नई दिल्ली। कृषि भारतीय अर्थव्यस्था की रीढ़ है और अन्नदाताओं यानी किसानों को भारत का भाग्यविधाता कहा जाता है। कोरोना महामारी की मार जब अर्थव्यस्था के सेकेंडरी औक टर्शियरी सेक्टर पर पड़ी तो भी कृषि पर ज्यादा असर नहीं पड़ा। लेकिन इस समय भारत के अन्नदाता नाराज हैं और सड़कों पर डटे हुए हैं। पिछले 12 दिन से दिल्ली की सीमा पर नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं, किसानों और सरकार के बीच में कई दौर की बातचीत हो चुकी है और छठवें दौर की बातचीत 9 दिसंबर को होनी है। लेकिन उससे ठीक एक दिन पहले यानी 8 दिसंबर को भारत में महाबंद का ऐलान किया है।
आर्थिक गतिविधियों पर पड़ता है असर
महाबंद की वजह से एक तरह से आर्थिक गतिविधियां रुक जाती हैं, इस एक दिन के बंद से भारतीय अर्थव्यस्था को हजारों करोड़ की चपत लग जाती है जिसकी भरपाई करना मुश्किल होता है। बंद की वजह से न सिर्फ आर्थिक गतिविधियों पर असर पड़ता है बल्कि सरकारी संपत्तियों को नुकसान होता है। अगर समग्र तौर पर देखा जाए तो भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचता है। सीआईआई के एक अनुमान के मुताबिक एक दिन के बंद से देश की अर्थव्यवस्था को तुरंत के तुरंत 25 से 30 हजार करोड़ रुपए का नुकसान होता है। यही नहीं सर्विसेज के शुरु होने के बाद भी नुकसान का चक्र चलता रहता है। और इसकी भरपाई कर पाना काफी कठिन होता है।
क्या कहते हैं जानकार
जानकारों का कहना है कि भारत बंद से आम तौर पर उत्पादन जैसी गतिविधियों पर असर पड़ता है जिसकी मात्रा हजारों करोंड़ों में नुकसान के तौर पर होती है। इसके अलावा सरकारी संपत्तियों को भी नुकसान पहुंचता है। आम तौर पर इस नुकसान का स्तर कितना बड़ा हो सकता है इसके बारे में पुख्ता तौर पर कुछ कह पाना मुश्किल होता है। लेकिन एक दिन में भारत बंद की वजह से करीब 25 हजार करोड़ का नुकसान हो जाता है। इसके अलावा ऐसे राज्य जहां बंद ज्यादा प्रभावी होता है वहां नुकसान कुछ और अधिक होता है.
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