- अफगानिस्तान में नई सरकार के गठन की पहल दो बार टल चुकी है
- तालिबान गुट में सरकार बनाने पर आम सहमति नहीं बन पा रही है
- राजधानी काबुल पर गत 15 अगस्त को तालिबान ने किया कब्जा
नई दिल्ली : राजधानी काबुल पर गत 15 अगस्त को कब्जा करने के बाद तालिबान अफगानिस्तान में अपनी सरकार नहीं बना पाया है। सरकार बनाने की अपनी दो बार की घोषणा से उसे पीछे हटना पड़ा है। दरअसल, इसके पीछे एक बड़ी वजह तालिबान के अलग-अलग गुटों में सरकार बनाने को लेकर अंतिम सहमति नहीं बन पाना बताई जा रही है। तालिबान में अलग-अलग धड़े हैं जो नई सरकार में अपना प्रभावी एवं मजबूत नुमाइंदगी चाहते हैं। रिपोर्टों में कहा गया है कि नई सरकार के गठन में विवादों को सुलझाने के लिए ही पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के प्रमुख फैज हामिद ने काबुल का दौरा किया।
तालिबान में अलग-अलग धड़े हैं
तालिबान में कई अलग-अलग धड़े हैं जो अफगान बलों के खिलाफ लड़ाई तो लड़े हैं लेकिन सरकार में किसकी कितनी हिस्सेदारी होनी चाहिए, इस पर इन गुटों में एक राय नहीं बन पा रही है। इस वजह से नई सरकार बनाने में अड़चन आ रही है। तालिबान के प्रमुख धड़ों में मुल्ला अब्दुल गनी बरादर, हिब्तुल्लाह अखुंदजादा और सिराजुद्दीन हक्कानी के नाम शामिल हैं। बरादर ने ही 1994 में तालिबान का गठन किया था। वह आठ साल पाकिस्तान की जेल में भी रहे हैं।
तालिबान के प्रमुख हैं अखुंदजादा
कंधार से आने वाले अखुंदजादा तालिबान के नेता हैं। इस समय वह तालिबान के प्रमुख हैं। इन्हें सुप्रीम कमांडर बनाए जाने की बात कही जा रही है। जबकि हक्कानी समूह के प्रमुख सिराजुद्दीन हक्कानी की काबुल पर कब्जा करने में अहम भूमिका सामने आई है। रिपोर्टों की मानें तो हक्कानी समूह तालिबान में होते हुए भी अपना एक अलग प्रभाव रखता है और नई सरकार में वह अपना रसूख और दबदबा कायम रखना चाहता है।
सरकार का गठन अगले सप्ताह के लिए टला
तालिबान शनिवार को अपनी नई सरकार का गठन करने वाला था लेकिन एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए तालिबान के प्रवक्ता जैबिउल्लाह मुजाहिद ने बताया कि सरकार का गठन अगले सप्ताह के लिए टाल दिया गया है। हालांकि, उन्होंने इसकी कोई ठोस वजह नहीं बताई। प्रवक्ता ने कहा, 'तालिबान खुद से अपनी सरकार बना सकता है लेकिन वह सभी पक्षों, समूहों एवं समाज के सभी वर्गों को उचित नुमाइंदगी देने की दिशा में काम कर रहा है।' इससे पहले सूत्रों का कहना है कि तालिबान के राजनीतिक मामलों के चेयरमैन बरादर को तालिबान सरकार का प्रमुख बनाया जा सकता है।
अड़चनों के चलते सरकार बनाने में हो रही देरी
जाहिर है कि अफगानिस्तान में नई सरकार का गठन करना तालिबान के लिए आसान काम नहीं है। तालिबान ने बंदूक के बल पर सत्ता हासिल तो कर ली है लेकिन सरकार चलाने की अपनी चुनौतियां हैं। जानकारों का कहना है कि उसे दुनिया को दिखाना है कि वह देश के नागरिकों को एक स्थायी सरकार और बेहतर प्रशासन दे सकता है। इसलिए वह सरकार बनाने में जल्दबाजी नहीं करना चाहता। सरकार बनाने के तौर-तरीकों एवं जिम्मेदारी सौंपने को लेकर पैदा हो रहीं अड़चनों के चलते ही वहां नई सरकार बनाने में विलंब हो रहा है।