शशांक तिवारी : अमेरिकी संसद की अध्यक्षा नैंसी पेलोसी के द्वारा ताइवान की यात्रा करना चीन को काफी ज्यादा अखर गया है। जबसे नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के विषय में अमेरिकी प्रेस में खबरें आना शुरू हुई थी तब से ही इस बात को लेकर के अटकलें लगाई जा रही थी कि यह यात्रा हो भी पाएगी या नहीं। चीन को इस यात्रा से कितनी गहरी आपत्ति थी इस बात का अंदाजा चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा अमेरिका को दी गई चेतावनी से पता चलता है। शी जिनपिंग ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि नैंसी कॉलोनी का ताइवान आना अमेरिका द्वारा 'आग से खेलने' जैसा होगा। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में सामान्यतः राष्ट्र अध्यक्षों के द्वारा इस तरह की खुली भाषा का प्रयोग नहीं होता है। लेकिन चीन के राष्ट्रपति ने ऐसी भाषा का प्रयोग करके चेतावनी और धमकी के बीच की महीन रेखा को पार कर दिया था। चीन की ओर से यह भी कहा गया था कि चीन अपनी प्रतिक्रिया सैन्य कार्यवाही के रूप में भी दे सकता है।
नैंसी पेलोसी वास्तव में ताइवान जाएंगी या नहीं जाएंगी इस प्रश्न को लेकर काफी समय तक असमंजस की स्थिति बनी हुई थी। परंतु 2 अगस्त को नैंसी पेलोसी ताइवान की राजधानी ताइपे शहर में पहुंची। लगभग 24 घंटे तक ताइवान में रहकर विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के बाद नैंसी पेलोसी वापस भी चली गईं।
यह तो स्पष्ट था कि चीन की ओर से प्रतिक्रिया आएगी, लेकिन उस प्रतिक्रिया का स्वरूप क्या होगा इस बात को लेकर के चिंता हो रही थी। चीन ने ताइवान के चारों तरफ अपने समुद्री युद्धपोत तैनात करके सैन्य अभ्यास करने का फैसला किया है। चीन ने इस सैन्य अभ्यास के विषय में जो जानकारी दी है उसके अनुसार यह एक बहुत ही बड़े पैमाने पर किया जाने वाला सैन्य अभ्यास होगा जिसमें अंतिम चरण में मिसाइलों का प्रयोग भी किया जाएगा। चीन की सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स के द्वारा चीन के इस युद्धाभ्यास को 'अभूतपूर्व' कहा गया है। चीन का यह युद्धाभ्यास 8 अगस्त को समाप्त होगा। अब प्रश्न यह उठाया जा रहा है कि क्या चीन इस सैन्य अभ्यास के बहाने से ताइवान पर वास्तविक हमला करने की योजना बना रहा है? ध्यातव्य है कि चीन ने कभी भी सैन्य हमला करके ताइवान को अपने में मिला लेने के विचार का खंडन नहीं किया है। तो क्या अब वह समय आ चुका है जब चीन ताइवान पर बलपूर्वक कब्जा करे?
कम से कम चीन की आंतरिक स्थिति को देख कर के तो यही प्रतीत हो रहा है कि चीन ऐसी किसी योजना पर कार्य नहीं कर रहा है। चीन के द्वारा किया जा रहा है यह युद्धाभ्यास चीन की आंतरिक राजनीति के कारणों से हो रहा है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग के स्वयं सामने आकर आक्रामक बयान देने के बावजूद भी नैंसी पेलोसी ने ताइवान की यात्रा की। यह बात राष्ट्रपति शी जिनपिंग को एक निष्प्रभावी नेता के रूप में प्रस्तुत कर रही है। शी जिनपिंग के लिए एक कमजोर राष्ट्राध्यक्ष की छवि घातक सिद्ध हो सकती है विशेष रुप से तब जब वे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के 20वें कांग्रेस में अपने तीसरे कार्यकाल की स्वीकृति प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं।
आगामी नवंबर में शी जिनपिंग को उनका तीसरा कार्यकाल मिलने जा रहा है। वे उसके ठीक पहले अमेरिका द्वारा दिए गए इस अपयश को स्वीकार नहीं करना चाहते। वे अपनी छवि एक कट्टर एवं आक्रामक राष्ट्र अध्यक्ष के रूप में गढ़ना चाहते हैं। शी जिनपिंग चीन की शासन व्यवस्था चलाने वाली चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सर्वोच्च पद पर होने के साथ-साथ चीन की सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को नियंत्रित करने वाली सेन्ट्रल मिलिट्री कमीशन के भी अध्यक्ष है। राष्ट्रपति का पद तो उनके पास है ही। चीन के भीतर सत्ता और शक्ति पर शी जिनपिंग ने जिस प्रकार नियंत्रण किया है वह माओ त्से तुंग के बाद पहली बार देखा जा रहा है। ऐसे में ताइवान के द्वारा नैंसी पेलोसी की मेजबानी करना शी जिनपिंग को खुली चुनौती जैसा प्रतीत हो रहा है।
हालांकि अमेरिका ने बड़ी ही सफाई से काफी पहले ही नैंसी पेलोसी की इस यात्रा को अपनी आधिकारिक विदेश नीति से बाहर बता दिया था। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बिडेन ने वक्तव्य जारी किया था कि उन्होंने नैंसी पेलोसी को यह यात्रा नहीं करने के सुझाव दिए थे। राष्ट्रपति बिडेन का यह कथन सामने आया था कि " हमारी सेना को यह नहीं लगता है कि इस समय ताइवान की यात्रा करना एक अच्छा विचार होगा"। हालांकि जो लोग अमेरिका के विदेश नीति संचालन की प्रक्रिया को जानते हैं उन्हें स्पष्ट रूप से समझ में आ रहा है कि अमेरिका ने बहुत ही चतुराई से इस यात्रा को एक विशेष प्रयोजन के उद्देश्य से तय किया होगा। अमेरिका के बार-बार यह कहने पर भी कि नैंसी पेलोसी किया यात्रा उनका व्यक्तिगत निर्णय है, इस बात को स्वीकार करना कठिन है।
चीन की गिरती हुई आर्थिक स्थिति तथा अंतरराष्ट्रीय राजनीति में वास्तविक सहयोगियों का अभाव उसे युद्ध के लिए सोचने भी नहीं देंगे। चीन की अर्थ व्यवस्था की रीढ़ रहे भू-निर्माण क्षेत्र ( रियल स्टेट सेक्टर) में इस समय संकट का दौर आया हुआ है| ‘एवरग्रांड’ जैसी विशाल कम्पनी ऋण के बोझ तले दबकर बैठ गयी है| विनिर्माण क्षेत्र ( मन्युफचुरिंग सेक्टर) में भी मंदी का दौर है| अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार चीन की आर्थिक वृद्धि दर वर्ष 2022 में मात्र 3.3% रहने की सम्भावना है| यह पिछले 40 वर्षों की सबसे नीचली दर है| इसके अलावा चीन ने अमेरिका-जापान-भारत तथा ऑस्ट्रेलिया के नए गठजोड़ ‘क्वाड’ के रूप में अपनी घेराबंदी को पहचान लिया है| इस गठजोड़ की निंदा करते हुए चीन ने इसे नाटो का एशियाई संस्करण कहा था| इसके अलावा अमेरिका-इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के नव गठित सुरक्षा मंच ऑकस( AUKUS) का उद्देश्य चीन को घेरना है यह भी चीन को भली-भांति पता है| युद्ध की स्थिति में चीन को रूस के अतिरिक्त किसी भी अन्य प्रभावी शक्ति से किसी भी प्रकार के सक्रिय सहयोग की आशा नहीं हो सकती है| जबकि रूस स्वयं यूक्रेन मामले में उलझा हुआ है| अतः वर्तमान परिस्थिति में चीन के लिए ताइवान के खिलाफ युद्ध छेड़ने का विकल्प है ही नहीं|
ताइवान को चीन अपने एक विलग हुए प्रान्त के रूप में देखता है| जब भी कोई देश ताइवान के साथ किसी भी प्रकार का कूटनीतिक सम्बन्ध शुरू करने का प्रयास करता है तो चीन इस प्रयास को अपनी संप्रभुता के लिए एक चुनौती मानता है| ताइवान एक सफल लोकतंत्र और एक मजबूत अर्थव्यवस्था होने के कारण अन्तराष्ट्रीय व्यवस्था का अंग है परन्तु, ताइवान को एक संप्रभु राष्ट्र नही माना जाता है| ताइवान के तो स्वयं चीन के साथ भी गहरे व्यापारिक रिश्ते हैं| ताइवान को सेमी-कंडक्टर निर्माण का पावरहाउस कहा जाता है और आकार में छोटा होने के बाद भी ताइवान के पास अपनी भी सैन्य शक्ति है| हालाँकि, ताइवान शुरुआत से ही अमेरिका का एक सहयोगी रहा है तथा अमेरिका का सैन्य बल ताइवान की सुरक्षा के लिए एक आश्वासन माना जाता है|
चीन अपनी ‘वन चाइना’ नीति को लेकर बहुत ही अधिक संवेदनशील रहता है| नैंसी पेलोसी की इस यात्रा में चीन को अपनी ‘वन चाइना’ नीति का उल्लंघन दिख रहा है| जब स्वयं राष्ट्रपति शी जिनपिंग की साख दाव पर लगी हो तो चीन केवल नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा पर निंदा का बयान जारी करके अपना काम नहीं चला सकता था|लेकिन चीन युद्ध शुरू करने का खतरा तो कतई नहीं मोल ले सकता था| निष्कर्षतः चीन ने इस आक्रामक युद्ध अभ्यास के माध्यम से अपनी मजबूत उपस्थिति का अनुभव कराने का फैसला किया है| यह युद्ध अभ्यास बाहरी कारणों से अधिक चीन की आतंरिक राजनीति के तात्कालिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हो रहा है|
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन संध्या महाविद्यालय में राजनीति शास्त्र के शिक्षक हैं। लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं, टाइम्स नाउ नवभारत इन विचारों से इत्तेफाक नहीं रखता।)