नई दिल्ली : हर लिहाज से परेशानियों भरा वर्ष 2020 चंद दिनों में अलविदा हो जाएगा। लेकिन यह मानव के सामने कई चुनौती भी खड़ा किया है। इसमें बैंकिंग सेक्टर भी है। आने वाला वर्ष 2021 में बैंकों के सामने कई होंगी। बढ़ते NPA से निपटना होगा। नए साल में बैंकों के सामने फंसे लोन की समस्या से निपटना मुख्य चुनौती होगी। बैंकों को आने वाले वर्ष में कमजोर लोन वृद्धि की चुनौती से भी निपटना होगा। प्राइवेट सेक्टर का निवेश इस दौरान कम रहने से कंपनी सेक्टर में लोन वृद्धि पर असर पड़ा है। हालांकि बैंकिंग सिस्टम में कैश की कमी नहीं है इसके बावजूद कंपनी सेक्टर से लोन की डिमांड धीमी बनी हुई है। बैंकों को उम्मीद है कि अर्थव्यवस्था में उम्मीद से बेहतर सुधार के चलते जल्द ही लोन की डिमांड पटरी पर आएगी।
बैंकिंग सेक्टर का जहां तक सवाल है वर्ष के शुरुआती महीनों में ही कोरोना वायरस के प्रसार से उसके कामकाज पर भी असर पड़ा। नन परफॉर्मिंग राशि (NPA) यानी फेसे लोन से उसका पीछा छूटता हुआ नहीं दिखा। इस मामले में पहला बड़ा झटका मार्च में उस समय लगा जब रिजर्व बैंक ने संकट से घिरे येस बैंक (YES Bank) के कामकाज पर रोक लगा दी। जैसे ही येस बैंक का मुद्दा संभलता दिखा तो अर्थव्यवस्था कोरोना वायरस महामारी की जकड़ में आ गई।
वर्ष 2020 के दौरान सरकार ने सरकारी बैंकों के विलय की प्रक्रिया को नहीं रुकने दिया। सरकारी सेक्टर के 6 बैंकों को अन्य 4 बैंकों के साथ मिला दिया गया। देश में बड़े वित्तीय संस्थानों को खड़ा करने के उद्देश्य से यह कदम उठाया गया। 1 अप्रैल से यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया और आरिएंटल बैंक ऑफ कामर्स को पंजाब नेशनल बैंक के साथ मिला दिया गया। इस विलय से पीएनबी देश का सरकारी सेक्टर का दूसरा बड़ा बैंक बन गया। वहीं आंध्र बैंक और कार्पोरेशन बैंक को मुंबई स्थित यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के साथ विलय कर दिया गया। सिंडीकेट बैंक को केनरा बैंक के साथ वहीं इलाहाबाद बैंक का विलय चेन्नई स्थित इंडियन बैंक के साथ विलय कर दिया गया।
वित्त सेवाओं के विभाग के सचिव देबाशीष पांडा ने कहा कि विलय करीब-करीब स्थिर हो चला है। लॉकडाउन के बावजूद यह काफी सुनियोजित तरीके से हो गया। बैंकों के विलय के शुरुआती सकारात्मक संकेत दिखने लगे हैं। उनका अब बड़ा पूंजी आधार है और उनकी लोन देने की क्षमता भी बढ़ी है। इसके अलावा विभिन्न बैंकों के उत्पाद भी विलय वाले लीड बैंक के साथ जुड़े हैं।
कोरोना वायरस महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान नौकरी जाने और आय का नुकसान उठाने वाले लोगों को राहत देते हुए रिजर्व बैंक ने बैंक लोन की किस्त के भुगतान से ग्राहकों को राहत दी। इस दौरान बैंकों के कर्ज NPA प्रक्रिया को भी स्थगित रखा गया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी NPA मामलों की पहचान पर अगले आदेश तक के लिए रोक लगा दी।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बैंकों को दो करोड़ रुपए तक के लोन पर ब्याज पर ब्याज नहीं लेने को कहा गया। यह आदेश 1 मार्च 2020 से अगले 6 माह तक की लोन किस्त के मामले में दिया गया। इससे सरकार पर 7,500 करोड़ रुपए के करीब अतिरिक्त बोझा पड़ने की संभावना है। रिजर्व बैंक के निर्देश के तहत बड़ी कंपनियों के लिए बैंकों ने एक बारगी लोन पुनर्गठन योजना को लागू किया। इसके लिए कड़े मानदंड तय किए गए। कोरोना वायरस के कारण दबाव में काम कर रही कंपनियों को इस योजना का लाभ उठाने के लिए दिसंबर तक का समय दिया गया।
पांडा ने कहा जहां तक कर्ज मांग की बात है। वर्ष के ज्यादातर समय यह कमजोर बनी रही। हालांकि, कृषि और खुदरा कर्ज के मामले में सितंबर के बाद से गतिविधियां कुछ बढ़ी हैं। MSME क्षेत्र में सरकार के हस्तक्षेप से शुरू की गई आपातकालीन लोन सुविधा गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) के तहत मांग बढ़ी है। उन्होंने कहा कि कंपनी वर्ग में मांग बढ़ाने के लिए सरकार की तरफ से प्रयास किए गए और हाल ही में ईसीएलजीएस का लाभ कुछ अन्य क्षेत्रों को भी उपलब्ध कराया गया।
रिजर्व बैंक की जुलाई में जारी की गई वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के मुताबिक इस साल के अंत में बैंकों का सकल NPA 12.5% तक पहुंच सकता है। इस साल मार्च अंत में यह 8.5% आंका गया था। सरकारी सेक्टर के बैंकों की यदि बात की जाए तो मार्च 2021 में उनका सकल NPA बढ़कर 15.2% तक पहुंच सकता है जो कि मार्च 2020 में 11.3% पर था। वहीं प्राइवेट बैंकों और विदेशी बैंकों का सकल NPA 4.2% और 2.3% से बढ़कर क्रमश 7.3% और 3.9% हो सकता है।
कई कंपनियों खासतौर से सूक्ष्म, लघु एवं मझौली (MSME) यूनिट्स के सामने कोरोना वायरस महामारी से लगे झटके के कारण मजबूती से खड़े रहना संभव नहीं होगा जिसकी वजह से चालू वित्त वर्ष की शुरुआती तिमाहियों के दौरान अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट देखी गई। देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में पहली तिमाही के दौरान जहां - 23.9% की गिरावट आई थी वहीं दूसरी तिमाही में यह काफी तेजी से कम होकर - 7.5% रह गई। लेकिन उद्योग जगत के विश्वास और धारणा में अभी वह मजबूती नहीं दिखाई देती हैं जो सामान्य तौर पर होती है। पिछले कुछ सालों के दौरान प्राइेवट सेक्टर का निवेश काफी कम बना हुआ है और अर्थव्यवस्था को उठाने का काम सार्वजनिक व्यय के दारोमदार पर टिका है।
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