उच्चतम न्यायालय ने रियल एस्टेट कंपनी आम्रपाली समूह के खिलाफ कुछ वित्तीय विवाद को लेकर भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की ओर से शुरू कराई गई मध्यस्थता कार्यवाही पर सोमवार को रोक लगा दी। न्यायमूर्ति यू यू ललित और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ को अदालत की तरफ से नियुक्त ‘रिसीवर’ (अदालत का वह अधिकारी, जो कोर्ट द्वारा विषय का फैसला किये जाने तक वाद से जुड़ी सामग्री को संरक्षित रखने में अदालत की मदद करता है) ने सोमवार को धोनी और रियल एस्टेट कंपनी के बीच पेंडिंग मध्यस्थता कार्यवाही और इसे आगे बढ़ाने में उनके समक्ष पेश आ रही समस्याओं के बारे में बताया।
शीर्ष न्यायालय ने अपने आदेश में इस बात का जिक्र किया कि आवास खरीददारों के हितों की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए उसने विषयों का संज्ञान लिया और यह सुनिश्चित करने के लिए एक अदालती रिसीवर नियुक्त किया कि आवास परियोजनाएं समय के अंदर पूरी हो जाएं और अपार्टमेंट खरीदारों को आवंटित हो जाए। पीठ ने कहा, ‘‘इन सबके मद्देनजर, रिसीवर के लिए इस तरह के वाद की रक्षा व देखभाल करना अत्यधिक मुश्किल होगा...यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि मध्यस्थ के समक्ष आम्रपाली समूह का पूर्ववर्ती प्रबंधन या कोई अन्य व्यक्ति प्रतिनिधित्व कर सकता है।’’
शीर्ष न्यायालय ने धोनी को नोटिस जारी करते हुए न्यायमूर्ति बीरबल से मध्यस्थता को आगे नहीं बढ़ाने को कहा। दरअसल, धोनी अब बंद हो चुकी इस रियल एस्टेट कंपनी समूह के ‘ब्रांड एम्बेसडर’ थे। शीर्ष न्यायालय द्वारा नियुक्त फॉरेंसिक ऑडिटर ने न्यायालय को बताया था कि आम्रपाली समूह ने धोनी के ब्रांड का प्रचार करने वाले रिथी स्पोर्ट्स मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड (आरएसएमपीएल) के साथ एक फर्जी समझौता किया ताकि आवास खरीददारों के पैसों की अवैध रूप से हेराफेरी की जा सके। साल 2009 से 2015 के बीच कुल 42.22 करोड़ रुपये आरएसएमपीएल को अदा किये गये। धोनी ने दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया था। अदालत ने 16 अक्टूबर 2019 को पूर्व न्यायाधीश वीणा बीरबल को क्रिकेटर और रियल एस्टेट कंपनी के बीच मध्यस्थता के लिए एकमात्र मध्यस्थ नियुक्त किया था।
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