- श्रीजगन्नाथ मंदिर में 14 जून को गर्भगृह की छत पर भगवान जगन्नाथ सुभद्रा व बलभद्र मंचारूढ़ होंगे
- काशी में वर्ष 1802 में शुरुआत हुई थी इस खास मेले अनुष्ठान की
- भगवान श्रीजगन्नाथ की डोली यात्रा के लिए 30 जून को प्रातकाल पांच बजे खुलेगा पट
Varanasi Rath Yatra: वाराणसी के असि स्थित श्रीजगन्नाथ मंदिर में 14 जून को गर्भगृह की छत पर भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा व बलभद्र मंचारूढ़ होंगे। सुबह सूर्योदय पर मंगला आरती होगी। इसके बाद भगवान जगन्नाथ सुभद्रा व बलभद्र की स्नान यात्रा प्रारंभ होगी। दोपहर 12 बजे से रात 11 बजे तक जलाभिषेक का कार्यक्रम होगा।
इसके बाद से भगवान स्वास्थ लाभ के लिए वे अज्ञातवास में चले जाएंगे। वहीं मंदिर का कपाट 29 जून तक बंद रहेगा। भगवान श्रीजगन्नाथ की डोली यात्रा के लिए 30 जून को प्रात:काल पांच बजे पट खुलेगा। प्रातः काल 5.30 बजे मंगला आरती व भजन का कार्यक्रम होगा। प्रातः काल आठ बजे दूध का नैवेद्य तो प्रातःकाल 10 बजे महा प्रसाद नैवेद्य दिया जाएगा।
विशेष परंपराओं को समेटे हुए वर्षो पुरानी रथयात्रा
दोपहर 12 बजे से तीन बजे तक पट बंद रहेगा। वहीं पट खुलने पर कपूर आरती और गंगा जल आचमन का कार्यक्रम होगा। दोपहर 3.30 बजे से डोली श्रृंगार का कार्य सम्पन्न होगा। शाम 4 बजे भगवान के विग्रह को डोली में विराजमान करके यात्रा श्रीजगन्नाथ मंदिर से निकलेगी।
वहीं श्रीपंचमुखी हनुमान की पूजा व आरती के बाद यूनियन बैंक से निराला निवेश तक के लिए बिना विग्रह रथ का प्रस्थान करेंगे। उसके बाद मध्य रात्रि को तीन बजे ठाकुर जी को विग्रह रथ पर विराजमान करेंगे। इसके बाद से अगले दिन प्रातःकाल आरती के साथ दर्शन पूजन शुरू होगा। प्रातःकाल 9 बजे छौंका मूंग-चना, पेड़ा, गुड़ और चीनी के शर्बत का भोग लगेगा। उसके बाद से दोपहर 12 बजे भोग व आरती के बाद पट को बंद कर दिया जाएगा। परंपरागत भगवान श्रीजगन्नाथ का पूड़ी, कोहड़े की सादी सब्जी, दही, चीनी, कटहल और आम के अचार से भोग लगाया जाता है।
218 वर्ष पुराने रथयात्रा मेला
वैशाख शुक्ल तृतीया पर अक्षय तृतीया के विधि-विधान के तहत सिगरा के रथशाला में अष्टकोणीय रथ और वृक्ष की पूजा के साथ इसका शुभारंभ किया जा चुका है। ट्रस्ट श्रीजगन्नाथ जी अपने आप में कई परंपराओं को समेटे हुए। 218 वर्ष पुराने रथयात्रा मेले के संयोजन की तैयारी करने जुटा हुआ है। ट्रस्टी आलोक शापुरी ने कहा कि पुरी के बाद धर्म नगरी काशी में वर्ष 1802 में इस खास मेला अनुष्ठान की शुरुआत हुई थी। पिछले दो वर्ष से कोरोना के कारण सिर्फ रस्म अदायगी की जाती थी। इस वर्ष मेला पूर्व के वर्षों की भांति ही विशेष होगा।