Inflation at 8 Years High:: बेकाबू होती महंगाई एक ऐसा संकट है, जिसका कोई भी सरकार सामना नहीं करना चाहती है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के सामने, इस समय यही सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। बीते बृहस्पतिवार को जारी रिटेल महंगाई (Consumer Price Index) के आंकड़ों ने 8 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। अप्रैल के महीने में महंगाई दर 7.79 फीसदी पर पहुंच गई है। यह स्थिति ऐसे समय आई है, जब मोदी सरकार 26 मई को अपने कार्यकाल के 8 साल पूरे करने जा रही है। ऐसे में मोदी सरकार के समाने, महंगाई के मोर्चे पर जल्द से जल्द ठोस कदम उठाकर आम लोगों को राहत देने की बड़ी चुनौती है।
मोदी सरकार के 8 साल में इस समय सबसे अधिक महंगाई
मोदी सरकार जब 2014 में सत्ता में आई थी, तो महंगाई एक बड़ा मुद्दा था। और मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाले यूपीए की हार की एक बड़ी वजह बना था। लेकिन सत्ता बदलते ही मोदी सरकार के दौर में महंगाई कम होती चली गई। और 2017 में तो 2 फीसदी से भी नीचे चली गई । लेकिन साल 2020 में कोविड-19 के असर ने महंगाई को 7 फीसदी से उपर पहुंचा दिया। हालांकि साल 2021 में एक बार फिर ,मोदी सरकार के लिए महंगाई काबू वाली स्थिति में रही। लेकिन 2022 से लागातार महंगाई में बढ़ोतरी जारी है। और अब उसने मई 2014 का भी रिकॉर्ड तोड़ दिया है। और इस समय रूस-यूक्रेन युद्ध से खड़ी चुनौती ने मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।
इनके दाम बेकाबू कर रहे है महंगाई
अगर अप्रैल 2022 के रिटेल महंगाई के आंकड़ों को देखा जाय तो सबसे ज्यादा पेट्रोल-डीजल, खाने के तेल-घी, सब्जियां, मसाले, कपड़े, जूते, परिवहन खर्च ने लोगों की जेब पर असर डाला है। ऐसे में अगर मोदी सरकार इनकी कीमतों पर काबू पा ले, तो महंगाई से राहत मिल सकता है।
आनंद राठी की रिपोर्ट के अनुसार महंगाई कई कारणों से बढ़ रही है। इस समय खाद्य महंगाई दर अप्रैल में नवंबर 2021 के स्तर को पार कर गई है। वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में तेजी और कमजोर रुपये ने पिछले महीने की ईंधन मुद्रास्फीति में मामूली गिरावट को उलट दिया। और उसका असर भी महंगाई पर दिख रहा है। कमोडिटी की ऊंची कीमतों और परिवहन (जिसमें डीजल और पेट्रोल शामिल हैं) को शामिल करने से कोर इंफ्लेशनआठ साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई। ये सभी मुख्य रूप से लागत बढ़ाने वाले कारण हैं।
वस्तुएं | महंगाई दर (फीसदी) |
तेल-घी | 17.28 |
सब्जियां | 15.41 |
कपड़े और जूते | 9.58 |
ईंधन और बिजली | 10.80 |
परिवहन और कम्युनिकेशन (मोबाइल-इंटरनेट आदि) | 10.91 |
मोदी सरकार क्या कर सकती है
अगर महंगाई के कारणों को देखा जाय तो अप्रैल में सबसे ज्यादा असर खाने के खाने के तेल और घी पर पड़ा है। इनकी कीमतों में 17 फीसदी का इजाफा हुआ है। भारत ने अपनी जरूरतों का करीब 60 फीसदी खाने का तेल आयात करता है। कमजोर रूपया और इंडोनेशिया द्वारा पॉम आॉयल आयात पर प्रतिबंध लगाने से खाने के तेल का संकट बढ़ गया है। ऐसे मे तत्काल में सरकार को आयात के दूसरे रास्ते देखने होंगे। साथ ड्यूटी स्ट्रक्चर में बदलाव कर राहत दी जा सकती है। अभी इफेक्टिव इंपोर्ट ड्यूटी 5.5 फीसदी है।
पेट्रोल-डीजल की कीमतें बड़ा मुद्दा है। जिसका सीधा असर ट्रांसपोर्टेशन लागत पर भी पड़ता है। ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर टैक्स कटौती करें तो उसका असर घटती महंगाई के रूप में दिख सकता है। इस फॉर्मूले का इशारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कर चुके हैं। लेकिन ऐसा करने के लिए राजनीतिक दलों को राजनीति से ऊपर उठकर सोचना होगा।
सब्जियों की कीमतों ने भी खान-पीने की चीजों को बढ़ाया है। जिन पर मौसम और सप्लाई चेन प्रभावित होने का असर दिख रहा है। इस काम में मोदी सरकार की सामान्य मानसून मदद कर सकता है। इसके अलावा ट्रांसपोर्टेशन लागत में कमी लाकर भी महंगाई घटाई जा सकती है। इसी तरह कच्चे माल की बढ़ी कीमतों ने कपड़े, जूते और पर्सनल केयर की कीमतें बढ़ी दी है।
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कब मिलेगी राहत
आनंदराठी की रिपोर्ट के अनुसार 'महंगाई को काबू में पाने के लिए अगले तीन महीनों में 0.50-0.60 फीसदी तक कर्ज महंगा हो सकता है। जबकि 24 महीनों में 2 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। इसके अलावा सामान्य मानूसन, वैश्विक कमोडिटी कीमतों में हाल ही में नरमी, सप्लाई चेल में सुधार से उम्मीद है कि महंगाई जल्द काबू में आ जाएगी।'
जाहिर है कि अगर महंगाई को काबू में लाना है आरबीआई, सरकार और राजनीति दलों को एक दिशा में सोचकर आगे बढ़ना पड़ेगा। अगर ऐसा नहीं होता है तो उसका खामियाजा आम आदमी को ही भुगतना होगा।
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