नई दिल्ली। महंगाई से जनता का हाल बुरा है। लेकिन इस बीच शॉर्ट टर्म में घरेलू बाजार में कॉटन की कीमत में बड़ी गिरावट आ सकती है। अगले 1 से 2 महीने में कॉटन की कीमत 40,000 रुपये के निचले स्तर तक पहुंच सकती है। ओरिगो ई-मंडी के असिस्टेंट जनरल मैनेजर (कमोडिटी रिसर्च) तरुण सत्संगी ने कहा कि कॉटन आईसीई का दाम कम होकर 131.5 सेंट प्रति पाउंड के स्तर पर आ सकता है। 2022-23 में भारत में कपास की बुआई सालाना आधार पर 5-10 फीसदी बढ़कर 126-132 लाख हेक्टेयर रहने का अनुमान है।
एक्सपोर्ट में सबसे ज्यादा होता है शंकर-6 कॉटन का इस्तेमाल
शंकर-6 कॉटन का भाव जनवरी 2021 की तुलना में 108 फीसदी से ज्यादा बढ़कर 96,000 रुपये प्रति कैंडी के आस-पास कारोबार कर रहा है। जनवरी 2021 में शंकर-6 कॉटन का भाव 46,000 रुपये प्रति कैंडी (1 कैंडी=356 किलोग्राम) था, लेकिन भाव 1,00,000 रुपये की रिकॉर्ड ऊंचाई से नीचे है। बता दें कि शंकर-6 कॉटन एक्सपोर्ट में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने के साथ ही व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली किस्म है। 17 मई को 50,330 रुपये प्रति गांठ की रिकॉर्ड ऊंचाई को छूने के बाद कमोडिटी एक्सचेंज एमसीएक्स पर कॉटन जून वायदा करीब 12.2 फीसदी लुढ़क चुका है और मौजूदा समय में भाव 44,190 रुपये के आस-पास कारोबार कर रहा है।
कीमतों में क्यों आई गिरावट?
वैश्विक ग्रोथ की चिंता, सरकार के द्वारा शुल्क मुक्त कॉटन आयात नीति के ऐलान के बाद आयात में बढ़ोतरी, सामान्य मॉनसून का अनुमान और फसल वर्ष 2022-2023 में कपास का रकबा बढ़ने के अनुमान जैसे प्रमुख कारकों की वजह से कॉटन की कीमतों पर बिकवाली का दबाव है। तरुण सत्संगी का कहना है कि कीमतों में गिरावट की आशंका को लेकर हम पहले ही कई बार चेतावनी जारी कर चुके हैं।
तरुण सत्संगी का कहना है कि पुरानी फसल-आईसीई कॉटन जुलाई वायदा का भाव 11 साल की ऊंचाई से 20 सेंट या 12.8 फीसदी लुढ़क चुका है। बता दें कि 4 मई 2022 को भाव ने 11 साल की ऊंचाई 155.95 को छुआ था। 17 मई से पुरानी फसल-आईसीई कॉटन जुलाई वायदा में भाव करेक्शन मोड में है। पुरानी फसल आईसीई कॉटन जुलाई वायदा के भाव ने प्रमुख सपोर्ट लेवल को तोड़ दिया है और ट्रेंड रिवर्सल प्वाइंट के नीचे बंद हो गया है, जो कि आने वाले दिनों में बाजार में मंदी का संकेत है। तरुण कहते हैं कि मांग की चिंता की वजह से कीमतों में करेक्शन देखा गया है।
उन्होंने कहा कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में संभावित मंदी को लेकर शुरुआती संकेत के साथ ही चिंताएं भी हैं, ऐसे में अगर मंदी आती है तो औद्योगिक कमोडिटीज की कीमतें गिर सकती हैं और उस स्थिति में कॉटन में भी गिरावट आएगी। अमेरिका के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में हाल ही में हुई बारिश को तथाकथित 'राहत' के तौर पर देखा जा रहा है। अक्सर देखा जा चुका है कि पश्चिम टेक्सास में बारिश के संकेत मात्र से बाजार फिर से करेक्शन मोड में चला जाता है।
शुल्क हटाने के बाद कॉटन आयात में बढ़ोतरी
तरुण सत्संगी के मुताबिक भारतीय व्यापारियों और मिलों ने शुल्क हटाने के बाद 5,00,000 गांठ कॉटन की खरीदारी विदेशों से की है। 2021-22 के लिए कुल आयात अब 8,00,000 गांठ हो गया है। सितंबर के अंत तक अन्य संभावित 8,00,000 गांठ के आयात के साथ 2021-22 के लिए कुल आयात 16 लाख गांठ हो जाएगा। कॉटन के ज्यादातर आयात अमेरिका, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया और पश्चिम अफ्रीकी देशों से हुए हैं। भारत आमतौर पर अमेरिका, पश्चिम अफ्रीका या ऑस्ट्रेलिया से 5,00,000-6,00,000 गांठ एक्स्ट्रा लॉन्ग स्टेपल कॉटन का आयात करता है, क्योंकि यह स्थानीय स्तर पर इसका उत्पादन नहीं होता है। भारत 5,00,000-7,00,000 गांठ संक्रमण मुक्त कॉटन का भी आयात करता है।
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