार से कम नहीं है । गांवभर में विजय की जीत की खबर जैसे ही फैली, गांव वाले भी गौरवान्वित महसूस करने लगे। वहीं पिता दशरथ यादव और माता चिंता देवी ने कहा कि मेरा बेटा तो लंबे समय से देश के लिए तपस्या कर रहा था। आज बेटे की तपस्या सफल हो गई और उसको सफलता मिल गई। यह तो अभी शुरुआत है, उसको अभी और आगे जाना है और अपने शहर, प्रदेश और देश नाम रोशन करना है। देश के लिए और ढेर सारे पदक जीतने हैं। मेरे तीन बेटों में विजय सबसे छोटा बेटा है। तीनों बच्चों को हमेशा खेलने के लिए मैंने प्रोत्साहित किया। बेटे के पदक जीतने पर बहुत खुशी मिली है।
पहले के दिनों को याद कर रो पड़ी विजय की माता
बर्मिंघम राष्ट्रमंडल खेलों का सफर विजय यादव के लिए बहुत आसान नहीं था। विजय के सामने आर्थिक स्थिति ने हर कदम पर चुनौतियां पेश कीं। प्रारंभिक दिनों में हालत यह हुआ करती थी कि कभी भूखे पेट तो कभी नमक रोटी खाकर विजय ने जूडो का अभ्यास किया है। विजय की मां चिंता देवी अपने बेटे के पहले के दिनों को याद करते हुए रो पड़ती है। वह कहती हैं कि एक मां का दिल ही जानता है कि मेरे लाल ने इस मुकाम पर पहुंचने के लिए कितनी मेहनत की है।
लक्ष्य पर रखी निगाहें, कभी हिम्मत नहीं हारा विजय
मां ने बताया कि विजय के पिता की आमदनी उतनी नहीं थी कि वह बेटे को अच्छी खुराक दे सकें। इसके बावजूद विजय ने कभी हिम्मत नहीं हारी और अपने लक्ष्य पर अपनी निगाहें टिकाए रखी। उसी का परिणाम है कि आज देश के लिए कांस्य पदक जीतकर सबका नाम रोशन किया है। विजय यादव 2008 में गांव में ही कुश्ती खेला करते थे। इसके बाद राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में उसने जूडो खिलाड़ियों को देखा तो उसका भी मन जूडो की तरफ मेहनत करने में लग गया ।