HFD का मोदी सरकार कर रही है इस्तेमाल, जानें आपको कैसे मिलेगा फायदा

बिजनेस
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Feb 03, 2022 | 19:43 IST

High Frequency Data: इकोनॉमिक सर्वे में हाई फ्रीक्वेंसी डाटा के जरिए कई विश्लेषण दिए गए हैं। इसके जरिए सरकार के लिए आम लोगों की जरूरत के अनुसार नीतियां बनाना आसान होगा।

High Frequency Data
इकोनॉमिक सर्वे में हाई फ्रीक्वेंसी डाटा का जिक्र  |  तस्वीर साभार: ANI
मुख्य बातें
  • एयर ट्रैफिक, ई-वे बिल, यूपीआई, जीएसटी कलेक्शन, ट्रैक्टर, दोपहिया और तिपहिया वाहन के आंकड़ों के जरिए आर्थिक गतिविधियों पर नजर रख रहे हैं।
  • कोविड-19 दौर में इस तरह के आंकड़ों से सरकार के लिए नीतियों का क्या असर हो रहा है, उसे समझना आसान हुआ है।
  • अर्थशास्त्रियों के अनुसार नीतियों को लेकर हाई फ्रीक्वेंसी डाटा का इस्तेमाल एक बड़ा सकारात्मक बदलाव है।

नई दिल्ली: नीतियां बनाने को लेकर सरकार अहम बदलाव कर रही है। वह 30 से ज्यादा हाई फ्रीक्वेंसी डाटा (HFD) के जरिए रियल टाइम विश्लेषण पर जोर दे रही है। ऐसा कर उसकी कोशिश है कि वह आम लोगों के लिए ऐसी नीति बना सके या उसमें बदलाव कर सके, जिसकी उन्हें सही मायने में जरूरत है। इस कवायद में सरकार के काम हाई फ्रीक्वेंसी डाटा आएगा। 2021-22 के इकोनॉमिक सर्वे में ऐसे 30 से ज्यादा हाई फ्रीक्वेंसी डाटा के बारे में जानकारी दी गई है। अर्थशास्त्रियों के अनुसार लागू नीति को समझने और नई बनाने में धीरे-धीरे हाई फ्रीक्वेंसी डाटा का इस्तेमाल बढ़ता जाएगा और यह लोगों के लिए फायदेमंद होगा।

क्या है हाई फ्रीक्वेंसी डाटा (HFD)

असल में हाई फ्रीक्वेंसी डाटा वह आंकड़े हैं जिनमें न केवल लगातार बदलाव होता है बल्कि उनको आसानी से ट्रैक भी किया जा सकता है। इकोनॉमिक सर्वे में हाई फ्रीक्वेंसी डाटा के तहत घरेलू एयर ट्रैफिक, ई-वे बिल, यूपीआई, जीएसटी कलेक्शन, ट्रैक्टर, दोपहिया और तिपहिया वाहन, पैसेंजर वाहन, कोर इंडस्ट्री, आईआईपी, शेयर मार्केट, बांड बाजार, ईंधन की खपत, बाजार में इस्तेमाल हो रही मुद्रा, पीएफ खाताधारकों की स्थिति आदि के डाटा के बारे में पिछले 3-4 साल के आंकड़ों की जिक्र है।

क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डी.के.जोशी टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से  कहते हैं कि सरकार के पास महंगाई, आआईपी जैसे डाटा एक तय समय पर आते हैं। लेकिन महामारी के दौरान गूगल आदि दूसरे तरीके से लोगों की मोबिलिटी, ट्रैफिक, खरीदारी आदि की स्थिति सहित दूसरी जानकारियां मिलने लगी हैं। एक तरह से हाई फ्रीक्वेंसी डाटा के जरिए सरकार को आर्थिक गतिविधियों को समझने का एक और स्रोत मिल गया है। इसकी वजह से महामारी में सरकार को जरूरत के अनुसार तुरंत एक्शन लेने का मौका मिलता है। जहां तक नीतियों की बात है तो हाई फ्रीक्वेंसी डाटा के जरिए लागू नीति का क्या असर हो रहा है। इसका पता अब आसानी से चल सकता है। निश्चित तौर पर आने वाले समय में हाई फ्रीक्वेंसी डाटा का इस्तेमाल बढ़ता जाएगा।

ये भी पढ़ें: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का राहुल गांधी को जवाब, 'वे गरीबों के नाम पर सिर्फ घड़ियाली आंसू बहाते हैं, बजट को पूंजीवादी बजट कहना गलत'

कैसे काम करेगा हाई फ्रीक्वेंसी डाटा

इसको इस तरह से समझा जा सकता है, सरकार इसके जरिए यह पता कर सकती है कि लोग मॉल जा रहे है या नहीं, यूपीआई के पेमेंट से यह भी पता चलता है कि लोग किस तरह की खरीदारी कर रहे हैं। इसी तरह वाहनों की बिक्री कहां हो रही है, किस कैटेगरी में ज्यादा हो रही है। मोबिलिटी डाटा से यह भी पता चल सकता है कि लोग रेस्टोरेंट जा रहे हैं या नहीं , ट्रैवल का तरीका क्या है। अपने खर्च बढ़ा रहे हैं या कम कर रहे हैं  इन आंकड़ों का इस्तेमाल कर, सरकार के लिए नीतियां बनाना आसान होगा।

हालांकि यह आंकड़े कितने कारगर हो सकते हैं, इस पर भारत के पूर्व चीफ स्टैटेशियन डॉ प्रबण सेन ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से कहते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर फैसले लेने के लिए आंकड़े काबिल हो तभी उनका इस्तेमाल किया जाना चाहिए। जो डाटा मिल रहे हैं उसमें परेशानी यह है कि यह कोई रैंडम सैंपल नही है। उसमें डाटा चयन कई बार एकतरफा हो सकता है। ऐसे में उस पर आधार नीतियां बनाना फिलहाल कारगर नहीं होगा। अभी यह कंपनियों के लिए बहुत अच्छा है। पर राष्ट्रीय स्तर पर सही विश्लेषण अभी होना मुश्किल है। इसीलिए मुझे लग रहा है , सरकार भी इसका आंकलन कर रही है। क्योंकि भारत की जनसांख्यिकी को देखते हुए इसके जरिए राष्ट्रीय स्तर पर कोई सोच होना फिलहाल मुश्किल है।

इसके जरिए आप लोगों के खरीदारी के पैटर्न आदि के नंबर तो निकाल सकते हैं, लेकिन इन आंकड़ों से किसी की इनकम घटी या बढ़ी यह पता लगाना मुश्किल है। अभी इसका इस्तेमाल जैसे औद्योगिक नीति बनाने में किया जा सकता है। लेकिन यह ओवरऑल पॉलिसी तय करने में इस्तेमाल करना सही नहीं है। जहां तक पैराडाइम शिफ्ट की बात है तो हमें यह समझना चाहिए जैसे-जैसे डाटा की उपलब्धता होती है, उसका इस्तेमाल होता जाता है। लेकिन हड़बड़ी नहीं करनी चाहिए, बल्कि उन पर काम करना चाहिए, जिससे आगे की भूमिका तैयार हो सके। 

ये भी पढ़ें: जमीन के खरीद-फरोख्त में नहीं होगा फर्जीवाड़ा, कहीं से भी होगी रजिस्ट्री ! जानें क्या है वन नेशन वन रजिस्ट्रेशन

Times Now Navbharat पर पढ़ें Business News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।

अगली खबर