नई दिल्ली। कोरोना संकट की वजह से नौकरीपेशा लोगों के हाथ में कुछ अधिक कैश आए इसके लिए कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ने मई, जून और जुलाई महीने के लिए नियोक्ता और कर्मचारी दोनों के लिए पीएफ अंशदान को 12 की जगह 10 फीसद करने का निर्णय लिया है। केंद्र सरकार ने घोषणा की थी कि नियोक्ता और कर्मचारी दोनों मई, जून औक जुलाई महीने के लिए बेसिर सैलरी प्लस डीए का 10 फीसद पीएफ में योगदान करेंगे।
कैसे होता है ईपीएफ में अंशदान
उदाहरण के लिए अगर आप की बेसिक सैलरी 30 हजार रुपए प्रति महीने है तो 12 फीसद के हिसाब से आप पीएफ में 3600 रुपए का योगदान करते थे। लेकिन मई, जून और जुलाई महीने के लिए आपका योगदान 3600 की जगह तीन हजार रुपए होगा। हालांकि यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि कटौती बाध्यकारी नहीं है। आप सरकार की घोषणा के बावजूद पहले की तरह 12 फीसद योगदान दे सकते हैं।
ईपीएफओ ने जो स्पष्टीकरण दिया है उसके मुताबिक कर्मचारी और नियोक्ता दोनों के पास यह विकल्प है कि चाहे तो वो 12 फीसद की दर से अंशदान दें या 10 फीसद की दर से। ईपीएफओ का कहना है कि अंशदान में कटौती वैकल्पिक है, नियोक्ता और कर्मचारी चाहें तो ज्यादा दर पर अंशदान कर सकते हैं। इसको आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि कर्मचारी और नियोक्ता इन तीन महीनों के लिए अलग अलग दर पर अंशदान कर सकते हैं।
कर्मचारियों को 12 फीसद वाला अंशदान क्यों चुनें
अब सवाल यह है कि कर्मचारियों को 12 फीसद अंशदान क्यों करना चाहिए। यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि अगर आप पुराने या नए टैक्स रिजीम को चुनें उस केस में भी 12 फीसद तक ईपीएफ में अंशदान(किसी एक वित्तीय वर्ष में) टैक्सेबल नहीं है। इसका अर्थ यह है कि यदि आप 10 फीसद को चुनते हैं तो आप के हाथ में 600 रुपए की अतिरिक्त राशि तीन महीने के लिए आती है, यदि नियोक्ता भी 10 फीसद का ही अंशदान करता है तो वो राशि तीन महीने के लिए 1200 हो जाएगी। इस तरह से आपकी टैक्सेबल आय में 1800 या 3600 रुपए का इजाफा होगा। लिहाजा यदि आप के सामने किसी तरह की आर्थिक दुश्वारी नहीं है तो आप को 12 फीसद की दर से ही अंशदान करना चाहिए।
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