- नेपाल ने भारतीय इलाकों को अपने नक्शे में दिखाने वाले बिल को उच्च सदन से करा लिया है पारित
- अब उत्तराखंड के कालापानी से लगी सीमा पर बनाएगा आर्मी चौकी
- नेपाल को लगातार भारत के खिलाफ भड़काने में जुटा है चीन
काठमांडू: भारतीय इलाकों को अपने नए नक्शे में शामिल करने के बाद नेपाल ने अब कालापानी के पास आर्मी चौकी बनाने का फैसला किया है। खबरों की मानें तो नेपाल ने कालापानी के पास चांगरू में अपनी सीमा चौकी को अपग्रेड करते हुए इसे स्थायी चौकी बनाने का निर्णय लिया है। पहले यहां केवल साधारण पुलिस वाले तैनात रहते थे। नेपाल ने यह कदम ऐसे समय में उठाया है जब भारत और चीन के बीच तनाव चल रहा है।
नेपाल ने बनाया नया नक्शा
नेपाल ने संविधान में संशोधन करके गुरुवार को देश के नये राजनीतिक नक्शे को बदलने की प्रक्रिया पूरी कर ली थी। इस नए विवादिश नक्शे में नेपाल ने रणनीतिक महत्व वाले तीन भारतीय इलाकों को शामिल किया है। इन इलाकों में भारत के लिपुलेख, कालापानी तथा लिंपियाधुरा है। भारत ने नेपाल के इस कदम को अस्वीकार्य बताते हुए कहा था कि वह ऐसे किसी कदम को नहीं मानता है।
नेपाल के इस कदम के पीछे चीन का हाथ
भारतीय खुफिया एजेंसियों के सूत्रों ने आईएएनएस को बताया, कि नेपाल के इस कदम के पीछे भी चीन का हाथ है। नेपाल में तैनात चीन के राजदूत होउ यानकी ने इसके पीछे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिस कारण नेपाल ने यह कदम उठाया। होउ इससे पहले पाकिस्तान में तीन साल तक रहे थे और ओली सरकार के कार्यालय के दौरान वह लगातार उनके घर में जाते रहे हैं।
चीनी राजदूत ने निभाई भूमिका
इसके अलावा, नेपाल के कम्युनिस्ट पार्टी के एक प्रतिनिधिमंडल ने राजनीतिक मानचित्र को बदलने और दूसरे संविधान संशोधन विधेयक का मसौदा तैयार करने में चीनी राजदूत के साथ संपर्क किया था। चीनी राजदूत ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इससे पहले, चीन का नाम लिए बगरै भारतीय सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवाणे ने संकेत दिया कि भारत के उत्तराखंड में लिपुलेख दर्रे की सड़क के खिलाफ नेपाल कड़े विरोध के पीछे चीन का हाथ है।
भारत की नेपाल को दो टूक
नेपाल के नए नक्शे को लेकर विदेश मंत्रालय ने दो टूक कहा था, ‘हमने इस बात पर गौर किया है कि नेपाल ने मानचित्र में बदलाव करते हुए कुछ भारतीय क्षेत्रों को इसमें शामिल करने के लिए संविधान संशोधन विधेयक पारित किया है। हमने पहले ही इस मामले में अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। दावों के तहत कृत्रिम रूप से विस्तार, साक्ष्य और ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं है और यह मान्य नहीं है। यह लंबित सीमा मुद्दों का बातचीत के जरिये समाधान निकालने के संबंध में बनी हमारी आपसी सहमति का भी उल्लंघन है।'