नई दिल्ली: विदेशों से सस्ते तेलों का आयात बढ़ने के साथ ही घरेलू तेलों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। सोयाबीन और मूंगफली जैसे उत्पादों पर इसका असर दिख रहा है। सोयाबीन की नई फसल आने को है, वहीं मूंगफली का भी उत्पादक केन्द्रों पर जोर है। सस्ते तेलों का आयात बढ़ने तथा सोयाबीन (तिलहन), सरसों जैसी स्थानीय तिलहन फसलों की मांग घटने से स्थानीय तेल- तिलहन बाजार में गुरुवार को सरसों के साथ साथ सोयाबीन भाव गिरावट में रहे।
बाजार सूत्रों ने कहा कि सस्ते आयातित तेलों की रेस्तरां, होटलों, छोटी दुकानों में व्यापारी पाम जैसे सस्ते विदेशी तेलों को खरीदना पसंद करते हैं। इसके मुकाबले देशी तेलों की मांग में कुछ कमी है जिसकी वजह से सरसों, सरसों दादरी, सरसों पक्की घानी और सरसों कच्ची घानी की कीमतें मामूली हानि के साथ बंद हुई।
सूत्रों ने कहा कि किसानों के पास सोयाबीन का भारी स्टॉक है। अगले दो महीने में सोयाबीन की नई फसल भी आ जायेगी। ऊपर से विदेशों से आयात भी बढ़ रहा है। इससे किसानों को उनकी फसल के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल पाना मुश्किल दिख रहा है। सरकार ने सोयाबीन की आगामी फसल के लिये 3880 रुपये क्विंटल का एमएसपी तय किया है जबकि वायदा बाजार में अक्टूबर के लिये 3600 रुपए का भाव बोाला जा रहा है। इससे घरेलू उत्पादक किसान काफी हतोत्साहित महसूस कर रहे हैं।
सरसों तिलहन - 4,755- 4,780 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये।
मूंगफली दाना - 4,825 - 4,875 रुपये।
वनस्पति घी- 965 - 1,070 रुपये प्रति टिन।
मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात)- 13,140 रुपये।
मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड तेल 1,940 - 1,190 रुपये प्रति टिन।
सरसों तेल दादरी- 9,670 रुपये प्रति क्विंटल।
सरसों पक्की घानी- 1,545 - 1,685 रुपये प्रति टिन।
सरसों कच्ची घानी- 1,640 - 1,760 रुपये प्रति टिन।
तिल मिल डिलिवरी तेल- 11,000 - 15,000 रुपये।
सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 8,900 रुपये।
सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 8,750 रुपये।
सोयाबीन तेल डीगम- 7,780 रुपये।
सीपीओ एक्स-कांडला- 6,780 रुपये।
बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 7,800 रुपये।
पामोलीन आरबीडी दिल्ली- 8,250 रुपये।
पामोलीन कांडला- 7,500 रुपये (बिना जीएसटी के)।
सोयाबीन तिलहन डिलिवरी भाव 3,710- 3,735 लूज में 3,445--3,510 रुपये।
मक्का खल (सरिस्का) - 3,500 रुपये
सूत्रों का कहना है कि अगले महीने मलेशिया में पाम तेल का रिकॉर्ड उत्पादन होने का अनुमान है। ऐसे में सरकार को घरेलू उत्पादकों के हित में सस्ते आयात पर शुल्क बढ़ाकर संतुलन साधने का काम करना चाहिए। इससे सरकार को विदेशी मुद्रा तो मिलेगी ही घरेलू बाजार में तेल उद्योग का विकास भी संभव हो सकेगा।
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