Petrol-Diesel Price and Cess on Export: अभी 15 दिन पहले मध्य प्रदेश , राजस्थान ,कर्नाटक, गुजरात, जम्मू-कश्मीर सहित देश कई इलाको में पेट्रोल-पंप पर लंबी-लंबी लाइनें और कई आउटलेट्स पर 'पेट्रोल नहीं है' के बोर्ड लग गए थे। और ऐसी आशंका होने लगी थी कि देश में श्रीलंका, पाकिस्तान और दूसरे मुल्कों की तरह पेट्रोल की किल्लत शुरू होने वाले वाली है। हालात ऐसे हो गए कि सरकार को आकर सफाई देनी पड़ी कि देश में पर्याप्त पेट्रोल-डीजल का भंडार है। और अब महज 15 दिन बाद सरकार के पेट्रोल-डीजल के निर्यात पर सेस लगाने के फैसले से साफ हो गया कि कई कंपनियां, अंतरराष्ट्रीय बाजार में महंगे तेल की कीमतों का फायदा उठा रहीं थीं।
सरकार ने क्या किया
अब सरकार ने भी माना है कि कई रिफाइनरी कंपनियों के ज्यादा कमाई करने के चक्कर में घरेलू बाजार में तेल की कमी आ गई है। शुक्रवार को वित्त मंत्रालय द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि हाल के महीनों में कच्चे तेल की कीमतों में बहुत तेजी देखी गई है, जिसके कारण हाई-स्पीड डीजल और पेट्रोल की कीमत में भी तेजी आई। रिफाइनरी इन उत्पादों को मौजूदा कीमतों पर विश्व स्तर पर निर्यात करती हैं। ये कीमत बहुत ऊंची होती है। चूंकि निर्यात बहुत लाभप्रद हो रहा है, इसलिये देखा जा रहा है कि कुछ रिफाइनरी के कारण घरेलू बाजार में तेल की कमी हो रही है।
इसलिए सरकार ने पेट्रोल,डीजल के निर्यात पर विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क/उपकर लगा दिया है। पेट्रोल पर छह रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 13 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से सेस लगाया गया है।
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कंपनियां क्या कर ही थी खेल
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें पिछले कुछ समय से 100 डॉलर के पार पहुंच गई हैं। अप्रैल से 30 जून के बीच Petroleum Planning and Analysis Cell (PACC) की रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल से 17 जून के बीच इंडियन बास्केट में कच्चे तेल की कीमतें 102.97 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 17 जून को 118.99 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थी। जबकि भारत रूस से इस समय 25-30 फीसदी कम दर पर पेट्रोल-डीजल खरीद रहा है। जिसके हिसाब से 90-95 डॉलर प्रति बैरल के बीच खरीद की कीमत आ रही है। इसे देखते हुए कंपनियां घरेलू बाजार में पेट्रोल-डीजल नहीं बेचकर, ज्यादा कमाई के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचने लगी। जिसका खामियाजा देश में पेट्रोल-डीजल की किल्लत के रूप में उठाना पड़ रहा था। सेस लगने से कंपनियों के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में घरेलू बाजार के मुकाबले मुनाफा कमाना संभव नहीं होगा। ऐसे में कंपनियों को मजबूर घरेलू बाजार में पेट्रोल-डीजल की सप्लाई करनी होगी। इससे पेट्रोल-डीजल की किल्लत में कमी आएगी।
14.3 फीसदी बढ़ा कच्चे तेल का आयात
PACC के अनुसार अप्रैल 2022 में भारत में कच्चे तेल का आयात 14.3 फीसदी बढ़ा है। अप्रैल में 20873 मिट्रिक टन कच्चे तेल का आयात किया गया है। जिसमें 70.6 फीसदी आयात खाड़ी देशों से किया गया है। किल्लत पर सरकार का दावा था कि जिन राज्यों में पेट्रोल-डीजल की किल्लत हुई है, वहां पर मांग में 50 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई थी। अगर अप्रैल और मई के आंकड़ों से तुलना किया जाय तो 2022 में 2021 की तुलना में 25-30 फीसदी पेट्रोल-डीजल की मांग बढ़ी है। कृषि गतिविधियों के कारण सीजनल मांग बढ़ी है।
ईंधन | अप्रैल 2022 में मांग | मई 2022 में मांग | मई 2021 में मांग |
MS (पेट्रोल) | 2797 | 3017 | 1991 |
HSD (डीजल) | 7203 | 7285 | 553 |
नोट: पेट्रोल-डीजल की मात्रा 000 मिट्रिक टन में ली गई है
वहीं इस मामले में न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्टे के अनुसार, इंडियन ऑयल (Indian Oil), एचपीसीएल (HPCL) और बीपीसीएल (BPCL) ने पिछले कुछ समय से कच्चे तेल (कच्चे माल की लागत) में वृद्धि के बावजूद पेट्रोल और डीजल की कीमतें नहीं बढ़ाई । वह इस समय पेट्रोल को 14-18 रुपये प्रति लीटर और डीजल 20-25 रुपये के नुकसान पर बेच रहे हैं। लेकिन इस स्तर का नुकसान निजी क्षेत्र की कंपनी नायरा एनर्जी, Jio-bp और शेल के लिए उठाना संभव नहीं है। जिसक कारण उन्होंने बिक्री में कमी कर दी है
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