नई दिल्ली : कोरोना वायरस की वजह से ठप हुई आर्थिक गतिविधियों के बीच सरकार ने ईएमआई का भुगतान कर रहे लोगों को लोन मोरेटोरियम देने का फैसला किया था। इसे तीन महीने से बढ़ाकर छह महीने कर दिया गया था लेकिन इसे अब आगे नहीं बढ़ाया गया है। लोन मोरेटोरियम यानी लोन की किस्तें चुकाने के लिए मिली मोहलत के दौरान ब्याज माफी के अनुरोध वाली एक अर्जी पर बुधवार (26 अगस्त) को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सख्त लहजे में कहा कि लोन मोरेटोरियम के मामले में अपना रूख जल्द स्पष्ट करे। साथ ही कोर्ट ने कहा कि अर्थव्यवस्था में समस्या सरकार के लॉकडाउन की वजह से आई है। अब इस मामले में अगली सुनवाई 1 सितंबर को होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि आपने कहा है कि रिजर्व बैंक ने इस बारे में फैसला लिया है। हमने इस बारे में रिजर्व बैंक का जवाब देखा है। केंद्र सरकार आरबीआई के पीछे छुप रही है। कोर्ट ने कहा कि आप सिर्फ बिजनेस में दिलचस्पी नहीं ले सकते। लोगों की परेशानियों को भी देखना होगा। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि केंद्र सरकार की तरफ से सुनवाई को बार-बार टालने की मांग और कोशिश की जा रही है। कोर्ट के बार-बार कहने के बावजूद न तो केंद्र सरकार और आरबीाई ने अभी तक हलफनामा दाखिल नहीं किया है।
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली बैंच ने कहा कि केंद्र ने इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है, जबकि आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत उसके पास पर्याप्त शक्तियां थीं और वह आरबीआई के पीछे छिप रही है। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय मांग, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। मेहता ने कहा कि हम RBI के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। मेहता ने तर्क दिया कि सभी समस्याओं का एक सामान्य समाधान नहीं हो सकता। बैंच ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि वे आपदा प्रबंधन अधिनियम पर रुख स्पष्ट करें और यह बताएं कि क्या मौजूदा ब्याज पर अतिरिक्त ब्याज लिया जा सकता है। बैंच में जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस एम आर शाह भी शामिल हैं।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने बैंच को बताया कि कर्ज की स्थगित किस्तों की अवधि 31 अगस्त को समाप्त हो जाएगी और उन्होंने इसके विस्तार की मांग की। सिब्बल ने कहा कि मैं केवल यह कह रहा हूं कि जब तक इन दलीलों पर फैसला नहीं हो जाता, तब तक विस्तार खत्म नहीं होना चाहिए।
बैंच ने आगरा निवासी गजेन्द्र शर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। शर्मा ने अपनी याचिका में कहा है कि रिजर्व बैंक की 27 मार्च की अधिसूचना में किस्तों की वसूली स्थगित तो की गई है पर कर्जदारों को इसमें काई ठोस लाभ नहीं दिया गया है। याचिकाकर्ता ने अधिसूचना के उस हिस्से को निकालने के लिए निर्देश देने का आग्रह किया है जिसमें स्थगन अवधि के दौरान कर्ज राशि पर ब्याज वसूले जाने की बात कही गई है।
इससे याचिकाकर्ता जो कि एक कर्जदार भी है, का कहना है कि उसके समक्ष कठिनाई पैदा होती है। इससे उसको भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए जीवन के अधिकार की गारंटी मामले में रुकावट आड़े आती है।
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले कहा था कि जब एक बार स्थगन तय कर दिया गया है तब उसे उसके उद्देश्य को पूरा करना चाहिए। ऐसे में हमें ब्याज के ऊपर ब्याज वसूले जाने की कोई तुक नजर नहीं आता है।
सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि यह पूरी रोक अवधि के दौरान ब्याज को पूरी तरह से छूट का सवाल नहीं है बल्कि यह मामला बैंकों द्वारा बयाज के ऊपर ब्याज वसूले जाने तक सीमित है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह चुनौतीपूर्ण समय है ऐसे में यह गंभीर मुद्दा है कि एक तरफ कर्ज किस्त भुगतान को स्थगित किया जा रहा है जबकि दूसरी तरफ उस पर ब्याज लिया जा रहा है।
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