- अफगानिस्तान में दो दशक बाद अब एक बार फिर तालिबान की सत्ता है
- अमेरिका 2001 में आया था, जिसका सैन्य दखल यहां दो दशकों तक रहा
- पूरे मामले के केंद्र में 9/11 का आतंकी हमला और ओसामा बिन लादेन रहा
काबुल/वाशिंगटन : अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के साथ ही यहां अमेरिका के सबसे लंबे समय तक चले युद्ध का समापन हो गया है और सत्ता अब पूरी तरह तालिबान के कब्जे में आ गई है। संकटग्रस्त देश में अमेरिकी सैनिकों की मौजूदगी करीब 20 वर्षों तक रही, जिस दौरान अमेरिका ने अपने लगभग 2,500 सैनिकों को खोया, जबकि एक लाख से अधिक अफगानों ने भी जान गंवाई। भीषण मारकाट के बाद अफगानिस्तान में अब तालिबान का राज है।
अफगानिस्तान में कैसे दाखिल हुआ था अमेरिका?
अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों का जमावड़ा 2001 में हुआ था, जब उसी साल 11 सितंबर को अलकायदा आतंकियों ने अमेरिका के न्यूयार्क और वाशिंगटन में आतंकी हमले किए थे। दुनियाभर में यह 9/11 आतंकी हमले के तौर पर जाना गया, जिसमें लगभग 3,000 लोगों की जान गई थी। अमेरिका ने इस हमले की साजिश के लिए अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन को जिम्मेदार ठहराया था, जिसने तब अफगानिस्तान में तालिबान के शासन में सुरक्षित पनाह ले रखी थी।
तालिबान 1996 में अफगानिस्तान की सत्ता में आया था, जिसके बाद इसने यहां कठोर इस्लामिक कानूनों को लागू करते हुए कई सख्त पाबंदियां लगाई थी। अमेरिका ने तब तालिबान से ओसामा को सौंपने के लिए कहा था, लेकिन तालिबान से इससे इनकार कर दिया, जिसके बाद अमेरिका ने अफगानिसतान पर सैन्य हमला करते हुए तालिबान को सत्ता से बेदखल कर दिया था और हामिद करजई की अगुवाई में अफगानिस्तान में नई सरकार का गठन किया गया।
तालिबान ने कैसे बढ़ाई अपनी ताकत?
अमेरिका की अगुवाई में नाटो सैन्य बलों की मौजूदगी के बीच तालिबान कुछ समय के लिए लगभग भूमिगत सा रहा, लेकिन यह अपनी क्षमता बढ़ाता रहा। अफगानिसतान में 2004 में नई सरकार के अस्तित्व में आने के बाद अमेरिकी व अफगान बलों पर तालिबान के हमले जारी रहे। हालांकि 2009 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबाामा की अगुवाई वाली सरकार ने यहां सैनिकों की संख्या में बढ़ोतरी की, जिसके बाद तालिबान को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा।
हालांकि 2014 में तालिबान ने एक बार फिर वापसी की, जब उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) ने यहां अपना मिशन समाप्त करते हुए सुरक्षा की जिम्मेदारी अफगान सेना पर सौंप दी। यही वह समय था जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर एक बार फिर पकड़ बनानी शुरू कर दी। इस बीच अमेरिका और तालिबान के बीच अफगानिस्तान में शांति बहाली को लेकर बातचीत भी शुरू हुई, जिसमें आश्चर्यजनक रूप से अफगान सरकार को शामिल नहीं किया गया।
अमेरिका और तालिबान के बीच दोहा समझौता
अमेरिका और तालिबान के बीच सैन्य वापसी को लेकर गहन वार्ता के बाद एक करार फरवरी 2020 में कतर की राजधानी दोहा में हुआ। तब अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप का शासन था और आज जब अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति आनन-फानन में अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी और वहां बीते 15 दिना में मची हिंसा व अफरातफरी को लेकर सवालों के घेरे में हैं तो उसी समझौते का हवाला देकर ट्रंप और उनकी रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं पर पलटवार करते हैं।
बहरहाल, तालिबान और अमेरिका के बीच फरवरी 2020 में हुए दोहा समझौते के बाद भी अफगानिस्तान में तालिबान के हमले रुके नहीं। हां इतना जरूर हुआ कि तालिबान के हमले का लक्ष्य अब अमेरिकी बल नहीं, बल्कि अफगान सुरक्षा बल और नागरिक हो गए। वे अब लक्ष्य कर हत्याओं को अंजाम देने लगे। धीरे-धीरे तालिबान के नियंत्रण वाले इलाकों की संख्या बढ़ती गई और 15 अगस्त को राजधानी काबुल पर हमले के साथ ही उसने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया।
अनसुलझे हैं कई सवाल
इस तरह 20 साल बद तालिबान एक बार फिर अफगानिस्तान की सत्ता में है। तालिबान ने हालांकि अफगान जनता और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भरोसा दिलाने की कोशिश की है, उसका शासन 1996-2001 के दौर से अलग होगा और अफगानिस्तान को आतंकियों की पनाहगाह नहीं बनने दिया जाएगा, लेकिन इसे लेकर सवाल बना हुआ है कि तालिबान राज में महिलाओं के अधिकारों, मानवाधिकारों की कितनी सुरक्षा होगी और राजनीतिक स्वतंत्रता की क्या स्थिति होगी?