- दुनिया की खास खुफिया एजेंसियों में है अमेरिका की सीआईए
- सीआईए के बारे में कहा जाता है कि उसके पास दुनिया के सभी मुल्कों ही अंदरूनी जानकारी है
- रिपोर्ट के मुताबिक एक स्विस कंपनी केजी क्रिप्टो के साथ डील करने के बाद सीआईए ने मालिकाना हक हासिल किया।
नई दिल्ली। कहते हैं कि राजनीति और कूटनीति में संकेंतो का अपना महत्व है, भावना के लिए कोई जगह नहीं है। कोई भी देश खुद में उतना ताकतवर है उसे खुद को ताकतवर के लिए दूसरे मुल्क को कमजोर करना ही पड़ता है। प्राचीन काल के राजवंशों, सुल्तानों और बादशाहों के शासन को देखें तो जासूसी उनकी शासन व्यवस्था का अनिवार्य अंग रही है और यह परिपाटी सदियों से आज भी जारी है सिर्फ तरीके बदल गए। सीआईए, केजीबी, मोसाद, एमआई का नाम सटीक जासूसी के लिये मशहूर है। ऐसे में अमेरिका की सीआईए से जुड़ी एक रिपोर्ट आई है जो होश उड़ाने के लिए काफी है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक सीआईए ने क्रिप्टो एजी कंपनी के साथ मिलकर 1951 से लेकर दुनिया के छोटे से लेकर बड़े मुल्को की जासूसी की थी। क्रिप्टो एजी कंपनी का गठन स्वतंत्र तौर पर 1940 में हुआ था और 1951 में सीआईए के साथ समझौता हुआ। रिपोर्ट के मुताबिक सीआईए और क्रिप्टी एजी ने जिन जिन देशों के इनक्रिप्टेड मैसेज को पढ़े उसमें भारत भी था। इस कंपनी के क्लाइंट्स की बात करें तो इनमें ईरान, लैटिन अमेरिका के देश, भारत, पाकिस्तान और वैटिकन शामिल हैं।
वॉशिंगटन पोस्ट और जर्मनी के सरकारी ब्रॉडकास्टर ने मंगलवार को एक रिपोर्ट पब्लिश की। क्रिप्टो एजी कंपनी ने अमेरिका की सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (CIA) के साथ 1951 में एक डील की और कुछ वर्षों बाद इसका मालिकाना हक सीआईए को मिल गया।लेकिन भारत सरकार की तरफ से इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिली है।इसके साथ ही स्विस कंपनी के किसी भी क्लाइंट को इस बारे में जानकारी नहीं थी कि सीआईए इस कंपनी की मालिक है।
जानकारों का कहना है कि जासूसी के मामले में रूस की खुफिया एजेंसी सीआईए से भी ज्यादा शातिराना चालें चलती थी। रूस को टक्कर देने के लिए अमेरिका खुफिया एजेंसी भी उसी ते नक्शेकदम पर चल पड़ी जानकार बताते हैं कि आम तौर दूसरे देशों की खोज खबर लेने के लिये इस तरह की प्राक्सी कंपनियों की मदद ली जाती है। जहां तक अमेरिका की बात है तो उनके पास संसाधनों की कमी नहीं थी और वो बेहतर तरीके से देशों को निशाना बना लेता था।