नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को कहा कि कोविड-19 के दौर में लोन किस्तों के मोरेटोररियम का मामला राजकोषीय नीति का मसला है। सरकार की ओर से कहा गया कि विभिन्न क्षेत्रों का ध्यान रखते हुए उसने सक्रियता से कदम उठाए हैं। जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली बैंच को वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उठाए गए कदमों की जानकारी देते हुए केंद्र सरकार ने कहा कि यह कोई का 'कार्रवाई नहीं करने' का मामला नहीं है।
केंद्र की ओर से यह भी कहा गया कि अब इस मामले में आगे कोई अनुग्रह नहीं किया जा सकता, भले ही याचिकाकर्ता इस बारे में और बेहतर विकल्प होने की बात क्यों न कहें। इस बैंच में जस्टिस आर. एस. रेड्डी और एम. आर. शाह भी शामिल हैं।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बैंच से कहा शीर्ष अदालत से अलग अलग क्षेत्रों के लिए विशेष राहत देने की मांग करने जैसा कोई निदान संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत शायद उपलब्ध नहीं है।
कोविड-19 के दौरान सरकार ने ऋणधारकों को अपनी किस्तें बाद में चुकाने की मोहलत दी थी। शीर्ष अदालत इस मोहलत की अवधि में लोन किस्तों में वसूले जाने वाले ब्याज पर ब्याज वसूलने से जुड़ी कई याचिकाओं की सुनवाई कर रही है। शीर्ष अदालत ने गुरुवार को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से मामले की सुनवाई की।
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